राष्ट्रीय कृषि नीति की मांग: राष्ट्रीय हाईवे की तर्ज पर राष्ट्रीय सिंचाई राजमार्ग दूसरी हरित क्रांति को जन्म दे सकता है

राष्ट्रीय कृषि नीति की मांग: राष्ट्रीय हाईवे की तर्ज पर राष्ट्रीय सिंचाई राजमार्ग दूसरी हरित क्रांति को जन्म दे सकता है
News Banner Image

Kisaan Helpline

Agriculture Mar 26, 2019

आम चुनावों की घोषणा के साथ, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कुछ दलों ने संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की पहल की है। इसका स्वागत हे- इसी तरह, देश के किसान भी चुनाव में अपनी भागीदारी के लिए इंतजार कर रहे हैं और आशा और विश्वास के साथ सभी गतिविधियों को देख रहे हैं। हालांकि पिछले दो-तीन दशकों के दौरान कृषि और किसानों के सवालों को लेकर समय-समय पर आंदोलन हुए हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ सुधार हुआ है। हाल के दिनों में, किसानों ने विरोध के माध्यम से अपनी आवाज उठाई है। बावजूद इसके कृषि से छुटकारा पाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

 

गेहूँ और चावल का बड़ा उत्पादक देश

एक समय था जब देश को PL-480 खाने के लिए मजबूर था और आज किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों के बाद, भारत गेहूं और चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। देश दाल, गेहूं, चीनी आदि के उत्पादन में भी आगे है, इसके बावजूद, देश का किसान वर्ग कई सामाजिक-आर्थिक और विकास मानकों से बहुत पीछे है। शिक्षा की समग्र गुणवत्ता का अभाव, जिसमें सुविधाओं, शिक्षा, चिकित्सा, आवास आदि की कमी शामिल है। बुनियादी जरूरतों की कमी और प्राकृतिक-कृत्रिम आपदाओं के कारण फसलों का नष्ट होना उनके मानसिक-आर्थिक मंदी का एक प्रमुख कारण है। कर्ज के बढ़ते बोझ के कारण किसानो को आत्महत्या परेशान करती रही है।

 

कृषि का घटता रकबा

कृषि के बिगड़ने के कारण दिन-प्रतिदिन का भोजन भी चिंताजनक है। पिछले चार दशकों के दौरान कृषि की वास्तविक आय में आई कमी सबक लेने योग्य है। आर्थिक सहयोग संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, उपज की कम कीमतों के कारण पिछले 17 वर्षों में किसानों को लगभग 45 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में कृषि आय अपने निम्नतम स्तर पर रही है। सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में कुल निवेश में लगातार गिरावट आई है। 2011-12 में, निवेश जीडीपी का तीन प्रतिशत था, जो 2016-17 में घटकर 2.2 प्रतिशत हो गया। ऐसी स्थिति में कृषि के दुख को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

 

लोकसभा की 342 सीटें ग्रामीण क्षेत्र से हैं

2011 की जनगणना के अनुसार, देश की कुल 542 सीटों में से 57 संसदीय सीटें शहरी क्षेत्रों में और शेष 144 अर्ध-शहरी और 342 ग्रामीण सीटों पर हैं। इसके बावजूद यह वर्ग अब तक राजनीतिक उपेक्षा का शिकार रहा है। हालाँकि, राहत की बात यह है कि अब कृषि और किसानों की समस्याएं राजनीतिक विमर्श का विषय बनने लगी हैं। आर्थिक सुधारों के बाद बाजारवाद के दौर में खेती और किसान अप्रासंगिक होते गए जो समकालीन राजनीति में पुन: मुखर हुए है। गत दिसंबर में तीन राज्यों के चुनावी नतीजे और कांग्र्रेस की कर्ज माफी नीति इसके ताजा उदाहरण हैं। अब जब केंद्र में सरकार आई है तो देश में कर्ज माफी का वादा चर्चा में है। पिछले लोकसभा चुनावों में, किसान वर्ग का प्रमुख समर्थन वर्तमान सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को मिला था।

 

