जनसंख्या विस्फोट आज पूरे विश्व में सबसे प्रमुख समस्या है। जनसंख्या का बढ़ना भोजन के आपूर्ति पर बाधा डालती है। भोजन पूर्ति के लिए मानव तरह तरह के उपाय करता है, और एक ऐसी होड़ पैदा होती है जिसमें अधिक उत्पादन के चक्कर में इंसान रसायनिक और खतरनाक अजैविक पदार्थो का उपयोग करने लगता है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है।
प्रकृति के चक्र को प्रभावित करने से एक असंतुलन कि स्थिति पैदा होती है और भूमि के उर्वरा शक्ति खराब होने के साथ साथ विभिन्न समस्याएं उत्पन्न होती है। रसायन हमारी उत्पादन क्षमता तो बढ़ा देते है लेकिन उसके बाद उनमें पहले जैसी गुणवत्ता नहीं रहती जैसी की पहले के जैविक खेती द्वारा उत्पादित पदार्थों में होती थी।
जैविक खेती हमारे पूर्वजों द्वारा अपनाया गया एक प्राकृतिक खेती (Natural Farming) का तरीका था जिसके अनुसार खेती करने से पदार्थो कि गुणवत्ता बरकरार रहती थी और हमारे खेती के तत्व जैसे की जल, भूमि, वायु और वातावरण में कोई प्रदूषण नहीं फैलता था और जैविक और अजैविक खेती पदार्थों के बीच आदान प्रदान का चक्र निरंतर अपनी गति से चलता रहता था।
जैविक खेती (Organic Farming) के लाभ
जैविक खेती के अनेक फायदे है जिनको यहां हम आपको बताने जा रहे हैं-
1- जैविक खेती से भूमि के उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है और जिससे उत्पादन में वृद्धि के साथ गुणवत्ता में भी बढ़ोत्तरी होती है।
2- रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होती है जिससे मृदा में पौष्टिक तत्वों का हनन नहीं होता और उनका पोषण बना रहता है।
3- फसलों के उत्पादन में वृद्धि होती है और अधिक मुनाफा होता है।
4- बाजार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ती है जिससे किसानों और थोक विक्रेताओं दोनों को लाभ होता है।
5- सिंचाई के प्रयोग में कमी आती है क्यूंकि जैविक खेती विधि से कम जल उपयोग किया जाता है।
जैविक खेती करने की विधि
जैविक खेती की विधि सरल होने के साथ साथ रासायनिक खेती की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन करती है, साथ साथ मृदा की उर्वरता एवम् कृषि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में पूर्णतः लाभकारी है। तो चलिए जानते है जैविक कृषि करने कि विधि जिससे कि इसके पूर्ण ज्ञान के साथ किसान अपने अपने कृषि में परिवर्तन ला सकें। जैविक खेती में जैविक खादों पर जोर दिया जाता है जैसे कि हरी खाद का प्रयोग, गोबर खाद का प्रयोग, केचुआ खाद आदि के प्रयोग से बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए हम मनचाही फसल उगाते है।
इस खेती में पशुओं का अधिक महत्व है, जैविक प्रदूषण रहित होते है और कम पानी की आवश्यकता होती है, फसल अवशेषों को खपाने की समस्या नहीं होती और कम लागत में स्वास्थ्यवर्धक पौष्टिक फसल की प्राप्ति होती है।
हरी खाद बनाने की विधि
मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए जीवाणुओं की मात्रा एवम् क्रियाशील होना जरूरी है, इसके लिए एक बड़े गढ्ढे में जरूरत के हिसाब से सभी खाद्य अवशेषों को एक साथ मिलाया जाता है, और करीब एक महीने तक सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि उनके सभी वैक्टरिया आदि घुल मिल जाए और एक बढ़िया खाद तैयार हो।
भभूत अमृत पानी
इस खाद के लिए करीब 10 किलो गोबर 250 ग्राम घी 500 ग्राम शहद और 200 लीटर पानी की आवश्यकता होती है , सभी को एक बड़े ड्रम में अच्छे से मिलकर रखे और 15 दिनों बाद से इसको फसलों के बीच छिड़काव करें।
नीम पत्ती घोल
इस घोल के लिए नीम की 10-15 किलो पत्तियों की आवश्यकता होती है, पत्तियों को 200 लीटर पानी में भिगोकर 4 दिन तक रखे जब पानी का रंग हरा पीला हो जाए तो इसका छिड़काव करें, इससे फसल बीमारियों से दूर रहती है।
ये थी कुछ खाद बनाने की विधियां जिसको किसान अपनाकर अपने फसलों कि रक्षा कर सकते है और अपने मुनाफे को बढ़ाकर एक उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ा सकते है।