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मिर्च की फसल इस बार दलौदा क्षेत्र के किसानों को धोखा दे गई है। उनकी एक माह की मेहनत बर्बाद हो चुकी है। मुरझाने पौधे लेकर सोमवार को कुछ किसान उद्यानिकी कॉलेज पहुंचे। जांच कर वैज्ञानिक ने स्पष्ट किया पौधें वारयस से ग्रसित हो गए हैं। उन्हें उखाड़कर गड्ढों में दबना ही अंतिम विकल्प बचा है। दलौदा क्षेत्र के दर्जनों गांव में किसानों ने 1000 बीघा से ज्यादा में मिर्ची की बोवनी की है। उन्हें अब नई फसल बोना होगी।
दलौदा क्षेत्र के बड़वन के किसान कन्हैयालाल धाकड़ ने बताया उन्होंने एक माह पूर्व 3 बीघा में मिर्ची के बीज लगाए। 12 पैकेट बीज के लिए 6 हजार की राशि खर्च की। 10 दिन बाद पौधे कुछ बड़े हुए तो पत्तियां मुरझाने लगी। इसके बाद वे 10 हजार रुपए की दवा डाल चुके हैं। पौधों का विकास रुका हुआ है। लगातार पत्तियां झड़ रही है। किसान आेंकारलाल ने बताया उन्होंने दो बीघा में मिर्ची लगाई थी। पौधे मुरझाने के बाद वे कृषि काॅलेज गए। वैज्ञानिकों ने कहा इसमें वायरस है। अब आधी फसल उखाड़ दी है। बाकि में दवा डाली है। दो चार दिन में फसल नहीं सुधरी तो पूरी मिर्ची उखाड़कर नई फसल बोएंगे।
वायरस से फसल ज्यादा प्रभावित
दलौदा क्षेत्र के किसान सोमवार को मिर्ची की फसल लेकर आए। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीएन पांडे को पौधे दिखाएं। डॉ. पांडे ने बताया किसान जिस मिर्च के पौधे लाए हैं वह एक माह से ज्यादा के हो गए हैं। इन्हें वायरस है जिसे ग्रामीण भाषा में चुर्रा मुर्रा कहते हैं। ब्रांडेड और उपचारित बीज होने पर इस रोग में दवा ज्यादा प्रभावित होती है। जो बीज डाले वे ब्रांडेड नहीं थे। किसानों को वायरस प्रभावित फसल उखाड़कर मिट्टी में अलग गाड़ देना चाहिए नहीं तो उनकी अगली फसल भी प्रभावित हो सकती है। उन्होंने किसानों काे सलाह दी किसी भी कंपनी के बीज का उपयोग करें लेकिन ब्रांडेड और टेस्टेड बीज ही होना चाहिए। प्रामाणिक बीज का उपयोग नहीं करने का यह सशक्त उदाहरण है। उन्होंने कहा फसल की स्थिति देखते के बाद अब रासायनिक उपचार के बाद उसकी ग्रोथ की उम्मीद नहीं है। किसानों को फसल उखाड़ा ही पड़ेगी।
संकट में किसान
प्रभावित मिर्च के पौधे कृषि वैज्ञानिक को दिखाते हुए किसान।
बड़वन में मिर्च प्रभावित पौधे दिखाता ओंकारलाल।
ऐसे बचे ंचुर्रा-मुर्रा रोग से
मौसमी बदलाव और मिर्च के पौधे पनपने के प्राथमिक दौर में चुर्रा मुर्रा रोग की आशंका रहती है। इससे बचाव हेतु किसान, मिथाइल डेमेटॉन 25 ई.सी. दवा की 2 मिली लीटर अथवा इमेडाक्लोप्रिड दवा 0.5 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। वायरस के प्रारंभिक अवस्था में होने पर इससे फसल को फायदा होता है।
एक बीघा में 7 हजार का नुकसान
बीज, खाद व दवाओं पर हुए खर्च का आकलन करें तो एक बीघा पर किसानों ने 7 हजार रुपए खर्च किए हैं। ऐसे में एक हजार बीघा की फसल बर्बाद होने पर किसानों को 70 लाख का नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे किसानों की संख्या 1000 से 1200 मानी जा रही है।
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