मूंगफली का पर्ण चित्ती अथवा टिक्का रोग
सबसे पहले रोग के लक्षण पत्तीयों की उपरी सतह पर हल्के धब्बे के रुप में दिखाई देते है और पत्ति की निचली बाह्य त्वचा की कोषिकायें समाप्त होने लगती है। सर्कोस्पोरा एराचिडीकोला द्वारा बने धब्बे रुपरेखा में गोलाकार से अनियमित आकार के एवं इनके चारों ओर पीला परिवेष होता है। शुरुआत में यह पीले घेरे द्वारा धिरे होते है तथा इन धब्बों की निचली सतह का रंग काला होता है। ये धब्बे पत्ती की निचली सतह पर ही बनते है।
रोग नियंत्रण उपाय:-
1. मूंगफली की खुदाइ के बाद उसी समय फसल के बाकि बचे अवषेशों को इकठ्ठा करके जला देना चाहिये।
2. मूंगफली की फसल के साथ ज्वार या बाजरा की अंतवर्ती फसलें उगाये ताकि रोग के प्रकोप को कम किया जा सके।
3. बीजों को थायरम ( 1 : 350 ) या कैप्टान ( 1 : 500 ) द्वारा उपचारित करके बोये।
4. कार्बेन्डाजिम 0.1% या मेनकोजेब 0.2% छिड़काव करें।
मूंगफली का गेरुआ रोग
रोग लक्षण:-
सबसे पहले इस रोग के लक्षण पत्तियों की निचली सतह पर उतकक्षयी स्फोट के रुप में दिखाइ पड़ते है। पत्तियों के प्रकोप वाले हिस्से में बाहर की त्वचा फट जाती है। ये स्फोट पर्णवृन्त एवं वायवीय भाग पर भी देखे जा सकते है। रोग उग्र होने पर पत्तीयां झुलसकर गिर जाती है। फल्लियों के दाने चपटे व विकृत हो जाते है। इस रोग के कारण मूंगफली की पैदावार में कमी हो जाती है, बीजों में तेल की मात्रा भी काफी हद तक घट जाती है।
नियंत्रण:-
1. फसल की जल्दी बोआई जून के दूसरे सप्ताह के अंत या तीसरे सप्ताह की शुरुवात में करे ताकि रोग का प्रकोप कम हो।
2. फसल को काटने के बाद खेत में पडे रोगी पौधों के अवषेशों को एकत्र करके जला देना चाहिये।
3. बीज को 0.1% की दर से वीटावेक्स या प्लांटवेक्स दवा से बीजोपचार करके बोये।
4. खडी फसल में घुलनशील गंघक 0.15% की दर से छिड़काव या गंधक चूर्ण 15 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से भुरकाव या कार्बेन्डाजिम या बाविस्टीन 0.1 प्रतिषत की दर से छिडके।
जड़ सड़न रोग
रोग लक्षण:-
पौधे का रंग पीला पड़ने लगता है मिट्टी की सतह से लगे पौधे के तने का भाग सूखने लगता है। जड़ों के पास मकड़ी के जाले जैसी सफेद जाल से दिखाइ पड़ती है। प्रभावित फल्लियों में दाने सिकुडे हुये या पूरी तरह से सड़ जाते है, फल्लियों के छिलके भी सड़ जाते है।
नियंत्रण:-
बीज की फफूंदनाषक दवा जैसे थायरम या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम दवा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें।
कली उतकक्षय विषाणु रोग
रोग लक्षण:-
यह रोग विषाणु जनित रोग है, तापमान बढ़ने पर कली उतकक्षयी लक्षण प्रदर्शित करती है पौधों की बढ़वार रुक जाती है। थ्रिप्स इस विषाणुजनित रोग के वाहक का कार्य करते है। ये हवा द्वारा फैलते है।
नियंत्रण:
1. मूंगफली के साथ अंतवर्ती फसलें जैसे बाजरा 7:1 के अनुपात में फसलें लगाये।
2. मोनोक्रोटोफॉस 1.6 मि.ली./ली या डाइमेथोएट 2 मि.ली./ली. के हिसाब से छिड़काव करें।