मटर की खेती से धनवर्षा, जाने कैसे करें उन्नत खेती

मटर की खेती से धनवर्षा, जाने कैसे करें उन्नत खेती
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Kisaan Helpline

Agriculture Oct 18, 2019

भारत की एक महत्वपूर्ण फसल मटर को दलहनों की रानी की संज्ञा प्राप्त है। मटर की खेती, हरी फल्ली, साबूत मटर तथा दाल के लिये की जाती है। मटर की हरी फल्लियाँ सब्जी के लिए तथा सूखे दानों का उपयोग दाल और अन्य भोज्य पदार्थ तैयार करने में किया जाता है। चाट व छोले बनाने में मटर का विशिष्ट स्थान है। हरी मटर के दानों को सुखाकर या डिब्बा बन्द करके संरक्षित कर बाद में उपयोग किया जाता है। पोषक मान की दृष्टि से मटर के 100 ग्राम दाने में औसतन 11 ग्राम पानी, 22.5 ग्राम प्रोटीन, 1.8 ग्रा. वसा, 62.1 ग्रा. कार्बोहाइड्रेट, 64 मिग्रा. कैल्शियम, 4.8 मिग्रा. लोहा, 0.15 मिग्रा. राइबोफ्लेविन, 0.72 मिग्रा. थाइमिन तथा 2.4 मिग्रा. नियासिन पाया जाता है। फलियाँ निकालने के बाद हरे व सूखे पौधों का उपयोग पशुओं के चारे के लिए किया जाता है। दलहनी फसल होने के कारण इसकी खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। हरी फल्लिओं के लिए मटर की खेती करने से उत्तम खेती और सामान्य परिस्थिओं में प्रति एकड़ 50-60 क्विंटल हरी फल्ली प्राप्त होती है।

कटाई एवं गहाई:

हरी फल्लियों के लिए बोई गई फसल दिसम्बर- जनवरी में फल्लियाँ देती है। फल्लियों को 10-12 दिन के अंतर पर 3-4 बार में तोड़ना चाहिए। तोड़ते समय फल्लियाँ पूर्ण रूप से भरी हुई होना चाहिए, तभी बाजार में अच्छा भाव मिलेगा। दानों वाली फसल मार्च अन्त या अप्रैल के प्रथम सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है। फसल अधिक सूख जाने पर फल्लियाँ खेत में ही चटकने लगती है। इसलिये जब फल्लियाँ पीली पड़कर सूखने लगे उस समय कटाई कर लें। फसल को एक सप्ताह खलिहान में सुखाने के बाद बैलों की दाँय चलाकर गहाई करते है। दानों को साफ कर 4-5 दिन तक सुखाते है जिससे कि दानों में नमी का अंश 10-12 प्रतिशत तक रह जाये। 

उपज एवं भण्डारण:

मटर की हरी फल्लियों की पैदावार 150-200 क्विंटल तथा फल्लियाँ तोड़ने के पश्चात् 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हरा चारा प्राप्त होता है। दाने वाली फसल से औसतन 20-25 क्विंटल दाना और 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भूसा प्राप्त होता है। जब दानों मे नमी 8-10 प्रतिशत रह जाये तब सूखे व स्वच्छ स्थान पर दानो को भण्डारित करना चाहिए।

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