मक्का की खेती में अच्छी उपज चाहते है, तो ये जानकारी जरूर पढ़े

मक्का की खेती में अच्छी उपज चाहते है, तो ये जानकारी जरूर पढ़े
News Banner Image

Kisaan Helpline

Agriculture Jul 05, 2019

खरीफ फसलों में धान के बाद मक्का प्रदेश की मुख्य फसल है। इसकी खेती , दाने / भुट्टे एवं हरे चारे के लिए की जाती है। मक्का के अन्तर्गत अधिकतर क्षेत्रफल वर्षा पर आधारित है,जिसके कारण उत्पादकता कम है। मक्का की अच्छी उपज के लिए आवश्यक है कि समय से बुवाई, निकाई - गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण, उर्वरकों की संतुलित प्रयोग,समय से सिंचाई एवं कृषि रक्षा साधनों को अपनाया जाय। संस्तुत सघन पद्धतियां अपनाकर संकर / संकुल प्रजातियों की उपज सरलता से 35 - 40 कु.प्रति हे प्राप्त की जा सकती है। साथ ही अल्प अवधि की फसल होने के कारण बहु फसली खेती के लिए इसका अत्यन्त महत्व है। 

सघन पद्धतियां
 
1 . भूमि उपयुक्तता : मक्का की खेती के लिए उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है।  
2 . खेत की तैयारी : पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य दो या तीन जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर या रोटावेटर द्वारा करनी चाहिए। 
3 . शुद्ध बीज का प्रयोग : अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु उन्नतिशील प्रजातियों का शुद्ध बीज ही बोना चाहिए। बुवाई के समय एवं क्षेत्र अनुकूलता के अनुसार प्रजाति का चयन करे। 

निचे दी गई लिस्ट को ध्यान से पढ़े।


बुवाई 

बुवाई का समय: देर से पकने वाली मक्का की बुवाई मध्य मई से मध्य जून तक पलेवा करके करनी चाहिए । जिससे वर्षा प्रारम्भ होने से पहले ही खेत में पौधे भली भांति स्थापित हो जायें और बुवाई के 15 दिन बाद एक निराई भी हो जाय। शीघ्र पकने वाली मक्का की बुवाई जून के अन्त तक कर ली जाय तथा वर्षा के समय वाली 10 जुलाई तक बुवाई कर ली जाय। 

बीजोपचार: बीज बोने से पूर्व यदि शोधित न किया गया हो तो 1 किग्रा0 बीज के थीरम 2 . 5 ग्राम या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम से बोने से पहले शोधित कर लें।  

भूमि शोधन तथा जिंक का प्रयोग: जिन क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप होता है वहां आखिरी जुताई पर क्लोरपाइरीफास 20 ई . सी . की 2 . 5 लीटर मात्रा को 5 लीटर पानी में घोलकर 20 किलोग्राम बालू में मिलाकर प्रति हे . की दर से बुवाई के पहले मिट्टी में मिला दें। जिंक तत्व की कमी के कारण पत्तियों के नस के दोनों और सफेद लम्बी धारियां पड़ जाती हैं। जिन क्षेत्रों में गत वर्ष ऐसे लक्षण दिखाई दिये हों उनमें अन्तिम जुताई के साथ 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाकर बीज बोना चाहिए। इसका प्रयोग फासफोरस उर्वरक के साथ मिलाकर न किया जाय। 

बीज दर: देशी - छोटे दाने वाली प्रजाति के लिए 16 - 18 जून 2019 किग्रा . संकर के लिए 20 - 22 किग्रा . / हे . एवं संकुल प्रजातियों के लिए 18 - 20 किग्रा . प्रति हेक्टर !
 
