केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि प्राकृतिक खेती समय की मांग है, जिसमें लागत कम और उपज का दाम ज्यादा मिलता है। प्राकृतिक खेती अब कृषि शिक्षा का हिस्सा होगी।
केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (एटीआरआई), जबलपुर और राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर द्वारा ग्वालियर में प्राकृतिक खेती पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में यह बात कही। उन्होंने कहा कि सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है कि कृषि शिक्षा पाठ्यक्रम में जल्द ही प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के तरीकों को शामिल किया जाए।
केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कहा कि आज आवश्यकता स्वस्थ मन, स्वस्थ भोजन, स्वस्थ कृषि और स्वस्थ मनुष्य के सिद्धांतों का पालन करने की है। इसके लिए प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ना चाहिए। प्राकृतिक खेती पूर्णता की खेती है। इसमें पशुधन का महत्वपूर्ण योगदान है। “एक देशी गाय का गोबर और गोमूत्र प्राकृतिक खेती में काम करने के लिए एक आम किसान के लिए पर्याप्त है। अगर देश प्राकृतिक खेती को अपनाए तो गायें सड़कों पर नजर नहीं आएंगी, लेकिन उनका सही इस्तेमाल होगा। अब देश इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। गुजरात के डांग जिले में 100% प्राकृतिक खेती की जा रही है। हिमाचल में भी किसान इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। म.प्र. में 5 हजार गांवों में इसकी योजना बनाई गई है।
“किसान केवल कृषि से आजीविका प्राप्त करने के लिए काम नहीं करता है, बल्कि वह देश के 130 करोड़ से अधिक लोगों को खिलाने के लिए खेती करता है। भारत विश्व को खाद्यान्न उपलब्ध कराने वाला देश बन गया है। तोमर ने कहा कि आज दुनिया के कई मित्र देश भारत की ओर देखते हैं कि यदि भारत में खाद्यान्न उत्पादन अच्छा होगा तो भारत बुरे समय में हमारी मदद करेगा।
केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कहा कि रासायनिक खेती से मिट्टी की उर्वरता कमजोर हो रही है। अनुकूल बैक्टीरिया मारे जा रहे हैं। हर साल हम उर्वरकों के लिए मिट्टी की जरूरत बढ़ा रहे हैं। देश को 25 साल बाद जो संकट आने वाला है, उससे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है, इसलिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक खेती पद्धति को फिर से शुरू किया और इसे एक जन आंदोलन का रूप दिया जा रहा है।
केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कहा कि इसके साथ ही किसानों की आय बढ़ाने के लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। एमएसपी डेढ़ गुना की गई, वहीं प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के माध्यम से करोड़ों किसानों को हर साल छह-छह हजार रुपये दिए जा रहे हैं। अब तक 2.16 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा राशि सीधे किसानों के बैंक खातों में जमा कराई जा चुकी हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों को फसलों के नुकसान के बदले 1.24 लाख करोड़ रु. दिए गए हैं। किसान क्रेडिट कार्डों द्वारा 18 लाख करोड़ रु. किसानों को मिलते हैं। किसानों की ताकत बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है।
कार्यक्रम में म.प्र. के उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण तथा नर्मदा घाटी विकास राज्य मंत्री श्री भारत सिंह कुशवाह, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (कृषि प्रसार) डॉ. वेद प्रकाश चहल, राजमाता विजयाराजे कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के कुलपति डॉ. अरविंद शुक्ला, अटारी जबलपुर के निदेशक डॉ. श्यामरंजन सिंह, सहित जनप्रतिनिधि व वैज्ञानिकगण-अधिकारी उपस्थित थे।