मटर की किस्मों को दो देखा जाये तो दो भागों में विभाजित किया गया है। इसके अंतर्गत आती है एक फील्ड मटर और दूसरी सब्जी मटर या गार्डन मटर है।
फील्ड मटर
इस प्रकार की किस्मों को दाने के लिए, साबुत मटर, दालों के लिए और चारे के लिए उपयोग में लाया जाता है। इन किस्मों में प्रमुख रूप से रचना, स्वर्णरेखा, अपर्णा, हंस, जेपी 885, विकास, शुभार, पारस, अंबिका आदि कई किस्में मौजूद हैं।
सब्जी मटर
यह मटर की दूसरा वर्ग है, जिसकी किस्मों का उपयोग सब्जियों के लिए किया जाता है। इनमें प्रमुख किस्में इस प्रकार हैं।
आर्केल
इस किस्म की बोआई के बाद 55 से 65 दिनों के अंदर फसल अच्छे से तैयार हो जाती है। किसान को हरी फलियों की लगभग 70 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है। इसकी खास बात ये है की इसकी फलियां लगभग आठ से दस सेंटीमीटर तक लंबी होती हैं और प्रत्येक फली में पांच से छह दाने होते हैं। यह जल्द तैयार होनी फसल है।
बोनविले
यह किस्म झुर्रीदार होता है, फलियां बोआई के 80 से 85 दिन बाद तोड़ने के लिए हो जाती हैं। इसकी फलियों का औसत उत्पादन किसानों को 130 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल सकती है।
अर्ली दिसंबर
यह किस्म भी अगेती किस्म की श्रेणी में आती है और 55 से 60 दिनों में फसल तैयार हो जाती है और फलियां तोड़ने योग्य होती हैं। इस किस्म से किसानों को औसत उपज 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकती है। इस किस्म से भी फलियों की लंबाई लगभग छह से सात सेंटीमीटर होती है।
मध्यम किस्में
यह किस्में बोआई के बाद 85 से 90 दिनों बाद तोड़ने योग्य हो जाती हैं। इन किस्मों में बोनविले, काशी शक्ति, एनडीवीपी-8 और 10, टी9, टी 56 और एनपी 29 प्रमुख हैं। इसके अलावा पछेती किस्में (देर से तैयार होने वाली) भी हैं।