1. एक ही प्रकार की फसल हर वर्ष नहीं उगाये। साल में एक बार दाल वाली फसल भी बोनी चाहिए। बाजरा, ज्वार, तिल, के बाद सर्दी में चना, मसूर, बोये। गेहूं, जौ, सरसों के बाद जो बरसात में मूंग, मोठ, उड़द, अरहर, मूंगफली बोनी चाहिए। ये गाठें यूरिया की छोटी-छोटी फैक्ट्रियों का काम करती है।
2. फसलों के अवशेषों में आधा प्रतिशत तक नत्रजन होता है इसलिए इसका कंपोस्ट बनाकर उपयोग करें। इसके पोषक तत्वों के साथ भूमि में कार्बन की मात्रा बढ़ती है जो जमीन में कार्बन को रोकने के लिए आवश्यक है।
3. पशुओं के पेशाब में गोबर से भी अधिक मात्रा में नत्रजन होती है इसका समुचित उपयोग करने के लिए पशु के बैठने के स्थान पर रॉकफॉस्फेट की थोड़ी मात्रा डालनी चाहिए। पशु के पेशाब में मिले हुए रॉकफॉस्फेट को सुपर कंपोस्ट बनाने में काम लेना चाहिए, इससे कंपोस्ट में नत्रजन की मात्रा में काफी बढ़ोतरी हो जाती है।
4. उपलब्ध गोबर व कचरे से केंचुआ खाद (वर्मी कंपोस्ट) तैयार करनी चाहिए। वर्मी कंपोस्ट में पोषक तत्वों की मात्रा सामान्य कंपोस्ट के मुकाबले ज्यादा होते हैं।
5. दलहनी फसलों के बीज को राइजोबियम जीवाणु खाद से उपचारित करके बुवाई करें। जड़ों में उपस्थित रहकर यह जीवाणु वातावरण नत्रजन को सीधे पौधों को उपलब्ध कराता है, साथ ही अगले मौसम में उगाई जाने वाली फसल के लिए भी जमीन में नत्रजन की उपलब्धता बढ़ाता है।
6. बाजरा, ज्वार, गेहूं व जौ में एजेटोबेक्टर जीवाणु खाद से बीज का उपचार कर बुवाई करनी चाहिए। यह जमीन में स्वतंत्र रूप से रह कर हवा की नत्रजन को खाता रहता है और बढ़ता रहता है। कुछ समय बाद यह जीवाणु मर जाता है और इसके शरीर की नत्रजन कुछ समय बाद पौधों को मिल जाती है। इसी प्रकार धान की फसल में एजोला का उपयोग कर हवा की नत्रजन का उपयोग संभव है।
7. ग्वार, ढेंचा, सनई की हरी खाद से जमीन में नत्रजन व कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है।
8. नीम, अरंडी, करंज की खली खलियों का उपयोग भी नत्रजन की आपूर्ति के लिए किया जा सकता है। बुवाई के 1 माह पहले 10-12 टन खली को एक हेक्टेयर खेत में मिलाएं।
9. ऊंट की खाद, मुर्गी की बीट, भेड़ बकरियों की मींगनी, खून की खाद, हड्डी की खाद आदि का उपयोग जमीन में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाता है। अतः इनका उपयोग भी फायदेमंद रहता है।
उपरोक्त सभी उपायों को समन्वित रूप से अपनाकर नत्रजन की आपूर्ति बनाए रखी जा सकती है।