Perilla Farming: उत्तर-पूर्वी राज्यों में इस फसल को मुख्यतः झूम खेती में उगाया जाता है। इसके अलावा बगीचों या घर के आसपास की मृदा पर भी पेरिल्ला को उगाया जाता है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में इसे खेत की मेड़ों व किनारों पर उगाया जाता है।
बीज की मात्रा
बुआई के लिए प्रति एकड़ 1.5-2.0 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।
बुवाई का समय
बुआई सामान्यतः अप्रैल-मई में वर्षा ऋतु के आगमन पर करते हैं। अक्टूबर-नवम्बर में पौधा पककर तैयार होता है तथा पकने के तुरन्त बाद इसके बीजों को खेत की मेड़ों व किनारों पर बो दिया जाता है या बीज स्वतः ही छिटककर जमीन पर गिर जाते हैं। ये बीज फरवरी मार्च तक सुषुप्तावस्था में पड़े रहते हैं तथा बाद में अनुकूल स्थिति आने पर स्वतः ही उग आते हैं।
खेत तैयारी और बुवाई का तरीका
बुआई से पहले मृदा में अच्छी तरह से खाद विशेषतः गोबर या कम्पोस्ट को मिलाया जाता है। पेरिल्ला के बीज की आमतौर पर सीधी बुआई की जाती है। इसे नर्सरी क्यारी में उगाकर रोपाई भी की जा सकती है। नर्सरी तैयार करने के लिये सर्वप्रथम मृदा व गोबर की खाद अच्छी तरह मिलाकर 25 सें.मी. उंची व 100 सें.मी. चौड़ी क्यारी तैयार की जाती है। फिर उसमें बीज को मृदा की सतह पर डालकर ऊपर से हल्की मृदा फैला दी जाती है। थोड़ी मात्रा में पानी डाल दिया जाता है। ताकि नमी बनी रहे और फिर क्यारी को पुआल से ढक दिया जाता है। जैसे ही अंकुरण होता है पुआल को ऊपर से हटा दिया जाता है। पेरिल्ला बीज अंकुरण में 5-15 दिनों का समय लगता है। 5-6 पत्तियां निकल जाने के बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। रोपाई के समय पौधे से पौधे की दूरी 45 x 60 सें.मी. तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 80-100 सें.मी. रखना उचित रहता है।
फसल की कटाई
पौधों में बुआई होने के लगभग 4 महीने बाद फूल आना प्रारम्भ होते हैं तथा पूर्णतः फूल आने के बाद लगभग 35-45 दिनों बाद फसल पककर तैयार हो जाती है। फसल की कटाई उपयुक्त समय पर करना आवश्यक है अन्यथा बीज स्फुटित होकर जमीन पर गिरने की आशंका रहती है।
पेरिल्ला के उपयोग
खाद्यान्न के रूप में
इसके तेल को विभिन्न प्रकार के खाने पकाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह पौष्टिक गुणों से युक्त होता है। इसकी खली का उपयोग पशु आहार एवं खाने के रूप में भी किया जाता है। पत्तियों का उपयोग सब्जी के तौर पर करते हैं। सरसों के तेल की भांति उत्तराखण्ड में पेरिल्ला के बीजों से निकले तेल का उपयोग खाना पकाने के लिए किया जाता है । जापान, कोरिया और वियतनाम के लोग इसके बीज, तेल व पत्तियों को खाद्य पदार्थों को स्वादिष्ट बनाने हेतु उपयोग में लाते हैं। पत्तियों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। सूखे तने को ईंधन के रूप में भी उपयोग में लिया जाता है। बीज स्वादिष्ट होने के कारण बिना भुने हुए भी खाये जाते हैं। उत्तराखण्ड में भुने हुए मिलाकर मसालेदार चटनी तैयार की जाती है। बीजों को प्याज, लहसुन, पुदीना, जीरा और अदरक के साथ पीसते हैं। इसमें नीबू का रस पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी इसके बीज के तेल का उपयोग खाना बनाने में किया जाता है तथा ताजी पत्तियों को सब्जी के रूप में और कच्चे बीजों को चावल के साथ पकाकर व सब्जी में मिलाकर भोजन को स्वादिष्ट बनाने हेतु उपयोग किया जाता है। मणिपुर राज्य में भुने हुए बीजों का उपयोग सिंगजू नामक सलाद में किया जाता है।
अन्य उपयोग
इसके तेल का उपयोग पेंट, वार्निश, लिनोलियम और प्रिंटिंग स्याही में सुखाने वाले तेल के रूप में और कपड़े पर जलरोधक कोटिंग के रूप में भी किया जाता है। पेरिल्ला का तेल गुलाब जल का भी विकल्प हो सकता है। इसकी पत्तियों में पाए जाने वाले सुगंधित तेल का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन उत्पादन के लिए किया जाता है।