मध्य प्रदेश की जमीन पर, सरकार की नीतियों का समय

मध्य प्रदेश की जमीन पर, सरकार की नीतियों का समय
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Kisaan Helpline

Agriculture Jun 03, 2019

मोदी सरकार द्वारा मध्य प्रदेश की राजनीति के पुराने और अनुभवी चेहरे को कृषि मंत्रालय देकर केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश की अपेक्षाओं को भी नया आधार दिया है। निश्चित ही उनके अनुभव का लाभ मध्य प्रदेश को अब सीधे तौर पर मिलेगा। मध्य प्रदेश के लिए भी यह पहला अवसर है, जब यहां से किसी अनुभवी चेहरे को केंद्रीय कृषि मंत्री बनाया गया है। देखा जाये तो यह पद अब तक आमतौर पर महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार और हरियाणा जैसे राज्यों के सांसदों के पास ही हुआ करता था। जाहिर है उन इलाकों के किसानों की आवाज नीतियों में तब्दील होकर देशभर में दिखाई पड़ती थी। ख़ुशी की बात तो ये है की नरेंद्र सिंह तोमर के जरिए मध्य प्रदेश के किसानों की समस्याएं सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल होंगी।

मध्य प्रदेश एक नजर में

क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य होने के कारण प्रदेश की नीति रचनात्मक होनी चाहिए। मध्य प्रदेश की 70 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी हुई है,  राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाये तो ये तीसरे-चौथे स्थान पर है। मध्य प्रदेश गेहूं, अरहर, सरसों और मटर के उत्पादन में देश में पहले स्थान पर आता है। आंकड़ों के अनुसार 2003-04 में यहां गेहूं का 2.24 मीट्रिक टन उत्पादन था और अब करीब 5.42 मीट्रिक टन है। रिकार्ड्स के अनुसार दश भर जैविक खेती यदि 6.28 लाख हेक्टेयर भूमि में हो रही है, तो उसमें भी मध्य प्रदेश की दो लाख हेक्टेयर जमीन शामिल है।

कृषि में अव्वल रहने के बावजूद यह जिम्मेदारी मध्य प्रदेश के सांसद की झोली में डाली गए है तो उसका एक और कारण भी हो सकता है - किसान आंदोलन। वर्ष 2017-18 में भाजपा सरकार के खिलाफ किसान आंदोलन का आगाज हुआ था, इसका असर कई जिलों में देखने को मिला। और विरोध इतना पुरजोर था की प्रदेश के किसानो के क्रोध को शांत करने में सरकार की भावांतर, प्रधानमंत्री फसल बीमा सहित तमाम योजनाए जो केंद्र और राज्य सरकारो ने मिलकर लागु की थी, उनके क्रोध के आगे टिक न पाई। इसका परिणाम भी सरकार को भुगतना पड़ा और राज्य की कुर्सी भाजपा के हाथ से छिन गई।

सबसे बड़ी चुनौती

किसानों को उचित मूल्य का बाजार उपलब्ध करवाना, पानी की उपलब्धता, नई तकनीक, भंडारण की बेहतर और ज्यादा व्यवस्था करना- मध्य प्रदेश में कृषि की सबसे बड़ी चुनौती है। वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने किसानों से वादा किया था कि लाभ की खेती का फॉर्मूला लाया जाएगा। मोदी सरकार की दूसरी पारी शुरू हो गई है, तो भाजपा की भावांतर और कांग्रेस की किसान कर्ज माफी की तुलना करने वाला मध्य प्रदेश का किसान, दोनों ही पलड़ों में अपना नफा-नुकसान जरूर तौलेगा। 

फूड प्रोसेसिंग में भविष्य की तलाश

वर्ष 2014 में वादे के मुताबिक मध्य प्रदेश में फूड प्रोसेसिंग यूनिट के लिए अनुकूल वातावरण है। यहां बड़ी मात्रा में फल, सब्जियां, दूध-डेयरी प्रोडक्ट जैसा कच्चा माल भी है और सस्ता श्रम भी। इसके जरिए बेरोजगारी को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है। बावजूद इसके, इस दिशा में केंद्र और राज्य, दोनों ही तरफ से कोई खास पहल नहीं हो पाई। राष्ट्रीय परिदृश्य पर नजर डालें तो फल और सब्जियों में केवल दो फीसदी की ही प्रोसेसिंग हो पाती है। किसानों की इस मांग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि बड़े शहरों के बजाय नई इकाइयां वहां स्थापित हों, जहां उत्पादन बहुतायत में हो रहा है। ध्यान इस बात पर रखा जाना चहिये कि परंपरागत खेती को प्रोत्साहित करने वाला मध्य प्रदेश का किसान अब आधुनिक तरीके से भी खेती को उन्नत कर रहा है, इसलिए सरकारों के स्तर पर उसे सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत है।

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