Vermicompost: केंचुआ खाद बनाने का सरल तरीका और साथ ही जानिए केंचुआ खाद के गुण और लाभ के बारे में

Vermicompost: केंचुआ खाद बनाने का सरल तरीका और साथ ही जानिए केंचुआ खाद के गुण और लाभ के बारे में
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Kisaan Helpline

Agriculture Dec 09, 2021

जैविक खेती (Organic Farming): भूमि की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए आज के सघन खेती के युग में प्राकृतिक खादों का प्रयोग बढ़ रहा है। इन प्राकृतिक खादों में गोबर की खाद, हरी खाद और कम्पोस्ट मुख्य है। ये खादें मुख्य तत्वों के साथ साथ अन्य गौण तत्वों से भी भरपूर होती है।'

कम्पोस्ट और केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) को तैयार करने में अधिक समय व मेहनत लगती है और पोषक तत्वों की हानि भी होती है। इसके अतिरिक्त खरपतवार के बीज भी खेत में चले जाते हैं; जबकि पाचन शक्ति बहुत तेज होने के कारण केंचुए कम समय में बहुमूल्य कम्पोस्ट तैयार करते हैं जिसमें अधिक पोषक तत्व होते हैं। वर्मीकम्पोस्ट के कण कम्पोस्ट खाद से ज्यादा बारीक होते हैं और सूक्ष्मजीवाणुओं की संख्या भी अधिक होती है। पिछले कुछ वर्षों में जैविक कृषि पर काफी जोर दिया जा रहा है जिसमें केंचुओं का प्रमुख योगदान है। सूक्ष्मजीवाणु तथा केंचुए जैसे प्राणी मृदा में जैविक शक्ति के रूप में पर्याप्त मात्रा में होते हैं जो कि मृदा की उर्वरता बढ़ाते रहते हैं। इनकी क्रियाशीलता मृदा में स्वतः ही चलती रहती है। विगत वर्षों में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशी रसायनों के अत्याधिक प्रयोग से मृदा प्रदूषण बढ़ा है व केंचुओं एवं अन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आई है। केंचुआ खाद तैयार कर खेतों में प्रयोग करने से केंचुओं की संख्या खेत में बढ़ाई जा सकती है, जिससे भूमि सुधार तथा टिकाऊ खेती बढ़ावा दिया जा सके। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अरस्तु ने केंचुए को 'मिट्टी की आंत' के नाम से संबोधितकिया है। डार्विन के अनुसार प्रतिवर्ष किसी भी उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी आधा इंच मृदा का निर्माण केंचुओं द्वारा ही किया जाता है। गोबर, विभिन्न प्रकार के पत्तेसब्जियां आदि खाकर केंचुए के शरीर द्वारा छोड़ा गया मल ही वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) कहलाता है, वर्मीकम्पोस्ट में पाए जाने वाले सभी तत्व पानी में घुलनशील होते हैं तथा पौधों को तुरंत प्राप्त होते हैं। शोध के अनुसार अच्छी वर्मीकम्पोस्ट में नाइट्रोजन की मात्रा 2.5 से 3 प्रतिशत, फॉस्फोरस 1.8 से 2.9 प्रतिशत तथा पोटाश 1.4 से 2.0 प्रतिशत पाई जाती है । इसमें लाभदायक बैक्टीरिया, एंटीबायटिक्स, हार्मोन, एंजाइम, फफूंदी आदि भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। गुणवत्ता की दृष्टि से वर्मीकम्पोस्ट एक संपूर्ण खाद है, जिसमें सभी लाभकारी तत्व तथा सूक्ष्मजीवाणु प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। वर्मीकम्पोस्ट में केंचुओं के अंडे (कूकून) काफी मात्रा में मौजूद होते हैं। इसका अर्थ है कि जिस पौधे को आप यह खाद देंगे उसकी मृदा में ये केंचुए उत्पन्न होकर वर्मीकम्पोस्टिंग की प्रक्रिया को निरंतर जारी रखेंगे। कम्पोस्ट तैयार करने वाले केंचुओं को दो समूहों में बांटा गया है। 1. इंडोजेइक, 2. इपीजेइक इन समूहों की प्रजातियों में से 1. यूडीलस यूजीनी 2. आइसिनिया फेटीडा 3. पेरीबोनी इक्सकेवेटस मुख्यतः कम्पोस्टिंग के लिए उपयुक्त पाई गई हैं।

