केंद्र में बनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने जैसे ही भारी बहुमत से सत्ता में वापसी, वैसे ही अर्थशास्त्रियों ने इस बात का अंदाजा लगाना शुरू कर दिया कि दूसरे दौर के आर्थिक सुधारों को लागू करने का इससे अच्छा वक्त नहीं आ सकता है। अभी तक वित्त मंत्रालय में बजट-पूर्व बैठकों और दूसरे मंत्रालयों से चल रहे विमर्श से जो संकेत सामने आ रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि विशेषज्ञों की बात सही साबित होगी।
इस सत्र में आने वाली नजदीकी तारीख पांच जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से पेश होने वाला आम बजट वित्तीय और कृषि क्षेत्र के लिए भविष्य के उज्जवल नतीजों वाला हो सकता है। सरकार की मर्जी अब बेकार पड़े और असफल साबित हो चुके सरकारी उपक्रमों को आगे ले जाने की बिल्कुल भी नहीं है। दूसरी तरफ, सरकारी क्षेत्र के बैंकों में एकीकरण को लेकर अब सरकार खुलकर अपने एजेंडा को लागू करने को भी तैयार है।
कयास लगाई जा रही है की इस बार कृषि को लेकर इस सत्र के बजट में काफी कुछ सामने आएगा, कृषि में होने वाले सुधारो को लेकर और कृषि की बेहतर उन्नति के लिए इस बार की सरकार की तरफ से अलग ही रणनीति देखने को मिल सकती है।
वित्तीय क्षेत्र में सुधार को लेकर सरकार के एजेंडे में सरकारी बैंकों में विलय व एकीकरण सबसे उपर है। इस बारे में एक प्रस्ताव पहले ही तैयार हो चुका है। वित्त मंत्रालय की गणना और आकलन है कि पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए देश के वित्तीय क्षेत्र के मौजूदा स्वरूप में बड़े बदलाव करने होंगे।
जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री ने शनिवार को नीति आयोग की गवर्निग काउंसिल की बैठक में कृषि में होने वाले सुधार पर एक उच्चस्तरीय समिति बनाने का एलान किया है। इस समिति को कृषि क्षेत्र में सुधारों के नए दौर को लेकर सुझाव देने को कहा गया है। इस समिति की सिफारिशें तो बाद में लागू की जाएगी, लेकिन उससे पहले आम बजट में कृषि क्षेत्र को सुधारों की एक और खुराक दी जाएगी।
इस बार मंडियों में सुधार और अनाज भंडारण को लेकर सरकार बजट बढ़ाने जा रही है। इसी प्रकार से सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को लेकर सरकार का नया अवतार देखने को मिलेगा। वो उपक्रम जिन्हें लगातार सरकारी खजाने से मदद दी जा रही है, उन पर सरकार अब पूरी तरह से हाथ खींचने का मन बना चुकी है।