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भागलपुर(बिहार)। राज्य की मिट्टी 'मौसंबी' की खेती के लिए अनुकूल है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय के बगीचे में वैज्ञानिक डॉ संजय सहाय ने पिछले चार वर्षों से इस क्षेत्र में अपनी खेती को सफल साबित कर दिया है। अब विश्वविद्यालय किसानों से इसकी खेती करवाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए बड़े पैमाने में पौधे तैयार किए जा रहे हैं।
वैज्ञानिक डॉ. सहाय ने कहा कि किसान की आय केवल धान-गेहूं की खेती से दोगुनी नहीं होगी। उन्हें फल-फूलो की खेती करनी होगी। वैज्ञानिक ने कहा कि उच्च भूमि जहां पारंपरिक खेती संभव नहीं है। वहां किसान प्रति हेक्टेयर 40 से 50 हजार रुपये खर्च कर सकते हैं और सालाना एक से दो लाख रुपये कमा सकते हैं।
जमीन कैसी हो
उच्च बलूवाही मिट्टी मोसंबी की खेती के लिए उपयुक्त है। किसानों को गर्मी के मौसम में तीन गुना तीन मीटर की दूरी पर डेढ़ फीट का गड्ढा खोदना चाहिए और इसे कुछ दिनों तक छोड़ देना चाहिए ताकि कीड़े मर सकें। इसके बाद, प्रत्येक गड्ढे को 40 किलोग्राम गोबर खाद, उपजाऊ मिट्टी, एक किलोग्राम सुपर फॉस्फेट खाद और 100 ग्राम कीटनाशकों के मिश्रण के साथ भरें और इसे अच्छी तरह से भरें। जमीन से दो-तीन इंच पौधे ऊपर रखो जिससे पौधे दिखाई दे। मौसंबी के पौधे किसी भी मौसम में लगाए जा सकते है। यह तीन साल में फल देना शुरू कर देता है।
चौथे वर्ष से आपको 10 हजार के खर्च पर डेढ़ लाख की होगी आमदनी
वैज्ञानिक ने बताया कि चौथे वर्ष के लिए फल प्रति पौधे 30 से 50 किलो उत्पादन किया जाएगा। यानि, एक हेक्टेयर में एक हज़ार पेड़ से कम से कम 300 क्विंटल फल पैदा होगा। जिसका बाजार में प्रति किलो 50 से 55 रुपये है, जिससे किसानों को 1.5 लाख रुपये का सलाना मुनाफा होगा। बेहतर प्रबंधन पर मौसंबी के पेड़ 40 वर्षो तक फल देता है।
राज्य के बाहर से नहीं आएगा मौसंबी
अगर किसान इसकी सफल खेती करेंगे तो महाराष्ट्र, पंजाब, आंध्रप्रदेश एवं राजस्थान जैसे राज्यों से मौसंबी फल की आवक नहीं करनी पड़ेगी। लोग अपने राज्य में उत्पादित मौसंबी के रस का स्वाद लें सकेंगे। किसानों को भी बेहतर बाजार मूल्य मिलेगा।
पंजाब से मंगाया गया है, स्पेशल रूट स्टॉक
बीएयू में मौसंबी के उन्नत प्लांट तैयार करने के लिए पंजाब से स्पेशल रूट स्टॉक मंगवाया गया है। इसके अलावा बडिंग के माध्यम से भी पौध तैयार किए जा रहे हैं। यहां से किसानों को प्रति पौध 35 रुपये की दर से उपलब्ध कराया जाएगा।
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