महाराष्ट्र के अलीबाग के प्रसिद्ध सफ़ेद प्याज को मिला GI टैग, सफ़ेद प्याज की खेती करने वाले किसानों को होगा फ़ायदा

महाराष्ट्र के अलीबाग के प्रसिद्ध सफ़ेद प्याज को मिला GI टैग, सफ़ेद प्याज की खेती करने वाले किसानों को होगा फ़ायदा
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Kisaan Helpline

Agriculture Oct 07, 2021

जैसे की आप जानते है सफ़ेद प्याज़ एक वनस्पति है जिसका कन्द सब्ज़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है, भारत में महाराष्ट्र में प्याज़ की खेती सबसे ज्यादा की जाती है। अलीबाग में सफ़ेद प्याज़ खेती बड़े  पैमाने पर किया जाता है। 

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में अलीबाग के प्रसिद्ध सफेद प्याज को भौगोलिक संकेत (GI) टैग दिया गया, जो इसके अनूठे मीठे स्वाद, बिना आंसू के कारक, साथ ही इसके औषधीय गुणों को दुनिया भर में पहचान दिलाता है। अलीबाग तालुका की मिट्टी में सल्फर की मात्रा कम है। एनएबीएल-अनुमोदित लैब टेस्ट रिपोर्ट में कम तीखापन, मीठा स्वाद, 'नो टियर' फैक्टर, कम पाइरुविक एसिड, उच्च प्रोटीन, वसा और फाइबर आदि का उल्लेख है।

अलीबाग के सफेद प्याज का वर्ष 1983 के आधिकारिक गजट में उल्लेख किया गया था। इस प्याज में जो औषधीय गुण पाया जाता है, उसका  प्रयोग हृदय रोग, कॉलेस्ट्रॉल नियंत्रण एवं इंसूलिन निर्माण में किया जाता है। 

एक अधिकारी के मुताबिक, यहां के कृषि विभाग और कोंकण कृषि विश्वविद्यालय ने 15 जनवरी 2019 को जीआई टैग (GI Tag ) के लिए आवेदन किया था। इस साल 29 सितंबर को पेटेंट पंजीयक के मुंबई कार्यालय में प्रस्ताव की जांच की गई थी। जिसके बाद अलीबाग के सफेद बाग को जीआई टैग देने का फैसला किया गया। प्याज़ की फसल से प्रति एकड़ करीब 2 लाख की औसत आमदनी होती है।

सफ़ेद प्याज की खेती करने वाले राज्य
सफेद प्याज की महाराष्ट्र में सबसे बड़े पैमाने पर की जाती है. तो वही.गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु में खरीफ मौसम के लिए अनुमोदित की गयी है। महाराष्ट्र में पछेती खरीफ के लिए भी इसे अनुमोदित किया गया है। खरीफ में यह 110-115 दिन और पछेती खरीफ में 120-130 दिन में यह पककर तैयार हो जाती है।

क्षेत्र विशेष के उत्पाद को दिया जाता है जीआई टैग
हर क्षेत्र में कोई एक प्रोडक्ट अपनी यूनिकनेस के लिए जाना जाता है और उस क्षेत्र की पहचान बन जाता है। कई मामलों में किसी खास क्षेत्र के किसी खास प्रॉडक्ट को अपनी पहचान बनाने में दशकों, तो कभी सदियों लग जाते हैं। जीआई टैग उसी प्रॉडक्ट को मिलता है, जो एक खास एरिया में बनाया जाता है या पाया जाता है।
जीआई टैग मिलने से पता चल जाता है कि ये चीज उस पार्टिकुलर एरिया में मिलती है. जैसे महाराष्ट का अल्फांसो आम,  एक बार पहचान मिलने के बाद एक्सपोर्ट बढ़ जाता है। खेती से जुड़ा प्रॉडक्ट होने पर किसानों को फायदा मिलता है. वैसे ही मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट को जीआई टैग मिलने पर उस प्रॉडक्ट को बनाने वाले लोगों को फायदा मिलता है।

भौगोलिक संकेत (GI) के बारे में
यह प्रामाणिकता का प्रतीक है और यह सुनिश्चित करता है कि पंजीकृत अधिकृत उपयोगकर्ता या कम से कम भौगोलिक क्षेत्र के अंदर रहने वाले लोगों को लोकप्रिय उत्पाद नामों का उपयोग करने की अनुमति है। 
भारत में GI टैग भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 द्वारा शासित है। यह भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (चेन्नई) द्वारा जारी किया जाता है।

GI टैग के लाभ
  • यह भारतीय भौगोलिक संकेतों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है और इस प्रकार दूसरों द्वारा पंजीकृत GI के अनधिकृत उपयोग को रोकता है।
  • यह भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।
  • भारत में GI सुरक्षा से अन्य देशों में उत्पाद की पहचान होती है जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है।

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