कृषि - वानिकी भूमि उपयोग की एक ऐसी पद्धति है , जिसमें बहुद्देशीय वृक्षों ( चारा एवं फलदार ) को कृषि फसलों के साथ एक ही भूमि पर उगाया जाता है । पशुपालन व्यवसाय को इसके साथ अपनाया जाता है और विविध उत्पादों का सतत रूप से उत्पादन किया जाता है । देश में कृषि - वानिकी प्रणाली के विभिन्न स्वरूप उपलब्ध हैं एवं ये स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न स्वरूपों में प्रचलित हैं जैसे - कृषि - बागवानी , कृषि - बागवानी - वानिकी , वन - बागवानी , वानिकी - औषधीय , वानिकी - चरागाह , मत्स्य पालन - वानिकी , गृह वाटिका इत्यादि। पर्वतीय क्षेत्रों में वन - बागवानी प्रणाली महत्वपूर्ण है।
बागवानी प्रणाली
बागवानी प्रणाली से लाभ ही लाभ इस पद्धति में चारे वाले वृक्षों के साथ - साथ बागवानी फसलों जैसे - हल्दी , अदरक आदि को लगाया जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में जंगली जानवरों की भी काफी समस्या है। इस प्रकार की खेती करने से इस समस्या से बच सकते हैं क्योंकि जंगली जानवर हल्दी एवं अदरक को पसंद नहीं करते हैं। इसके साथ ही ये फसलें नकदी हैं और चारा वृक्षों से चारा लिया जा सकता है , जिससे पशुपालन व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा। वृक्षों से जलावन लकड़ी भी मिलती है। पशुपालन से गोबर मिलेगा जिसको वर्मीकम्पोस्ट के काम में लिया जा सकता है एवं मृदा की उत्पादन क्षमता को बनाए रखा जा सकता है। इस प्रकार किसानों की आय में वृद्धि के साथ - साथ सतत उत्पादन भी मिलता है।