फसलों को अधिक हानि पहुंचाने वाला हानिकारक कीट दीमक, जानिए दीमक के नियंत्रण का सरल तरीका

फसलों को अधिक हानि पहुंचाने वाला हानिकारक कीट दीमक, जानिए दीमक के नियंत्रण का सरल तरीका
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Kisaan Helpline

Agriculture Aug 20, 2021

भारत में 45% से अधिक फसल क्षति दीमक के कारण होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार दीमक कई प्रकार की होती है। दीमक जमीन के अंदर उगने वाले पौधों को नष्ट कर देती है। कीड़े जमीन में सुरंग बनाते हैं और पौधों की जडों को खा जाते हैं। प्रकोप अधिक होने पर वे तना भी खाते हैं। इस कीट का वयस्क मोटा होता है, जिसका रंग भूरा-भूरा होता है, और लंबाई लगभग एक मिलीमीटर होती है। इस कीट की सूड़ियां मिट्टी के बने दरारों या गिरे हुए पत्तों के नीचे छिप जाते हैं। पत्तियां या पौधों के नरम तने को रात के समय में काट देती हैं आलू के अलावा टमाटर, मिर्च, बैंगन, फूलगोभी, पत्तागोभी, सरसों, राई, मूली, गेहूँ आदि फसलों में ज्यादा नुकसान होता हैं। मनुष्य के लिए दीमक एक दुसाध्य पीड़क (चमेज) है। दीमक की बाम्बी को स्वच्छ मीठे जल की उपस्थिति का द्योतक माना जाता है।

किसान फसल को उगाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन किसी न किसी प्रकार के कीट फसलों को नष्ट कर देते हैं। वैज्ञानिक पद्धति अपनाकर उन्हें कीटनाशकों के बिना नियंत्रित किया जा सकता है। इससे कीटनाशकों पर उनका खर्च भी कम होगा। किसानों को खेत की मिट्टी से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उन्हें फसल उगाने के लिए भी बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है। लेकिन मिट्टी में उगने वाले कीड़े, जैसे दीमक आदि फसलों को नष्ट कर रहे हैं। दीमक एक पोलीफेगस कीट है। यह सभी फसलों को बर्बाद करता है।

दीमकों का भोजन
दीमकों का प्रमुख आहार लकड़ी है। इनके जबड़े लकड़ी को काटने में सक्षम होते है। दीमक मनुष्य द्वारा उपयुक्त लकड़ी और चमड़े की वस्तुओं के सबसे बड़े शत्रु हैं।

दीमकों का नियंत्रण
इन कीटों से फसलों को सुरक्षित रखने के लिए किसानों को कीटनाशकों पर बहुत खर्च करना पड़ता है। किसान फसलों और कीट नियंत्रण के लिए वैज्ञानिक पद्धति अपनाकर कीट नियंत्रण को अधिक प्रभावी ढंग से कर सकते हैं। दीमक से बचाव के लिए कच्चे गोबर को कभी खेत में नहीं डालना चाहिए। कच्चा गोबर दीमक का पसंदीदा भोजन है। इन कीटों के नियंत्रण के लिए बीजों का उपचार बिवेरिया बेसियाना फफुद नासक से किया जाना चाहिए। 20 ग्राम बिवेरिया बेसियाना के फफूंद नाशक से उपचारित करने के बाद एक किलो बीज बोना चाहिए।

दीमक नियंत्रण के देशी उपाय
  • मक्का के भुट्टे से दाना निकलने के बाद, जो गिण्डीयां बचती है, उन्हें एक मिट्टी के घड़े में इक्टठा करके घड़े को खेत में इस प्रकार गाढ़े कि घड़े का मुँह जमीन से कुछ बाहर निकला हो। घड़े के ऊपर कपड़ा बांध दे तथा उसमें पानी भर दें। कुछ दिनों में ही आप देखेंगे कि घड़े में दीमक भर गई है। इसके उपरांत घड़े को बाहर निकालकर गरम कर ले ताकि दीमक समाप्त हो जावे। इस प्रकार के घड़े को खेत में 100-100 मीटर की दूरी पर गड़ाए तथा करीब 5 बार गिण्डीयाँ बदलकर यह क्रिया दोहराएं। खेत में दीमक समाप्त हो जाएगी।
  • सुपारी के आकार की हींग एक कपड़े में लपेटकर तथा पत्थर बांधकर खेत की ओर बहने वाली पानी की नाली में रख दें। उससे दीमक तथा उगरा रोग नष्ट हो जावेगा। 
  • एक किग्रा निरमा सर्फ को 50 किग्रा बीज में मिलाकर बुआई करने से दीमक से बचाव होता है ।
  • जला हुआ मोबिल तेल को सिचाई से समय खेत की ओर बहने वाली पानी की नाली से देने से दीमक से बचाव होता है।
  • एक मिट्टी के घड़े में 2 किग्रा कच्ची गोबर, 100 ग्राम गुड 3 लीटर पानी में घोलकर, जहा दीमक की समस्या हो वहां पर इस प्रकार गादे कि घड़े का मुँह जमीन से कुछ बाहर निकला हो। घड़े के ऊपर कपड़ा बांध दे तथा उसमें पानी भर दें। कुछ दिनों में ही आप देखेंगे कि घड़े में दीमक भर गई है, इसके उपरांत घड़े को बाहर निकालकर गरम कर लें ताकि दीमक समाप्त हो जावे। इस प्रकार के घड़े को खेत में 100-100 मीटर की दूरी पर गड़ाए तथा करीब 5 बार मिण्डीयाँ बदलकर यह क्रिया दोहराएं। खेत में दीमक समाप्त हो जावेगी।

रासायनिक नियंत्रण
  • लिंडेन पाउडर 1 किग्रा/10 लीटर पानी में घोलकर 1 एकड़ खेत में बुआई से पहले छिड़काव करना चाहिए। 
  • एक किलो बीजों को चार मिलीलीटर क्लोरोपाइरीफास दवा से उपचारित किए जा सकते हैं।
  • दीमक को नियंत्रित करने के लिए दो लीटर क्लोरोपायरीफॉस दवा को 4 किलो रेत में मिलाकर प्रति हेक्टेयर बुवाई के समय खेत में डालना होता है।
  • इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बुवाई करने से पहले पिछली फसल के अवशेषों को एकत्रित कर नष्ट करना बेहतर होता है।

जैविक नियंत्रण 
कीट और रोग नियंत्रण के लिए जैविक युक्तियाँ किसानों के अनुभव के आधार पर तैयार और उपयोग की गई है। 
गाय मूत्र, नीम की निम्बोली, नीम केक, ट्राइकोडर्मा, आइपोमिया(बेशरम) पत्ती घोल, मट्ठा, मिर्च, लहसुन, लकड़ी की राख आदि के प्रयोगो और उपयोग से कीट और रोगों का जैविक तरीके से उपचार किया जा सकता है।

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