बरसात के बाद मौसम परिवर्तन के कारण अब कपास व अन्य फसलों की बुवाई करने वाले किसान सफेद मक्खी के प्रति सर्तक रहिए। अगस्त के अंतिम सप्ताह व सितंबर में कपास की फसल में सफेद मक्खी कीट आने की संभावना रहती है। समय से मक्खी का नियंत्रण नहीं हुआ तो पौधे रोगग्रस्त हो जायेंगे जिससे उपज और उत्पाद की गुणवत्ता में काफी कमी आएगी।
सफ़ेद मक्खी कपास की फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है, ऐसे में संक्रमण को रोकने के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह से रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करें। इस कीट के लगने के बाद हरे कपास के पत्ते काले हो जाते हैं, इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है। पौधा सूखना शुरू हो जाती है। तुरंत प्रभाव से कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर दवाओं का छिड़काव करें। इसके लिए Imidacloprid 200 SL (17.8 % w/w) और Thiamethoxam 25% WG (थियामेथोक्सम 25% WG) नामक दवाओं का छिड़काव किया जा सकता है। इस बीमारी को दवाओं के छिड़काव से रोका जा सकता है। लेकिन यदि एक बार बढ़ गई तो बाद में नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता है।
सफ़ेद मक्खी को नियंत्रित करने का तरीका
2 किलोग्राम यूरिया में आधा किलोग्राम जिंक (21 प्रतिशत) के साथ इसे 200 लीटर पानी में मिलाकर भी इस बीमारी से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। किसान कपास की फसल पर प्रति एकड़ एक लीटर नीम के तेल को 200 लीटर पानी में मिलाकर इसका छिड़काव करे तो सफेद मक्खी के प्रकोप को समाप्त किया जा सकता है।
सफ़ेद मक्खी की पहचान
सफेद मक्खी छोटा सा तेज उडऩे वाला पीले शरीर और सफेद पंख का कीट है। छोटा एवं हल्के होने के कारण ये कीट हवा द्वारा एक दूसरे से स्थान तक आसानी से चले जाते हैं। इसके अंडाकार शिशु पतों की निचली सतह पर चिपके रहकर रस चूसते रहते हैं। भूरे रंग के शिशु अवस्था पूरी होने के बाद वहीं पर यह प्यूपा में बदल जाते हैं। ग्रसित पौधे पीले व तैलीय दिखाई देते हैं। जिन काली फंफूदी लग जाती है। यह कीड़े न कवेल रस चूसकर फसल को नुकसान करते हैं।