जलवायु व तापमान :
पौधों के विकास और उनकी बढ़ोतरी के लिए 15-25 ०C तापमान उपयुक्त होता है।
भूमि का चयन :
भारी भूमि के अलावा प्याज़ की उन्नत खेती दोमट मिट्टी,बलुई दोमट में सफलतापूर्वक की जा सकती है।
भूमि व भूमि की तैयारी
प्याज की फसल में गहरी जुताई की जरुरत नहीं पड़ती है। देशी हल से 4 से 5 जुताई कर देना चाहिए। हर जुताई के बाद पाटा अवश्य चलाना चाहिए। कार्बनिक खाद जैसे कम्पोस्ट,सड़ी गली गोबर की खाद भी खेत में डालना चाहिए।
बीज की उन्नत किस्में यहाँ से जाने -
बुवाई का समय :
1. मैदानी क्षेत्र में : अक्टूबर ,माह की समाप्ति से नवंबर माह के मध्य तक
पहाड़ी क्षेत्र में –
2. निचले पहाड़ी क्षेत्र में(2000 मीटर नीचे तक) : अक्टूबर में
3. ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में (2000 मीटर ऊंचाई तक) : फरवरी से मार्च तक
बीज की मात्रा :
1. प्रत्यारोपण विधि में 8 से 10 किलोग्राम/प्रति हेक्टेयर
2. कंद द्वारा बुवाई में कंद 10 से 12 कुंतल/हेक्टेयर
3. नर्सरी द्वारा तैयार पौध हेतु 400 – 500 ग्राम/हेक्टेयर
प्याज की पौध नर्सरी में तैयार करना :
पौध के लिए नर्सरी क्षेत्र व रोपाई करने वाले क्षेत्र का अनुपात 1:20 का होता है । इस हिसाब से 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई के लिए 500 वर्गमीटर क्षेत्र में तैयार की गई नर्सरी पौध पर्याप्त रहती है। भूमि की जुताई करें ज़रूर करे। भूमि को ढेले रहित भुरभुरी व पाटा चलाकर समतल बना लेना चाहिए। किसान भाई अब 5×1 मीटर व 15-20 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियाँ बना लेनी चाहिए। बनाई हुई हर क्यारी में कार्बनिक खाद जैसे गोबर की सड़ी खाद अथवा कम्पोस्ट अच्छी तरह मिला दे।
बीज उपचारित करना :
क्यारियों को किसी भी फफूंदनाशक दवा जैसे की केप्टान,थायराम,इत्यादि की 2.5 ग्राम/किग्रा० बीज की दर से उपचारित करना चाहिये।
बीजों की बुवाई :
बीज बोने के लिए बनाई गई क्यारियों में 8-10 सेंटीमीटर दूरी पर लाइन खींचकर बीजों को 1 से 1.5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिये। बीज की बुवाई करने के बाद क्यारियों पर राख,मिट्टी,गोबर की खाद से ढक दे। इसके बाद क्यारियों पर हजारे की सहायता से हल्की सिंचाई कर दें। इससे बीजों को अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी मिलेगी। इसके आगे वाले क्रम में बनाई गई क्यारियों को सूखी घास,गन्ना की पत्ती अथवा पुवाल से ढक देना चाहिये। एक दिन का गैप कर नियमित रूप से क्यारियों में सिंचाई करनी चाहिए।
पर्याप्त धूप व हवा मिले इसके लिए जब बीज अंकुरित हो जाये तो ढके हुए घास और पत्तियों को हटा दे। पौध में रोगों से बचाव के लिए डायथेन एम 45 दवा का 0.25% घोल छिड़काव करें। बुवाई के 8 से 10 सप्ताह बाद पौधे रोपाई योग्य हो जाते हैं।
रोपाई हेतु खेत की तैयारी :
खेत में रोपाई के पहले 200 से 250 कुंतल/हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद मिला देनी चाहिए। खेत में उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण से प्राप्त परिणाम के अनुसार करना चाहिए। यदि मृदा परीक्षण समय से न हुआ हो तो क्रमशः -
1. नाइट्रोजन : 100 किलोग्राम/
2. फॉस्फोरस : 50 किलोग्राम
3. पोटाश : 100 किलोग्राम
4. सल्फर : 25 किलोग्राम
सिंचाई व जल प्रबंधन :
जाड़े के मौसम में : 12 – 15 दिन के अंतराल पर
गर्मी के मौसम में : 7 – 10 दिन के अंतराल पर
प्याज की फसल पर सदैव हल्की सिंचाई ही करनी चाहिए। आवश्यकता से अधिक पानी को जल निकासी द्वारा खेत से बाहर निकाल दें अन्यथा प्याज की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है।
प्याज की फसल की खुदाई :
1. अच्छी गुणवत्ता वाली प्याज लेने के लिए प्याज की समय खुदाई करना अति आवश्यक है।
2. खुदाई में विलम्ब करने से जड़ों में नई गांठे निकलने लगती है।
3. जिससे प्याज की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है।
4. प्याज प्रतिरोपण के 3 से 4 महीने बाद खुदाई करना चाहिए।
5. प्याज की पत्तियों का करीब 70 प्रतिशत भाग, सूखकर जमीन में गिर जाये।
6. तब खुरपी अथवा कुदाल की सहायता से प्याज की खुदाई करनी चाहिए।
7. किसान भाई ध्यान रखें खुदाई के समय मिटटी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
उपज –
इस विधि के माध्यम से 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर सकते है।