मृदा उर्वरता बनाये रखने के लिए कार्बनिक खादों तथा कम्पोस्ट खाद, वर्मी खाद के उपयोग के साथ-साथ फसल चक्र इस ढंग से अपनाना होगा की मृदा की उर्वराशक्ति बनी रहे। वर्तमान समय में फसल चक्र का प्रयोग किसान भाईयों के लिए बहुत आवश्यक हो गया हैं।
फसल चक्र के लाभ
मृदा उर्वरता में वृद्धि:
फसल चक्र द्वारा मृदा से पोषक तत्वों व नमी का अवशोषण संतुलित रूप से होने के कारण उर्वरता बढ़ती है।
मृदा की भौतिक व जैविक दशा में सुधार:
दलहनी फसलों के समावेश में मृदा की भौतिक दशा सुधार होता हैं। दलहनी फसलों द्वारा नाइट्रोज़न स्थिरीकरण जीवाणुओं की क्रियाशीलता से मृदा की जैविक दशा भी सुधरती हैं।
खरपतवार नियंत्रण में सहायता:
खेत में हर वर्ष बरसीम उगने से खरपतवार कासनी व निरंतर गेहूँ बोन से गेहूँ सा खरपतवार की मात्रा बढ़ जाती है। रबी मौसम में एक वर्ष गेहूँ व एक वर्ष बरसीम बोने से कासनी, गेहूँ सा आदि खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है। बरसीम की बार-बार कटाई से गेहूँ सा नष्ट हो जाता हैं।
किसान की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति:
उचित फसल चक्र अपनाने से किसान की दैनिक घरेलु आवश्यकताओं जैसे खाद्दान,दालें तेल, सब्जियां आदि को पूरा करने में मदद मिलती हैं।
पादप संरक्षण में सहायता:
फसल चक्र में एक ही कुल की फसलें निरंतर न बोने से फसलों में किट-रोग नियंत्रण हो जाता है।
एक वर्षीय फसल चक्र:
*बाजरा-जीरा, *तिल-गेहूँ, *ग्वार-गेहूँ, *बाजरा-गेहूँ/मेथी/सरसों, *अरहर-गेहूँ, *मक्का-चना, *मूंगफली-गेहूँ/चना/जौ, *मक्का-मसूर, *ज्वार/मूंगफली-गेहूँ/चना, *धान/ज्वार/मक्का-गेहूँ
व्दिवर्षीय फसल चक्र:
*ग्वार-गेहूँ-बाजरा-चना, *मक्का-गेहूँ-उड़द-सरसों, *कपास-गेहूँ-ग्वार-गेहूँ/सरसों
त्रिवर्षीय फसल चक्र:
*मक्का-गन्ना-पेडी-गेहूँ, *कपास-मेथी-गन्ना-पेडी