Organic Farming: जैविक खेती के लिए जैविक खाद बनाने की विधियाँ और जानिए जैविक खेती के लाभ के बारे में

Organic Farming: जैविक खेती के लिए जैविक खाद बनाने की विधियाँ और जानिए जैविक खेती के लाभ के बारे में
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Kisaan Helpline

Agriculture Aug 12, 2022

कृषि भारतवर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है और कृषकों की आय का मुख्य साधन है। भारतवर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था परन्तु बदलते परिवेश में गौ पालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह के रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है। इसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थों के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग हानिकारक होता है। रासायनिक खादें सतह और भूमिगत जल प्रदूषण के लिए भी उत्तरदायी होती हैं। इसके अतिरिक्त, नाइट्रोजन खादों के अत्यधिक प्रयोग से फसलों पर रोग और नाशीजीवों के प्रकोप की भी संभावना रहती है। रासायनिक खादों के निरंतर प्रयोग से मृदा में ह्यूमस और पोषक तत्वों की कमी हो जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप उसमें सूक्ष्म जीव कम पनपते हैं। रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग के कारण भारतीय मृदाओं में कार्बनिक पदार्थों और नाइट्रोजन की आमतौर पर कमी पाई जाती है।

इसलिए इस प्रकार की सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत वर्षों से निरन्तर टिकाऊ खेती (प्राकृतिक खेती) के सिद्धांत पर खेती करने की सिफारिश की गई। इस विशेष प्रकार की खेती को हम जैविक खेती (Organic Farming) के नाम से जानते हैं। 

जैविक खेती के लाभ
  • भूमि में जैविक कार्बन का स्तर बढ़ता है जिससे भूमि के उपजाऊपन में वृद्धि होती है।
  • जैविक खेती से भूमि की जल धारण शक्ति में वृद्धि होती है व भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है। रासायनिक खाद भूमि के अंदर के पानी को जल्दी सोख लेते हैं जबकि जैविक खाद जमींन की ऊपरी सतह में नमी बना कर रखते हैं जिससे सिंचाई की आवश्यकता रासायनिक खेती की अपेक्षा कम पड़ती है।
  • जैविक खेती से प्रदूषण में कमी आती है जबकि रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों से पर्यावरण प्रदूषित होता है। खेतों के आसपास का वातावरण जहरीला हो जाता है जिससे वहाँ के वनस्पति, जानवर एवं पशु पक्षी मरने लगते हैं। जैविक खादों एवं जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से वातावरण शुद्ध रहता है। 
  • जैविक खेती से उत्पादों की गुणवत्ता रासायनिक खेती की तुलना में बेहतर होती है एवं उत्पाद ऊँचे दामों में बाजार में बिकते हैं जिससे किसानों की औसत आय में वृद्धि होती है।
  • स्वास्थ्य की दृष्टि से जैविक उत्पाद सर्वश्रेष्ठ होते हैं एवं इनके प्रयोग से कई प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है। 
  • रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।
  • कचरे का उपयोग खाद बनाने में होने से गाँव में सफाई बनी रहती है व बीमारियों में कमी आती है।
जैविक खेती हेतु खाद का निर्माण (Manure production for organic farming)
रासायनिक खाद फसल के लिए उपयुक्त जीवाणुओं को नष्ट कर देती है। इन सूक्ष्म जीवाणुओं के तंत्र को विकसित करने के लिए जैविक खाद का प्रयोग किया जाना चाहिए जिससे फसल के लिए मित्र जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि, हवा का संचार, पानी को पर्याप्त मात्रा में सोखने की क्षमता में वृद्धि होती है। जैविक खाद बनाने की कुछ प्रमुख विधियां निम्न हैं

गोबर खाद (cow dung manure)
यह खाद सर्वाधिक प्रचलित खादों में से एक है। परंपरागत खाद तैयार करने में पांच से आठ माह लगते हैं। खाद में खरपतवारों के बीज गल सड़ कर नष्ट हो जाते हैं। खाद में दीमक भी नहीं लगती। उचित मात्रा में तापमान व नमी मिलने से सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता पुरानी विधि की तुलना में तीव्र रहती है। अच्छी तरह से गलने व सड़ने के कारण पोषक तत्व शीघ्र व संतुलित मात्रा में फसल को मिलते हैं। सही रूप से तैयार गोबर की खाद में नत्रजन 0.4- 0.6 प्रतिशत, फास्फोरस 0.2-0.3 प्रतिशत, पोटाश की मात्रा 0.5-0.7 प्रतिशत व अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी उचित मात्रा में पाये जाते हैं।


