Vertical Farming: वर्टिकल खेती एक अनोखा तरीका, जानिए वर्टिकल खेती के फायदे

Vertical Farming: वर्टिकल खेती एक अनोखा तरीका, जानिए वर्टिकल खेती के फायदे
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Kisaan Helpline

Agriculture Feb 10, 2022

वर्टिकल खेती को सामान्य भाषा में खड़ी खेती भी कह सकते हैं। यह खुले में हो सकती है। इसमें इमारतों व अपार्टमेंट की दीवारों का उपयोग भी छोटी-मोटी फसल उगाने के लिए किया जा सकता है। वर्टिकल फार्मिंग एक मल्टी लेवल प्रणाली है। इसके तहत कमरों में बहुसतही बांचा खड़ा किया जाता है, जो कमरों की ऊंचाई के बराबर भी हो सकता है। वर्टिकल ढांचे के सबसे निचले खाने में पानी से भरा टैंक रख दिया जाता है। टैंक के ऊपरी खानों में पौधों के छोटे-छोटे गमले रखे जाते हैं। पंप के जरिए इन तक काफी कम मात्रा में पानी पहुंचाया जाता है। इस पानी में पोषक तत्व पहले ही मिला दिए जाते हैं। इससे पौधे जल्दी-जल्दी बढ़ते हैं। एलईडी बल्बों से कमरे में बनावटी प्रकाश उत्पन्न किया जाता है। इस प्रणाली में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इस तरह उगाई गई सब्जियां और फल खेतों की तुलना में ज्यादा पोषक और ताजे होते हैं। अगर यह खेती छत पर की जाती है, तो इसके लिए तापमान को नियंत्रित करना होगा। वर्टिकल तकनीक में मृदा की बजाय एरोपोनिक एक्वापोनिक या हाइड्रोपोनिक माध्यमों का उपयोग किया जाता है। 


वर्टिकल खेती में 95 प्रतिशत कम पानी का उपयोग होता है। छतों, बालकनी और शहरों में बहुमंजिला इमारतों के कुछ हिस्सों में फसली पौधे उगाने को भी वर्टिकल कृषि के रूप में देखा जाता है।


हाइड्रोपोनिक फार्मिंग
हाइड्रोपोनिक्स खेती तकनीक में पौधों को पानी में उगाया जाता है। इस पानी में आवश्यक पादप पोषक तत्व मिले होते हैं। केवल पानी में या बाल अथवा कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु में बिना मिट्टी के पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक्स कहते हैं। हाइड्रोपोनिक्स शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों हाइड्रो तथा पोनोस से मिलकर हुई है। हाइड्रो का मतलब पानी, जबकि पोनोस का मतलब कार्य है। हाइड्रोपोनिक्स में पौधों और चारे वाली फसलों को नियंत्रित परिस्थितियों में 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत आर्द्रता में उगाया जाता है। 

एयरोपोनिक्स फार्मिंग
एयरोपोनिक्स में पौधों की जड़ों पर केवल मिश्रित पोषक तत्त्वों का छिड़काव किया जाता है। गमले में लगे पौधों के मामले में आमतौर पर मिट्टी की जगह पर्लाइट, नारियल के रेशे, कोकोपीट, फसलों का फूस या बजरी का इस्तेमाल किया जाता है।