बुवाई की विधि : बुवाई हल के पीछे कुंडों में 3.5 सेमी. की गहराई पर करें। लाइन से लाइन की दूरी अगेती किस्मों में 45 सेमी . तथा मध्यम एवं देर से पकने वाली प्रजातियों में 60 सेमी . होनी चाहिये । इसी प्रकार अगेती किस्मों में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी. तथा मध्यम एवं देर से पकने वाली प्रजातियों में 25 सेमी. होनी चाहिए। 

निराई - गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण 

मक्का की खेती में निराई गुड़ाई का अधिक महत्व है। निराई गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण के साथ ही आक्सीजन का संचार होता है। जिससे वह दूर तक फैल कर भोज्य पदार्थ को एकत्र कर पौधों को देती है। पहली निराई जमाव के 15 दिन बाद कर देना चाहिए और दूसरी निराई 35 - 40 दिन बाद करनी चाहिए। मक्का में खरपतवारों को नष्ट करने के लिए। 

1. एट्राजीन 2 किग्रा. प्रति हे.अथवा 800 ग्राम प्रति एकड़ मध्यम से भारी मृदाओं में तथा 1.25 किग्रा. प्रति हे.अथवा 500 ग्राम प्रति एकड़ हल्की मृदओं में बुवाई के तुरन्त 2 दिनों में 500 लीटर / हे . अथवा 200 लीटर / एकड़ पानी में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए। इस शाकनाशी के प्रयोग से एकवर्षीय घासकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बहुत ही प्रभावी रूप से नियमित हो जाते है । इस रसायन द्वारा विशेषरूप से पथरचटा ( ट्राइरगन्थिया ) भी नष्ट हो जाता है। 

2. जहाँ पर पथरचटा की समस्या नहीं है वहाँ पर लासो 50 ई.सी. ( एलाक्लोर ) 5 लीटर प्रति हेक्टर अथवा 2 लीटर प्रति एकड़ बुवाई के दो दिनों के अन्दर प्रयोग करना आवश्यक है। 

3. हार्डी खरपतवारों जैसे कि वन पट्टा ( बेचेरिया रेप्टान्स ), रसभरी ( कोमेलिया वैफलेन्सिस ) को नियन्त्रित करने हेतु बुवाई के दो दिनों के अन्दर एट्राटाफ 600 ग्राम प्रति एकड़ + स्टाम्प 30 ई . सी. या ट्रेफ्लान 48 ई.सी. ( ट्रेफ्लूरेलिन ) प्रत्येक 1 लीटर प्रति एकड़ अच्छी तरह से मिलाकर 200 लीटर पानी के साथ प्रयोग करने पर आशातीत परिणाम आते है । 

उर्वरकों का संतुलित प्रयोग 

मात्रा : मक्का की भरपूर उपज लेने के लिए संतुलित उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक है । अतः कृषकों को मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए । यदि किसी कारणवंश मृदा परीक्षण न हुआ हो तो देर से पकने वाली संकर एवं संकुल प्रजातियों के लिए क्रमशः 120 : 60 : 60 व शीघ्र पकने वाली प्रजातियों के लिए 100 : 60 : 40 तथा देशी प्रजातियों के लिए 80 : 40 : 40 किग्रा . नत्रजन , फास्फोरस तथा पोटाश प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहिए । गोबर की खाद 10 टन प्रति हे . प्रयोग करने पर 25 % नत्रजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए ।

विधि : बुवाई के समय एक चौथाई नत्रजन , पूर्ण फास्फोरस तथा पोटाश कुड़ों में बीज के नीचे डालना चाहिए । अवशेष नत्रजन तीन बार में बराबर - 2 मात्रा में टापड्रेसिंग के रूप में करें । पहली टापड्रेसिंग बोने के 25 - 30 दिन बाद ( निराई के तुरन्त बाद ) दूसरी नर मंजरी से आधा पराग गिरने के बाद अवस्था संकर मक्का में बुवाई के 50 - 60 दिन बाद एवं संकुल में 45 - 50 दिन बाद आती हैं । 