कम्पोस्ट खाद (compost manure)
यह खाद वनस्पति को गलाकर तैयार करते हैं। इन अपशिष्टों में पत्तियाँ, फसल अवशेष, जड़ें, ठूंठ, पुआल, घास पात आदि शामिल हैं। कम्पोस्ट के लिए गड्ढा खोदें, जो तीन फुट लंबा व तीन फुट चौड़ा होना चाहिए। गड्ढे में पहले चारों तरफ पानी का छिड़काव कर उसे नम कर लें और उसमें पत्ते, पौधे, रसोई व घर का अन्य गलने योग्य कचरा 30 से.मी. ऊंचाई तक भर दें। इस पर एक तह गोबर की बिछा दें। इसके बाद पुनः पानी का छिड़काव करके कूड़ा-कचरा, पत्ते आदि भर दें। इसके बाद पूरे गड्ढे को पांव से दबा दें और उस पर पर्याप्त पानी डाल दें। इस प्रकार गड्ढे को भरपूर भर कर मिट्टी से अच्छी तरह बंद कर दें और समय-समय पर पानी डालते रहें। इस प्रक्रिया से घर के कूड़े-कचरे का सदुपयोग भी हो जाता है। तैयार कम्पोस्ट भुरभुरा, भूरे से गहरे भूरे रंग का होता है। यह खाद, नत्रजन के साथ साथ फास्फोरस, पोटाश व अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों से परिपूर्ण होती है। यह खाद 5-6 माह में तैयार होती है।


केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट) (vermi compost)
मृदा उर्वरता को बढ़ाने के साथ साथ उपज में वृद्धि एवं गुणवत्ता प्रदान करने में केंचुआ खाद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उत्तम किस्म की केंचुआ खाद दुर्गंध रहित होने के साथ साथ वातावरण के अनुकूल होती है जो किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं फैलाती। किसान, केंचुआ खाद 45-60 दिन में बना सकते हैं जबकि अन्य खाद बनाने में 5-6 माह लग जाते हैं। यदि बेरोजगार युवक युवतियाँ इसे एक व्यवसाय के रूप में अपनाएं तो यह एक लाभकारी व्यवसाय है। केंचुआ खाद में दोहरा लाभ होता है, एक तो फसल की पैदावार बढ़ती है और दूसरा खाद को अन्य किसानों को बेचकर पैसा कमाने से रोजगार मिलता है। केंचुआ खाद में नत्रजन 1-2.25 प्रतिशत, फास्फोरस 1-1.5 प्रतिशत, पोटाश 2-3 प्रतिशत तथा सल्फर 2 प्रतिशत पाया जाता है।


हरी खाद (green manure)
बिना गले-सड़े हरे पौधे (दलहनी एवं अन्य फसलों अथवा उनके भाग) को जब मृदा की नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिये खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरी खाद देना कहते हैं। मृदा के लगातार दोहन से उसमें उपस्थित पौधे की बढ़वार के लिये आवश्यक तत्त्व नष्ट होते जा रहे हैं। इनकी क्षतिपूर्ति हेतु व मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिये हरी खाद एक उत्तम विकल्प है। हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं जिसकी खेती मुख्यतः भूमि में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने तथा उसमें जैविक पदार्थों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है। प्रायः इस तरह की फसल को इसकी हरी स्थिति में लगभग 6 हफ्ते बाद ही हल चलाकर मिट्टी में मिला दिया जाता है जैसे ढेंचा, लोबिया, मूंग, सनई इत्यादि। यह 50 60 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर की आपूर्ति करता है।


बायोगैस स्लरी (biogas slurry)
बायोगैस संयंत्र में गोबर गैस की पाचन क्रिया के बाद 25 प्रतिशत ठोस पदार्थ का रूपान्तरण गैस के रूप में होता है और 75 प्रतिशत ठोस पदार्थ का रूपान्तरण खाद के रूप में होता हैं। जिसे बायोगैस स्लरी कहा जाता हैं। दो घनमीटर के बायोगैस संयंत्र में 50 किलोग्राम प्रतिदिन या 18.25 टन गोबर एक वर्ष में डाला जाता है। उस गोबर में 80 प्रतिशत नमी युक्त करीब 10 टन बायोगैस स्लरी का खाद प्राप्त होता है। यह खेती के लिये अति उत्तम खाद होता है। इसमें 1.5 से 2 प्रतिशत नत्रजन, 1 प्रतिशत स्फुर एवं 1 प्रतिशत पोटाश होता है।

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