वर्टिकल खेती से छोटी या बेल वाली फसलों को लाभ
वर्टिकल खेती को ज्यादा भूमि की आवश्यकता नहीं होती है। इस तकनीक में एक गमले से लेकर एक एकड़ भूमि तक में फसलों का उत्पादन लिया जा सकता है। वर्टिकल खेती में मुख्य रूप से बेल या छोटे पौधे वाली फसलें ही ज्यादा उगाई जा सकती हैं। इनमें घिया, लौकी, टमाटर, मिर्च, धनिया, खीरा, पत्तेदार सब्जियां शामिल हैं। परंपरागत खेती में जहां बेल वाली फसलों का उत्पादन कम होता है और बारिश के समय फसल खराब होने का भी अंदेशा बना रहता है, वहीं वर्टिकल खेती में फसल आसमान की दिशा में बांस के सहारे रस्सी की सहायता से बढ़ती है। इस कारण खेत में पानी देते समय पौधे व फसल खराब नहीं होते हैं। जबकि परंपरागत तरीके से खेत में पानी देते समय बेल पर लगे फल और पौधे कई बार खराब हो जाते हैं। इसकी खास बात यह है कि इसमें रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल नहीं होता है, यह उत्पादन पूरी तरह से ऑर्गेनिक (जैविक) होता है। 


भारत में वर्टिकल खेती का भविष्य
वर्टिकल खेती या खड़ी खेती का विचार भारत में अभी नया है। कुछ कृषि विश्वविद्यालयों में इस पर शोध चल रहा है। इस समय वर्टिकल कृषि मुख्य रूप से मेट्रो सिटी बेंगलुरु, हैदराबाद, दिल्ली और कुछ अन्य शहरों में होती है। यहां उद्यमियों ने शौकिया तौर पर वर्टिकल खेती की शुरुआत की थी, लेकिन बाद में इसे व्यावसायिक उद्यम का रूप दे दिया। इन शहरों में बहुत से उद्यमी हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स जैसी प्रणालियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस तरह की खेती करने के लिए वर्टिकल खेती का तकनीकी ज्ञान जरूरी है। अमेरिका, चीन, सिंगापुर और मलेशिया जैसे कई देशों में वर्टिकल फार्मिंग पहले से हो रही है। इसमें एक बहुमंजिला इमारत में नियंत्रित परिस्थितियों में फल और सब्जियां उगाई जाती हैं।
वर्टिकल फार्मिंग के कम लोकप्रिय होने की मुख्य वजहों में से एक शोध एवं विकास का अभाव है। वर्टिकल खेती की तकनीक को बेहतर बनाने और लागत कम करने के लिए मुश्किल से ही कोई संस्थागत शोध चल रहा है। खेती की इस प्रणाली को लोकप्रिय बनाने के लिए ऐसे शोध कार्यों की तत्काल जरूरत है। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों को शोध एवं विकास केंद्र स्थापित करने के बारे में विचार करना चाहिए, ताकि वर्टिकल खेती को प्रोत्साहित किया जा सके। सरकार को वर्टिकल कृषि को बढ़ावा देने के लिए नीतियां लानी चाहिए।


वर्टिकल खेती के लाभ
  • वर्टिकल खेती के माध्यम से कम जमीन में अधिक उत्पादन किया जा सकता है।
  • वर्टिकल खेती में कृत्रिम प्रकाश और पर्यावरण का निर्माण किया जाता है, जिसके कारण मौसम का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है और फसल खराब होने का खतरा नहीं होता है।
  • परंपरागत खेती में कई तरह की रासायनिक खाद और खतरनाक कीटनाशक दवाओं का उपयोग किया जाता है, जिससे तरह-तरह के रोग फैलते हैं। वर्टिकल खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का उपयोग नहीं होता है।
  • वर्टिकल खेती में पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है।
  • जहां इसकी खपत हो, उसी के पास फसल उगाई जा सकती है। इससे लंबी दूरी के परिवहन की आवश्यकता नहीं होगी।
  • यह बढ़ती जनसंख्या और कम होती कृषि योग्य भूमि की समस्या के लिए भविष्य का श्रेष्ठ विकल्प है।
  • वर्टिकल खेती से किसानों की आय कई गुना तक बढ़ जाएगी। इससे उनके जीवन स्तर में सुधार होगा। वर्टिकल खेती में श्रमिकों की आवश्यकता कम होती है। यह ऑटोमेटेड तकनीक पर आधारित होती है।

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