ऋण माफी स्थायी समाधान नहीं है

इसमें कोई दोराय नहीं है कि एनडीए सरकार द्वारा किसानों के हित में कई बड़े फैसले लिए गए हैं। चुनावी लाभ के लिए ही सही, अब तक की सरकारें कर्ज माफी और कर्ज की सीमा बढ़ाकर किसानों की वाहवाही और समर्थन लूट रही हैं। नि: शुल्क ऋण माफी एक स्थायी समाधान नहीं है, क्योंकि पंजाब में कर्ज माफी के बावजूद पिछले एक साल में 430 किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें हैं। जब आम बजट में छोटे किसानों को सालाना 6,000 रुपये के सहयोग से उनकी आय को एक आकार देने का काम हुआ है। वहीं न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी में भी 50 फीसद की बढ़ोतरी मोदी सरकार की उपलब्धि रही। हालांकि मौजूदा घोषित एमएसपी ए-2 एफएल प्रणाली से निर्धारित है, जबकि स्वामीनाथन आयोग के अनुसार सी-2 फॉर्मूले से निर्धारित एमएसपी किसान एवं उनके संगठनों की मांग रही है।

 

किसान हितों की अनदेखी

अब किसानों के हितों की अनदेखी किसी भी पार्टी को महंगी पड़ेगी। अब प्रत्येक पार्टी को कृषि के बारे में अपना एजेंडा स्पष्ट करना होगा। जिस तरह से 1951 में एक औद्योगिक नीति तैयार की गई थी, उस तरह की राष्ट्रीय कृषि नीति क्यों नहीं हो सकती है? एमएसपी तय करने के मौजूदा त्रुटिपूर्ण तरीके को क्यों नहीं बदला जा सकता है? एमएसपी नहीं मिलने पर सजा या जुर्माने की सजा क्यों नहीं मिलनी चाहिए? किसी भी वर्ष को मानक वर्ष के रूप में आंकना, कृषि उत्पाद की कीमतों को उसके अनुपात में तय किया जाना चाहिए। हर साल गन्ना किसानों को भुगतान के लिए मिलों का चक्कर लगाना पड़ता है। इस दिशा में अब तक का कानून-सुगरकेन आदेश असफल साबित हुए हैं।

 

खेती को स्थायी पेशा

आर्थिक रूप से स्थायी पेशा बनाए जाने की कवायद देश की आर्थिकी को मजबूत और आत्मनिर्भर ही बनाएगी। इसके लिए सिंचाई सुविधा, उत्पादन लागत पर काबू पाना, बिजली एवं सड़क की सुविधा तथा सबसे महत्वपूर्ण किसानों को अपनी फसल अपने अनुकूल समय, मात्रा एवं जगह से बेचने की स्वतंत्रता उन्हें सशक्त करेंगी। जब औद्योगिक उत्पादों पर ऐसी बंदिशें नहीं हैैं तो कृषि उत्पादों पर क्यों? आए दिन किसानों द्वारा आक्रोशित होकर सड़कों पर अपने उत्पाद फेंकने की खबरें सुर्खियां बनती हैं। यहां भी बिचौलियों का बाजार ही गर्म होता है। स्पष्ट है कि खेती में तकनीकी के इस्तेमाल से शारीरिक श्रम कम होगा। इससे खेती के प्रति आकर्षण के साथ ही बुआई-कटाई समय कम हो जाएगा। सस्ते कर्ज, सब्सिडी आदि प्रोत्साहनों से इसमें निवेश बढ़ाया जा सकता है।

 

हास्यास्पद मुआवजा

इसी तरह, क्षति का आकलन भी एक बड़ी समस्या है। कई बार हास्यास्पद राशि मुआवजे के रूप में मिलती है। रिमोट सेंसिंग के माध्यम से मूल्यांकन, बीमा भुगतान 30 दिनों के भीतर किसानों के हित में होगा। भंडारण क्षमता बढ़ाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। चाय, कॉफी, रबर, तंबाकू, मछली पालन आदि के मौजूदा कमोडिटी बोर्ड में किसानों को भी भागीदारी होनी चाहिए। परिवहन के बुनियादी ढांचे, कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउसिंग और प्रोसेसिंग के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है। उनकी अनुपस्थिति में, हर साल हजारों टन अनाज सड़ जाता है और मौसमी फल-सब्जियां लागत मूल्य भी नहीं निकाल पातीं।

 

राष्ट्रीय सिंचाई राजमार्ग

बढ़ती महंगाई के अनुरूप एक तय आयु सीमा के बाद किसानों को पेंशन, प्रधानमंत्री बीमा योजना का पूरा प्रीमियम तथा ट्यूबवेल से सिंचाई की स्थिति में नि:शुल्क बिजली आदि की व्यवस्थाएं किसान वर्ग को आकर्षित करेंगी। वहीं नेशनल हाईवे की तर्ज पर नेशनल इरिगेशन हाईवे की व्यवस्था दूसरी हरित क्रांति को जन्म दे सकती है।

 

(लेखक जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

Agriculture Magazines

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline