सफल शाक वाटिका एक आकस्मिक नहीं अपितु सुनियोजित योजना तथा स्वास्थ्यपूर्ण सब्जियाँ उगाने की अभिलाषा रखने का परिणाम है। शाकवाटिका की सफलता में अनेक तथ्यों का योगदान है। घरेलू शाकवाटिका/विद्यालय वाटिकाओं/सामुदायिक वाटिकाओं आदि के लिए हैं, लेकिन व्यापारिक उद्देश्य से सब्जियाँ उगाने की दृष्टि से भी ये सुझाव अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
शाकवाटिका के लाभ
आप जानते होंगे की शाक वाटिका के अनेकों लाभ हैं। इसका सन्तोषजनक परिणाम यह है कि इससे आपको स्वस्थ रहने, समृद्ध बनने व बुद्धिमान बनने में सहायता मिलेगी।
स्वास्थ्य: इससे आपको ताजा हवा, खनिजों एवं विटामिनों से युक्त भोजन मिलेगा। वाटिका में कार्य करने से शारीरिक व्यायाम भी हो जायेगा।
समृद्धिः इससे आप अपने परिवार का भोजन संबंधी बजट तैयार कर सकेंगे और आपको व्यक्तिगत बचत में भी इससे सहायता मिलेगी।
बुद्धिमत्ताः इससे आपको आवश्यकता पड़ने पर ताजा और अच्छी सब्जियाँ मिल जाएगी। और साथ ही साथ खरीदने के लिए बाजार में जाने का आपका बहुमूल्य समय भी बचेगा।
इसके अतिरिक्त अपनी मेहनत से पैदा की गई सब्जियों का स्वाद अलग होता है।
बुवाई तथा पौधरोपण की समय सारणी-
ग्रीष्मकाल
बुवाई का समय : जनवरी-मार्च
फसल: चौलाई, करेला, भिण्डी, लौकी, शिमला मिर्च, बैंगन, मिर्च, लोबिया, कद्दू, टमाटर, तरबूज, फ्रेंचबीन, ककड़ी, खीरा, ग्वार, घीया,तोरी, टिण्डा, खरबूजा आदि।
खरीफ
बुवाई का समय: जून-जुलाई
फसल: चौलाई, भिंडी, करेला, बैंगन, गोभी (अगेती), सेम, घीयातोरी, प्याज, ग्वार, मिर्च, लोबिया, टमाटर, खीरा, ककड़ी, लौकी आदि।
रबी
बुवाई का समय: सितम्बर नवम्बर
फसल: चुकंदर, गांठ गोभी, सरसों, सलाद, बैंगन, बंदगोभी, फूलगोभी, (अगेती तथा पछेती), गाजर, मेथी, प्याज, पालक, मटर, आलू, टमाटर, शलगम आदि।
योजना
शाकवाटिका का क्षेत्र: यह परिवार तथा उपलब्ध क्षेत्र पर निर्भर करता है। 5-6 सदस्यों के एक औसत परिवार के लिए सब्जियों की आवश्यकता पूरी करने के लिए 200 वर्ग मीटर का क्षेत्र पर्याप्त रहेगा। यदि स्थान कम हो तो उस पर चुनी हुई किस्म की सब्जियाँ उगाना अच्छा रहेगा।
स्थान चयन: एक ऐसे अच्छे जमीन के टुकड़े का चयन करें जिसमें जल निकास अच्छा हो तथा पानी देने की सुविधाएं हों। यह स्थान आपके घर के निकट ही हो लेकिन इस पर ऊची इमारतों या वृक्षों की छाया न हो। वाटिका स्थल के चारों ओर बाड़ लगा देना लाभप्रद रहता है।
वाटिका का आकार: बहुत से बागवान प्रत्येक पंक्ति के स्थान तथा जो फसलें लगायी जानी हैं उन सब की रूपरेखा एक कागज पर तैयार कर लेते हैं। 9 वर्ग मीटर आकार की छोटी-छोटी क्यारियाँ, जिनमें सिंचाई के लिए नालियां ही तैयार की जानी चाहिए।
फसल सम्बन्धी आवश्यकताएं
उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त सब्जियाँ, प्रमुख किस्मों, बुवाई और पौधरोपण का समय, बीज की दर, पौधरोपण की गहराई, बुवाई का तरीका, फसल की कटाई का समय तथा अनुमानित उपज आदि का उल्लेख इसके अन्दर दी गई पौधरोपण निर्देशिका में किया गया है।
खाद देना
देशी खाद: मिट्टी तैयार करने से पूर्व 9 वर्ग मीटर की प्रत्येक क्यारी में कम से कम 2-3 टोकरी अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट देनी चाहिए।
रासायनिक खाद: 9 वर्ग मीटर की प्रत्येक क्यारी के लिए 400 ग्राम सुपर फॉस्फेट, 200 ग्राम यूरिया, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट तथा 70 ग्राम पोटेशियम सल्फेट बुवाई से पूर्व की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए। रसायनिक खाद की इस आधार भूत मात्रा के अतिरिक्त फसल की स्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रति क्यारी कम से कम दो-तीन बार 100 ग्राम कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट या अमोनियम सल्फेट की मात्रा देनी चाहिए।
खाद का प्रयोग कैसे करें: फसल लगाने से पूर्व क्यारियों में खाद समान रूप से छिड़क कर मिट्टी में अच्छी से मिला देनी चाहिए। बाद में खाद को पौधों के चारों ओर इस ढंग से दिया जाता है कि उसका पौधों से सीधा संपर्क न रहे। प्रत्येक बार खाद देने के बाद तुरंत ही फसल की सिंचाई भी करें।