केंचुओं के मुख्य गुण एवं खाद बनाने की विधि
केंचुए वायु संचार करने वाले पदार्थों को तोड़कर महीन कणों में बदलने एवं पूर्ण रूप में मिलाने के लिए जाने जाते हैं। जैविक रूप में ये पूरी प्रणाली में सड़ने गलने व तोड़ने की प्रक्रिया को बढ़ाने में सहायक होते हैं। वर्मीकम्पोस्ट खाद मेड़ बनाकर या गड्ढों में बनाई जाती है। इनका आकार 3 फीट चौड़ा एवं 1.5 फीट ऊंचा/गहरा और लंबाई आवश्यकतानुसार रखी जाती है। अनुपयोगी और व्यर्थ पदार्थ जैसे फसल अवशेष, पशुशाला एंव घर का कूड़ा, रसोई का कचरा, ग्रामीण व शहरी कूड़ा, वानिकी अवशेष, औद्योगिक अवशेष आदि प्रयोग किए जाते हैं। विभिन्न पदार्थों की मात्रा का अनुपात इस प्रकार होता है 60 प्रतिशत कूड़ा-करकट, 30 प्रतिशत गोबर और 10 प्रतिशत खेत की मिट्टी सबसे । नीचे कड़वी या लंबी तूड़ी की एक पतली परत फैलाकर, उसके ऊपर एक 5-6 सें.मी. मोटी गोबर की परत और 3-4 सें. मी. मिट्टी की परत फैलाते हैं। फिर उसके ऊपर 40-45 से. मी. व्यर्थ पदार्थ एवं कूड़ा-करकट की परत डालकर 3-4 सं मी पतली परत गोबर की डालते है। इस तरह पूरी मेड़ या गड्डा भरते हैं और उसको अच्छी तरह से पानी में भिगाया जाता है, फिर उसमें केंचुए छोड़ दिये जाते हैं । इस गड्ढे को फटी व पुरानी जूट की बोरी फसल अवशेष अथवा कड़वी से ढककर उसको पानी से गीला कर दिया जाता है। वर्मीकम्पोस्टिंग छाया में या अस्थायी झोंपड़ी या स्थायी ढांचा बनाकर या पेड़ के नीचे कर सकते हैं । गर्मी के दिनों में 2-3 में बार, बरसात और सर्दी में आवश्यकतानुसार पानी देते रहते हैं, जो 50-75 प्रतिशत जल धारण क्षमता के समान होना चाहिए। एक घनमीटर पदार्थ में 400-500 केंचुए काफी होते हैं। वर्मीकम्पोस्ट की ऊपरी परत 30 35 दिनों में तैयार हो जाती है और पूरी परत 70-90 दिनों में तैयार होती है । खाद बनने के बाद में इसमें पानी छिड़कना बन्द कर देते हैं और सूखी कम्पोस्ट को इकट्ठा कर लिया जाता है। केंचुए नमी में रहना पसन्द करते हैं। इसलिए जब कम्पोस्ट सूखती है तो केंचुए नीचे की नम सतह पर चले जाते हैं। जब दोबारा से उसी स्थान पर कम्पोस्टिंग पदार्थ रखा जाता है तो ये केंचुए दोबारा ऊपर आकर कम्पोस्टिंग करने लगते हैं। इस तरह बार- बार कम्पोस्टिंग पदार्थ में केंचुए मिलाने की आवश्यकता नहीं होती है।

वर्मीवाश
यह वर्मीकम्पोस्ट यूनिट से निकलने वाला द्रव होता है। इसमें पोषक तत्व विद्यमान होते हैं। इसको इकट्ठा करने के लिए यूनिट के एक तरफ ढलान बनाकर एक पतला पाइप लगा दें। उसे इकट्ठा करने के लिए पाइप के सिरे पर एक गड्ढा खोदकर उसमें एक बाल्टी रख दें। इसका प्रयोग हम सभी प्रकार की फसलों में छिड़काव के लिए कर सकते हैं । करके अतः स्थानीय संसाधनों से कंचुआ खाद तैयार कर किसान इसे अपने खेत में प्रयोग भूमि सुधार तथा टिकाऊ खेती में प्रगति लाने के अतिरिक्त इसमें अपना लघु व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं और आर्थिक लाभ कमा सकते हैं।

केंचुआ खाद के लाभ
  • खेत में ये केंचुए मिट्टी को खाकर भुरभुरी कर देते हैं और इससे नाइट्रोजन संतुलन में कमी को भी पूरा करते हैं। 
  • अपनी लार से ये केंचुए मृदा के कणों को आपस में इतना बांध देते हैं कि भूमि के कटाव पर रोक संभव हो पाता है।
  • केंचुओं द्वारा खाई हुई मृदा में इतने पोषक तत्व होते हैं कि रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता में कमी लाई जा सकती है।
  • कंचुए मृदा की संरचना एवं उसकी पोषकता बढ़ाने में काफी सहायक होते हैं।
  • केंचुओं द्वारा निर्मित छिद्रों से ही हवा व पानी जमीन में गहराई तक प्रवेश कर पाते हैं जो कि फसलों के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है।
  • मृदा के अंदर रहने वाले जीवाणु और अन्य लाभ पहुंचाने वाले कीट स्वस्थ व पुष्ट मृदा बनाए रखने में मददगार साबित होते हैं।

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