मचान विधि द्वारा लतावर्गीय सब्जियों की अंतःफसली खेती से आय बढ़ोतरी
एक एकड़ क्षेत्रफल में मचान के लिए 8 फीट लंबाई के 600 बांस, 20 कि.ग्रा. रेशा धागा, 20 कि.ग्रा. पतला तार, 10 कि.ग्रा. पतली रस्सी की आवश्यकता।
मचान बनाने के लिए 10 x 10 फीट की दूरी पर बांस गाड़ें।
करेले की बुआई मार्च में बांस के पास थाला बनाकर करते हैं. जिसमें फलत सितंबर तक प्राप्त होती है।
तोरई की बुआई जुलाई में अलग थालों में करें, जिससे करेले की फसल समाप्त होने तक तोरई मचान पर आ जाये।
लौकी की बुआई सितंबर में करें, जिससे तोरई खत्म होने से पहले लौकी मचान पर आ जाये।
लाभ
धान-गेहूं की शुद्ध आय की तुलना में 10 गुना ज्यादा आय।
मचान तीनों फसलों के काम आता है, अतः खर्च में कमी।
बांस 3 वर्ष तक उपयोगी।
प्याज व तोरई की सहफसली खेती से आय संवर्धन
प्याज की रोपाई दिसंबर में करने के लिए नर्सरी की मध्य अक्टूबर में बुआई करें।
प्याज की रोपाई 10 फीट चौड़ाई की क्यारियां बनाकर 10 x 15 सें.मी. पर करें।
तोरई के बीजों की बुआई दिसंबर में पॉलीबैग में करके लो-टनल में रखें।
तोरई की रोपाई प्याज की दो क्यारियों के बीच नाली में 3 फीट की दूरी पर करें।
लाभ
सागा प्याज की खेती से कंद/बल्ब वाली प्याज की तुलना में शुद्ध आय में 2 गुना वृद्धि।
सागा प्याज के साथ तोरई की सहफसली खेती से 74,850 रुपये की अतिरिक्त आय।
पपीता व फूलगोभी की सहफसली खेती से आय संवर्धन
पपीते की बुआई सितंबर में पॉलीबैग में कर पौधे अक्टूबर में रोपाई के लिए तैयार कर लेते हैं।
एक एकड़ क्षेत्रफल में पपीते के पौधे 2 x 2 मीटर की दूरी पर रोपने पर 1000 पौधों की आवश्यकता होगी।
फूलगोभी की नर्सरी सितंबर में तैयार कर पपीते की दो पंक्तियों के बीच में 2 पंक्तियां फूलगोभी, 30 x 45 की दूरी पर अक्टूबर में रोपाई कर दें। केले की 2 पंक्तियों के बीच में फूलगोभी की 2 पंक्तियों की रोपाई करें।
प्रति एकड़ लाभ
पपीता व फूलगोभी की सहफसली खेती से शुद्ध आय में रुपये 40.150 प्रति एकड़ की अतिरिक्त वृद्धि होती है।