भूमि की तैयारी
भूमि की गहरी खुदाई करें या पौधरोपण से कम से कम 2-3 सप्ताह पहले उस पर हल चलाएं। पौधरोपण के लिए एक अच्छी क्यारी तैयार करने के लिए मिट्टी को पुन: खूब अच्छी तरह से तैयार व समतल कर लें।
पौध तैयार करना
टमाटर, बैंगन, मिर्च, बंदगोभी, फूलगोभी, गांठ गोभी तथा प्याज आदि कुछ फसलों के लिए अच्छा यह रहेगा कि पहले अच्छी तरह से तैयार क्यारियों में बीज बो कर पौध तैयार कर लें। बीज 1-1.5 सें.मी.की गहराई पर 5 सें.मी. के अंतर पर लाइनों में बोएं। क्यारियों में फव्वारे से पानी का छिड़काव करें। क्यारी को पानी की अत्यधिक मात्रा से मुक्त रखें। गामियों और वर्षा के दौरान अथवा कड़ी सर्दियों में यदि आवश्यक हो तो क्यारी को पौधों की सुरक्षा की द्रष्टि से ढक दें। सिंचाई के समय अमोनियम सल्फेट या कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट की एक हल्की मात्रा (एक बाल्टी पानी में एक मिट्टी खाद) डाल दें ताकि पौधों का विकास अच्छी तरह से हो सके। आमतौर पर नर्सरी में सभी सब्जियों की पौध 25 30 दिन में एवं प्याज की पौध 45-55 दिनों में रोपाई के लिये तैयार हो जाती है।
सिंचाई
क्यारियों में पानी देने के लिए चाहे आप जिस भी पद्धति का प्रयोग करें लेकिन सर्वोत्तम यह रहेगा कि अनेक बार पानी छिड़काव करने की बजाय सप्ताह में एक बार क्यारी में मिट्टी को पूरी तरह से गीला कर दीजिए।
फसल से खरपतवार निकालना- इसका मुख्य उद्देश्य खरपतवार नियंत्रण रखना है। जब खरपतवार प्रारम्भिक अवस्था में ही हों तभी उन्हें निकाल देना उपयुक्त रहता है।
कीट तथा रोग नियन्त्रण
घरेलू शाकवाटिका में कीटनाशक और रोग नाशक औषधियों का प्रयोग करना वांछनीय नहीं है। फसल को रोगों और कीटों से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय प्रयोग में लाने हितकर रहेंगे।
सफाई: फसलों को लगाने वाले अनेक रोगों और कीटों को रोकथाम भूमि को आरम्भ में ही तैयार करने और फसल के कचरे को साफ करने आदि से की जा सकती है। बीज एवं पौध का चयन: केवल विश्वसनीय तथा उत्तम कोटि के एन.एस.सी. बीज ही बोये। ये अंकुरण की शुद्धता के लिए परीक्षित और बीज रोग जीवाणुओं से मुक्त होते हैं। वाटिका में केवल स्वस्थ एवं रोग मुक्त पौधों का ही प्रतिरोपण करें। राष्ट्रीय बीज निगम शाकवाटिकाओं के लिए सब्जियों के बीजों के छोटे-छोटे पैक उचित दाम में उपलब्ध कराता है।
बीज का उपचार: बुवाई करने से पूर्व बीज को थाइरम (2.5 ग्रा./लीटर) एवं इमिडाक्लोरपिड (1 मि.ग्रा./लीटर) की दर से शोधित करें। राष्ट्रीय बीज निगम द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले बीज उपचारित किए हुए होते हैं। जिससे गोदाम में तथा पौधे निकलने की स्थिति में कीटों और अन्य रोगों के आक्रमण का भय नहीं रहता है। अत: यह सुझाव दिया जाता है कि:
(क) फसल पर डाइथेन एम 45 नामक रोगनाशक दवा को @2.5 ग्राम/प्रति ली की दर से पानी में छिड़काव करें।
(ख) रोगों के प्रसार को रोकने के लिए रोगयुक्त पौधों को उखाड़ दें।
कीट: विभिन्न कीटों को नष्ट करने के लिए फसल पर इमिडाक्लोरपिड या डेल्टामेथ्रिन 1 मिली/लीटर की दर से छिड़काव करें। घोल बनाते समय चिपकने वाली दवा सेन्डोविट/धानुविट नामक दवा @5 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में अवश्य मिला लें।
फसल की कटाई: फसल जब खाने योग्य/परिपक्व अवस्था में पहुंच जाए तभी उसे काट लेने से आप सब्जी की अच्छी और अधिक पैदावार प्राप्त कर सकेंगे किसी भी अतिरिक्त सब्जी उत्पादन के लिए योजनाएं पहले से ही बना लें।
सावधानी : कीटनाशी व रोग नाशक दवाईयां बहुत हानिकारक होती हैं। पौधों पर इनके प्रयोग के बाद, कुछ दिनों तक सब्जियों का प्रयोग न करें। बाद में भी पानी से अच्छी तरह धो लें। प्रयोग के बाद हाथों को साबुन से धोकर साफ कर लें।
भारत सरकार को एकीकृत बागवानी विकास मिशन परियोजना के तहत राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित।