सब्जियों में जड़-गांठ रोग, मेलाइडोगाइनी (Meloidogyne sp.) सूत्रकृमि (निमेटोड) की कई जातियां फैलाती है। यह सूत्रकृमि आर्थिक महत्व की अनेक फसलों, दालों व सब्जियों को हानि पहुंचाती है। सब्जियों का जड़ गांठ रोग पूरे भारत के सब्जी उत्पादन क्षेत्रों में पाया जाता है यह रोग सूत्रकृमि के कम व ज्यादा प्रकोप के अनुसार हानि पहुंचाता है। इस सूत्रकृमि से सब्जियों की उपज में 20-50 प्रतिशत तक हानि देखी गई है। जिससे देश को 100 करोड़ रूपयें का आर्थिक नुकसान होता है। इस सूत्रकृमि का प्रकोप समय अनुसार एक प्रकार की फसल बार-बार लगाने से बढ़ता है, यह फसलों की पौध द्वारा एक क्षेत्र से दूसरें क्षेत्र में फैलता है।
जड़-गांठ सूत्रकृमि का जीवन चक्र
जड़-गांठ सूत्रकृमि अपना जीवन चक्र 25-30 दिन में पूरा कर लेते है। एक मादा सूत्रकृमि 400-500 देती है व पूरे साल में 7-8 पीड़ियां बनाती है। सूत्रकृमि जड़ों में अन्दर घुसकर कोशिकाओं को हानि पहुंचाते है जिससे कोशिकाऐं अपना आकार बढ़ा लेती है और जड़ों में छोटी-बड़ी गांठे बन जाती है। सूत्रकृमि जड़ में परजीवी रहकर अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। अण्डों से नए सूत्रकृमि निकलकर नई जड़ों की बढ़ोतरी को प्रभावित करते हैं।
पौधों में रोग के लक्षण
- सब्जियां, नगदी फसल होने की से किसान खेत में पूरे साल लगातार सब्जियां उगाते है। जिससे फसल में सूत्रकृमि रोग लग जाता है।
- सूत्रकृमि पौधों की जड़ों में छोटी-बड़ी गांठे बनाते हैं।
- रोगी पौधे में जड़ों की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने से उनकी जमीन से पोषक तत्व व पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है जिससे पौधे पीले व छोटे रह जाते हैं
- खेत में रोगी पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है पौधे मुरझाये से रहते है और फल व फूल कम व छोटे आते हैं।
- जड़-गांठ रोगी पौधों की जड़ों पर मिट्टी की फफूंद आक्रमण कर जड़ों को गला-सड़ा देती है। जिससे पौधे सूखकर मर जाते हैं।
जड़-गांठ सूत्रकृमि द्वारा फसल में हानि का रोग मापन
रोगी पौधों को जड़ सहित उखाड़ कर पानी से धोये व जड़ों में गांठ देखकर रोग मापन करें:
गांठो की संख्या वर्गीकरण
0- 00 अप्रभावित किस्म
0-25 अवरोधक किस्म
25-50 मध्य प्रभावित किस्म
50-75 प्रभावित किस्म
75-80 अति प्रभावित किस्म
जड़-गांठ सूत्रकृमि का प्रबन्धन
- जड़-गांठ रोगी खेत में 2-3 साल तक फसल चक्र अपनाते हुए सूत्रकृमि अवरोधक फसल उगाये। जैसे- गेहूं, जौ, सरसों व अफ्रीकन गेन्दा।
- गर्मियों में खेत की हल्की सिंचाई के बाद 2-3 गहरी जुताई 10-12 दिन के अन्तर पर करें। इससे सूत्रकृमि ऊपरी सतह पर आकर सूर्यतपन से मर जायेगें।
- मई-जून में पौध वाली फसल की नर्सरी लगाने से पहले, नर्सरी की क्यारी को पॉलीथिन चादर से 3-4 हफ्ते ककर, सूर्यतपन करने के बाद क्यारी में नर्सरी लगाये।
- खेत में हरी खाद के लिए सनई (क्रोटोलेरिया) को 1-2 महीने तक उगाने के बाद खेत में ही जुताई करके अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। इससे हरी खाद भी मिलेगी व सूत्रकृमि की रोगथाम भी होगी।
- खेत में सब्जियों की सूत्रकृमि रोधी किस्में लगाने से फसल को सूत्रकृमि रोग से बचाया जा सकता है।
सूत्रकृमि अवरोधक किस्में विभिन्न फसलों में इस प्रकार है।
- टमाटर:- एस. एल-120, हिसार ललित, पी-120, पी. एन. आर-7, एन टी-3, एन टी-12, बी. एन. एफ-8 और रोनिता आदि।
- बैंगन :- विजय हाईब्रिड, ब्लेक ब्यूटी, ब्लैकराउन्ड, जोनपूरी लम्बा और के एस-224
- भिण्डी :- वर्षा, विजया, विशाल और ए. एन. के-41 मध्यम सूत्रकृमि अवरोधक किस्में है। खेत में फसल बुआई से पहले कार्बोफ्यूरान 33 कि० प्रति हैक्टयर या फोरेट 10 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की मात्रा में एक व दो बार बाट कर आवश्यकता अनुसार डालकर सूत्रकृमि का नियंत्रण कर सकते हैं।
- खेत में पौध रोपाई से पहले पौधे की जड़ों को सूत्रकृमि नाशक दवा होस्टाथियान (ट्राइजोफास) - 40 ई.सी., 250 पीपीएम (2.5 मिली. / 4 ली. पानी) में 20-30 मिनट डुबोकर रखने के बाद खेत में रोपाई करें।
- उपरोक्त विधियों में से 2-3 विधियां अपनी अवश्यकता एवं क्षमता के अनुसार अपनाकर समेकित प्रबन्धन करे।
सूत्रकृमि नाशक दवा का प्रयोग खेत में कम करना चाहिये जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा। सूत्रकृमि निवारण प्रक्रिया अपनाने से पहले खेत में सूत्रकृमि रोग की जांच अवश्य करायें।