कुपोषण की मुश्किल चुनौती, जो एक बड़ी आबादी को घेरे हुए है, उससे छुटकारा पाने का सबसे कारगर तरीका है मोटे अनाजों का सेवन। कभी हमारे जीवन में आहार का महत्वपूर्ण अंग होने वाले ये अनाज आज हमारे जीवन-आधार से काफी दूर हो चुके हैं। हरित क्रांति से पहले यही मोटे अनाज हमारी जीवनशैली में शामिल थे। हमारे पुरखों की लम्बी उम्र और सेहत का असली राज ही मोटे अनाज हुआ करते थे, जो उन्हें सर्दी, गर्मी और बरसात से बेपरवाह रखते थे। पौष्टिकता से भरपूर इन अनाजों का कम लागत पर उत्पादन किया जा सकता है। इस महंगाई के दौर में मोटे अनाज गरीबों की पौष्टिक भोजन की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं।
पोषण से भरपूर मोटे अनाज
- जई में बी कॉम्प्लेक्स, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्शियम, जिंक, मैग्नीज, लोहा और विटामिन बी व ई भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। लो सैचुरेटेड फैट के साथ लेने पर यह हृदय संबंधी रोगों को कम करने के साथ-साथ डिसलिपिडेमिया के लिए भी लाभदायक है।
- बाजरा एक गर्म अनाज होने की वजह से आमतौर पर जाड़ों के दिनों में खाया जाता है। यह उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो गेहूं नहीं खा सकते, ऐसे लोगों को बाजरे को किसी अनाज के साथ मिलाकर खाना चाहिए। यह थायमिन, कैल्शियम, आयरन व विटामिन-बी का अच्छा स्रोत है।
- जौ की बात करें तो इसमें सबसे ज्यादा अल्कोहल पाया जाता है। इसमें फाइबर, मैग्नीशियम व एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम करके ब्लड ग्लूकोज को बढ़ाता है। अल्कोहल की मात्रा अधिक होने की वजह से यह मूत्रवर्द्धक है व हाइपर टेंशन के पीड़ितों के लिए भी लाभदायक है।
- सामान्य गेहूं जहां अल्प अवधि में ही घुन खा जाता है वहीं मंडुआ 2 दशकों तक ज्यों का त्यों बना रहता है। काबुली चने में 23 प्रतिशत प्रोटीन होता है।
- कंगनी 100 ग्राम चावल की तुलना में 81 प्रतिशत अधिक पौष्टिक है।
- सांवां में 840 प्रतिशत ज्यादा वसा, 350 प्रतिशत फाइबर और 1229 प्रतिशत आयरन पाया जाता है।
- 633 प्रतिशत अधिक खनिज तत्व चावल की तुलना में कोदों में पाया जाता है।
- रागी में कैल्शियम की भरमार होती है।
- बाजरे में 85 प्रतिशत अधिक फॉस्फोरस पाया जाता है।
मोटा अनाज अधिक रेशेदार होने की वजह से आंतों में रुकता नहीं है व कब्ज से बचाता है। माताएं अपने शिशुओं को भी पुराने समय में ज्वार और मक्के के आटे का घोल पिलाती थीं, जो उनके लिए सुपोषक होता था। आजादी के बाद बाजारीकरण के कारण आम जनता का मोटे अनाजों की तरफ मोह भंग हो गया। इस दौरान एकफसली खेती को बढ़ावा मिला उसमें धान और गेहूं की केन्द्रीय भूमिका हो गई। नतीजतन कृषि योग्य भूमि में मोटे अनाजों की पैदावार उतरोत्तर कम हो गई। देहाती भोजन समझकर जिस मोटे अनाज को रसोई से बाहर कर दिया गया था आज उसी अनाज को वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित किए जाने के बाद बड़ी-बड़ी कम्पनियां इन अनाजों के पैकेट बाजार में उतार रही हैं। जो अब हर वर्ग शौक से खरीदता है। अगर आज की मानव पोषण की जरुरतों को समझा जाए तो मोटा अनाज हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।