जल प्रबन्धन
 
पौधों को प्रारम्भिक अवस्था तथा सिल्किंग से दाना पड़ने की अवस्था पर पर्याप्त नमी आवश्यक है।अतः यदि वर्षा न हो रही हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई अवश्य करना चाहिए । सिल्किग के समय पानी न मिलने पर दाने कम बनते है , वर्षा के बाद खेत से पानी के निकास का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए , अन्यथा पौधे पीले पड़ जाते है और उनकी बाढ़ रूक जाती है । 

अन्य आवश्यक क्रियाएँ
 
वर्षा के पानी और तेज हवा से फसल को बचाने के लिए पौधों की जड़ों पर मिट्टी पलटने वाले हल से मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

फसल की रखवाली 

कौओं , चिड़ियों तथा जानवरों से फसल की रक्षा हेतु रखवाली आवश्यक हैं ।

कटाई मड़ाई
 
फसल पकने पर भुट्टों को ढंकने वाली पत्तियां जब 75 % झड़ जाएं तब पीली पड़ने लगती हैं । इस अवस्था पर कटाई करनी चाहिए। भुट्टों की तुड़ाई करके उसके पत्ती को छीलकर धूप में सुखाकर हाथ या मशीन द्वारा दाना निकाल देना चाहिए।
 
फसल सुरक्षा  

कीट  
1. तना छेदक कीट : आर्थिक क्षति : 10 प्रतिशत मृत गोभ। पूर्ण विकसित सूड़ी 20 - 25 मिमी .लम्बी , गन्दे भूरे सफेद रंग की होती है । इसका सिर काला होता है । तथा शरीर पर चार भूरी धारियाँ पाई जाती है । इसका प्रौढ़ पीले भूरे रंग का होता है । इस कीट की सूड़ियाँ तनों में छेद करके अन्दर ही खाती रहती हैं । फसल के प्रारम्भिक अवस्था में प्रकोप के फलस्वरूप मृतगोभ बनता है परन्तु बाद की अवस्था में प्रकोप होने पर पौधे कमजोर हो जाते है , भुट्टे छोटे आते हैं तथा हवा चलने पर पौधा बीच से टूट जाता है।
 
2.प्ररोह मक्खी - आर्थिक क्षति स्तर : 10 प्रकोपित मृत गोभ । यहाँ घरेलू मक्खी से छोटे आकार की होती है जिसकी सूंड़ी जमाव के प्रारम्भ होते ही फसल को हानि पहुँचाती है । हानि के फलस्वरूप मृतगोभ बनता है।
  
3.पत्ती लपेटक कीट : इस कीट की सुंड़ी हल्के पीले रंग की होती है जो पत्तियों के दोनों किनारों को रेशम जैसे सूत से लपेट कर अन्दर ही रहती है तथा अन्दर से हरे पदार्थ को खुरचकर खाती है।
 
4.कमला कीट : सूड़ियां 40 - 45 मिमी . लम्बी होती है । इनका शरीर घने भूरे रंग के बालों से ढका रहता है । इस कीट की सूड़ियां पत्तियों को खाकर काफी नुकसान पहुंचाती है । 

5. माहू : हरी टागों वाली गहरे भूरे या पीले रंग वाली पंखहीन एवं पंखयुक्त गोभ , हरे भुट्टों एवं पत्तियों से रसचूस कर हानि करती है । प्रत्येक मादा 1 - 5 शिशु / दिन की दर से 10 - 25 दिन में 24 47 शिशु पैदा करती है । 

6. छाले वाला शृंग : मध्यम आकार की 125 - 25 सेमी . लम्बी चमकीने नीले , हरे , काले या भूरे रंग की होती है । छेड़ने पर ये अपने फीमर के अन्तिम छोर से कैन्थ्रडिन युक्त एक तरल पदार्थ निकालती है जिस के त्वचा पर लगने से छाले पड़ जाते हैं । इनके प्रौढ़ फूलों एवं पत्तियों को खाकर नुकसान पहचाते है इनकी सूड़िया का विकास टिड्डे एवं मधुमक्खियों के अण्डों पर होता है।

Agriculture Magazines

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline