पंचगव्य एक चमत्कारी जैविक खाद, इसके उपयोग से मिट्टी की सेहत सुधार सकते हैं किसान

पंचगव्य एक चमत्कारी जैविक खाद, इसके उपयोग से मिट्टी की सेहत सुधार सकते हैं किसान
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Kisaan Helpline

Agriculture Sep 05, 2023

वर्तमान समय को देखते हुए किसानों को जैविक खेती की ओर बढ़ने की जरूरत है। पिछले कुछ दशकों में रासायनिक उर्वरकों और खाद के प्रयोग से भूमि की उर्वरता लगातार कम होती जा रही है। इस प्रकार भविष्य में भूमि रासायनिक हो जायेगी। इसके लिए पुरानी कृषि व्यवस्था को फिर से अपनाना होगा और कम लागत में अधिक मुनाफा के मूल मंत्र को सिद्ध करना होगा। भारत प्राचीन काल से ही जैविक कृषि पर आधारित देश रहा है। सदियों से विभिन्न प्रकार के उर्वरकों का उपयोग किया जाता रहा है, जो पूरी तरह से गाय के गोबर और गोमूत्र पर आधारित होते हैं। ऐसे कई प्रकार के तरल जैविक उर्वरक आज पारंपरिक रूप से उपलब्ध हैं।

पंचगव्य का अर्थ है पंच+गव्य, यानी गौमूत्र, गोबर, दूध, दही और घी जैसे पांच गौ उत्पादों के मिश्रण से बने पदार्थ। प्राचीन समय में इसका उपयोग खेतों की उर्वरता के साथ-साथ पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी किया जाता था। पंचगव्य एक अत्यधिक प्रभावी जैविक खाद है। यह पौधों की वृद्धि और विकास में मदद करता है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसे देसी गायों से प्राप्त पांच उत्पादों से बनाया गया है। देसी गाय के उत्पादों में पौधों के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।

पंचगव्य बनाने के लिए आवश्यक सामग्री
  • 5 किलो ताजा देसी गाय का गोबर
  • देसी गाय का 3 लीटर ताजा गौमूत्र
  • 2 लीटर देसी गाय का ताजा कच्चा दूध
  • 2 लीटर देसी गाय के दूध से बना दही
  • 500 ग्राम देसी गाय का घी
  • 500 ग्राम गुड़
  • 12 पके हुए केले

बनाने की विधि
  • पहले दिन 5 किलोग्राम गाय का गोबर, 1.5 लीटर गोमूत्र, 2 लीटर ताजा कच्चा दूध-दही, 500 ग्राम देसी घी, 500 ग्राम गुड़ और 10-12 पके केले मिलाकर एक मिट्टी के घड़े में रख दें।
  • इसे अगले तीन दिनों तक रोजाना अपने हाथों से हिलाएं। अब चौथे दिन सभी सामग्री को एक साथ मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रख दें और ढक्कन बंद कर दें।
  • इस मिश्रण को 15 दिन तक छाया में रखना है और रोज सुबह-शाम लकड़ी के साथ अच्छी तरह मिलाना है।
  • 18 दिनों के बाद पंचगव्य उपयोग के लिए तैयार हो जाएगा।
  • जब इसका खमीर बन जाए और सुगंध आने लगे तो समझ लें कि पंचगव्य तैयार है। इसके विपरीत, यदि खट्टी गंध आ रही हो तो हिलाने की प्रक्रिया को एक सप्ताह और बढ़ा दें। इस प्रकार पंचगव्य तैयार हो जाता है। अब आप 10 लीटर पानी में 250 ग्राम पंचगव्य मिलाकर इसका उपयोग कर सकते हैं।
  • इसका उपयोग उर्वरक, रोग निवारण, कीटनाशक और विकास उत्प्रेरक के रूप में किया जा सकता है। इसे एक बार बनाकर 6 महीने तक इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे बनाने की लागत 70 रुपये प्रति लीटर है।
उपयोग विधि

