1. पशुओं को समय-समय पर चिकित्सक के परामर्श के अनुसार रोगो से बचाव के टीके लगवा लेने चहिये।
2. रोगी पशु को स्वस्थ पशु से तुरन्त अलग कर दें व उस पर निगरानी रखें, क्युकी दोनों को साथ रखने पर रोग फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
3. रोगी पशु का गोबर , मूत्र व जेर को किसी गढ़ढ़े में दबा कर उस पर चूना डाल दें।
4. मरे पशु को जला दें या कहीं दूर 6-8 फुट गढ़ढ़े में दबा कर उस पर चूना डाल दें।
5. पशुशाला के मुख्य द्वार पर ‘फुट बाथ’ बनवाएं ताकि खुरों द्वारा लाए गए कीटाणु उसमें नष्ट हो जाएँ।
6. पशुशाला की सफाई नियमित तौर पर विराक्लीन से करें।
7. पशुशाला को विषाणुरहित रखने के लिये ,पशुशाला में नियमित रूप से विराक्लीन ( Viraclean ) का छिड़काव करनी चाहिए।