कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाने के लिए विशेष बिन्दु, जिन्हें मुख्यतः किसानों को ध्यान रखना चाहियें और उचित खेती करना चाहियें।
मृदा पोषण एवं संतुलित उर्वरकों का उपयोग: मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों एवं सूक्ष्म तत्वों का उपयोग करें। मृदा स्वास्थ को बनाये रखने के लिए यथा संभव फसलों में कम्पोस्ट, हरी खाद/एफ वाई एम/वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग आवश्यक रूप से क्रिया जावे।
क्षेत्र विशेष हेतु अनुशंसित उन्नत संकर एवं संकुल प्रजातियों का उपयोग करें।
फसलों की अनुशंसित बीज दर का उपयोग करते हुए उपयुक्त अंतराल पर कतारों में समय पर बोनी करें।
बीजोपचार: जैविक/रसायनिक औषधियों से बीजोपचार सीड ट्रीटिंग ड्रम से करें।
सिंचाई जल उत्पादकता बढाना: सिंचाई जल का आवश्यकतानुसार फसलों की क्रांतिक अवस्थाओं में उपलब्ध सिंचाई संसाधनों का उपयोग सिंचाई यंत्रो के माध्यम से जैसे सिंचाई ड्रिप, स्प्रिंकलर, रेनगन , मिनी स्प्रिंकलर आदि से करें।
खरीफ मौसम में काली मिट्टी में बोई जाने वालो दलहनी एवं तिलहनी फसलों में रेज्ड/ब्रॉड ब्रेड पद्धति को अपनाया जावे।
समन्वित खरपतवार, कीट एवं व्याधि प्रबंधन: फसल उत्पादकता को बढाने के लिए अनुशंसित रसायनों एवं जैविक औषधियों का सही मात्रा, समय एवं विधि से करें।
गन्ना, मक्का, अरहर का क्षेत्र विस्तार की संभावनाएं प्रदेश में अधिक है। इन फसलों को बढावा दिया जावे।
संरक्षित खेती
फसल अवशेषों (नरवाई) को बिना जलाए उपयुक्त यंत्र की सहायता से फसलों की बुवाई करें।
असिंचित क्षेत्रो में अंतरवर्तीय फसलों को बढावा दिया जावे एवं द्वि-फसली क्षेत्र को बढावा देने के लिए खरीफ मौसम की जल्दी पकने वाली फसलों की किस्सों को प्राथमिकता दें।
कोदों, कुटकी, रागी एवं कपास की परंपरागत फसलों को जैविक खेती के रूप में लेकर प्रमाणीकरण की प्रक्रिया अनिवार्य किया जावे।
निमाड़ क्षेत्र में अरहर एवं संकर ज्वार बीजोत्पादन को बढावा।
फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश करते हुए बदलाव अवश्य करें।
जलवायु परिवर्तन कं प्रभाव से बचने के लिए फसलों की उपयुक्त जातियां एवं तकनीक का उपयोग करें।
बाजार की मांग को देखते हुए व्यावसायिक फसलों को प्राथमिकता दिया जावे।
स्वउत्पादित बीजों की गुणवत्ता में सुधार: बुवाई पूर्व ग्रेडिंग, अंकुरण क्षमता ज्ञात कर बीजोपचार उपरांत योनी करें।
फसलों में पीएसबी, राइजोबियम कल्चर एवं एजेक्टोबेक्टर 100 किलो ग्राम गोबर की खाद में मिलाकर बुवाई के समय उपयोग की जावे।
उत्पादन लागत में कमी करने के लिए जुताई, बुवाई, गहाई हेतु अधिकतम उन्नत कृषि यंत्रो का उपयोग करें।