250 ग्राम पंचगव्य को 10 लीटर पानी में मिलाकर किसी भी समय फसलों में उपयोग किया जा सकता है। इसका उपयोग बीजोपचार से लेकर कटाई तक 25 से 30 दिन के अंतराल पर किया जा सकता है। इसका उपयोग फसलों, सब्जियों, फलों और औषधीय पौधों पर महीने में दो बार किया जा सकता है।

बीज एवं जड़ उपचार द्वारा

बीज या जड़ों को पंचगव्य के 3 प्रतिशत घोल में 10-15 मिनट तक डुबोने के बाद 30 मिनट तक छाया में सुखाकर बुआई करें। 300 मिलीलीटर पंचगव्य 60 किलोग्राम बीज या जड़ों को उपचारित करने के लिए पर्याप्त है।

छिड़काव के लिए

पंचगव्य के 3 प्रतिशत घोल का छिड़काव फलों, पेड़-पौधों और फसलों पर किया जा सकता है। एक एकड़ फसल के लिए 3 लीटर पंचगव्य पर्याप्त है। 3 प्रतिशत घोल को सिंचाई जल में प्रवाहित कर उपयोग किया जा सकता है।

भंडारण के लिए

भंडारण से पहले बीजों को पंचगव्य के 3 प्रतिशत घोल में 10-15 मिनट तक भिगो दें। इसके बाद सुखाकर स्टोर कर लें। ऐसा करने से बीजों को लगभग 1 वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

पंचगव्य का प्रभाव
  • पंचगव्य के छिड़काव से पेड़-पौधों की पत्तियों के आकार में अधिक वृद्धि होती है।
  • प्रकाश संश्लेषण की क्रिया भी तेजी से होती है।
  • इससे पौधे की जैविक क्षमता बढ़ती है और उपापचय प्रक्रिया तेज होती है।
  • तना विकसित होकर मजबूत हो जाता है।
  • परिपक्वता के समय जब पौधे पर फल लगते हैं तो पौधा फलों का भार सहन करने में सबसे अधिक सक्षम होता है।
  • इसके प्रभाव से शाखाएँ भी अधिक विकसित एवं मजबूत हो जाती हैं।
  • जड़ें अधिक विकसित और घनी होती हैं और वे लंबे समय तक ताजा और स्वस्थ रहती हैं।
  • जड़ें आवश्यक पोषक तत्वों और पानी की अधिकतम मात्रा को अवशोषित करती हैं।
  • इससे पौधा स्वस्थ रहता है. पौधों में तेज़ हवा. अधिक वर्षा एवं सूखा सहन करने तथा रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
  • पंचगव्य के प्रयोग से फसल की पैदावार अच्छी होती है।
  • यह प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी एक समान फसल उत्पादन में मदद करता है।
इस चमत्कारी पंचगव्य जैविक उर्वरक को अपनाकर, किसान न केवल फसल की पैदावार बढ़ा सकते हैं, बल्कि बेहतर रंग, स्वाद, पोषण मूल्य और विषाक्त अवशेषों के बिना अनाज, फल, फूल और सब्जियां भी पैदा कर सकते हैं। इससे बाजार में फसल को अधिक कीमत मिल सकती है। यह काफी सस्ती और अधिक प्रभावी प्रक्रिया है। इससे कम लागत में अधिक लाभ मिलता है।

पंचगव्य के उपयोग में सावधानियां
  • खेत में नमी रहना जरूरी है
  • एक खेत से पानी दूसरे खेत में जाने से रोकें
  • छिड़काव सुबह 10 बजे से पहले और दोपहर 3 बजे के बाद करें
  • पंचगव्य मिश्रण को हमेशा छायादार और ठंडी जगह पर रखें।
  • इसे बनाने के बाद 6 महीने तक इसका प्रयोग अधिक प्रभावी होता है।
  • पंचगव्य के उचित लाभ के लिए इसका प्रयोग 15 दिन में एक बार करना जरूरी है।

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