वर्षा आधारित क्षेत्रों में कम पानी की जरूरत वाली और कम अवधि की फसलें ही उगायें।
परती और सामुदायिक भूमि पर खन्तियां (ट्रैंच) खोदें। इससे भू-जल स्तर में वृद्धि होगी और कुछ समय बाद परती भूमि भी खेती करने योग्य हो जायेगी।
खेत की मेड़बंदी अच्छी तरह करें, जिससे वर्षा का पानी खेत से बाहर न जा सके।
खेत में गोबर व पत्तों की सड़ी खाद 15 से 20 क्विंटल प्रति बीघे (200 से 250 क्विंटल प्रति हैक्टर) की दर से हर साल डालें।
रासायनिक खाद या कोई अन्य रासायनिक दवा तभी डालें जब या तो फसल कमजोर दिखे या फिर जब रोग व कीड़ों का प्रकोप हो।
हर खेत में एक निश्चित समय के अंतराल पर हरी खाद वाली फसल अवश्य उगायें और उसे 40 से 45 दिनों बाद जुताई कर मिट्टी में मिला दें।
हर गांव में सामुदायिक भूमि पर एक बड़ा तालाब अवश्य बनायें, जिसमें वर्षा जल एकत्र किया जा सके। जिसे पूरे गांव के द्वारा रबी की फसलों की सिंचाई हेतु उपयोग किया जा सके।
पर्वतीय क्षेत्रों में गांव के आस-पास के नालों में श्रमदान द्वारा चैक डैम अवश्य लगायें। इससे सूखे जल स्रोत रिचार्ज हो जायेंगे तथा भूमिगत जल स्तर में वृद्धि होगी। इससे गांव के सूखे कुएं और हैंडपम्प में पानी की उपलब्धता बढ़ जायेगी।
जहां सिंचाई जल की उपलब्धता कम हो वहां आधुनिक विधियों (फव्वारा/टपक सिंचाई) को अपनाकर सब्जी एवं फूलों की खेती ज्यादा करें।
पहाड़ी क्षेत्रों में छोटे एवं कम पानी वाले जलस्रोतों का पानी एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिये गूल/पानी की बजाय पाईप लाईन का इस्तेमाल करें।
हल्की, कंकरीली, पथरीली एवं रेतीली भूमि वाले खेतों में पानी इकट्ठा करने हेतु पॉली टैंक बनायें।
सामुदायिक जलस्रोतों/संसाधनों से सिंचाई के लिए पानी के बंटवारे हेतु पंचायत/ गांव स्तर पर सभी किसान सामुदायिक जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए ऐसे नियम बनायें। इससे पंचायत/ गांव के सभी किसानों को बिना किसी भेदभाव के एवं जरूरत की दर से सिंचाई का पानी मिल सकेगा।
बरसात के मौसम में किसान खेतों को कदापि खाली न छोड़ें। खाली खेतों से भू-कटाव अधिक होता है। अतः इस मौसम में खेतों में चौड़े पत्तों वाली विशेषकर दलहनी फसलों की खेती अवश्य करें।
पंचायत/गांव स्तर पर हर किसान के खेत की मेड़ों तथा सामुदायिक भूमि पर ज्यादा से ज्यादा घास एवं वृक्ष रोपण करें तथा उचित देखभाल भी करें। इससे पूरे क्षेत्र में चारे व लकड़ी की उपलब्धता बढ़ेगी तथा पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
वर्षा जल संरक्षण हेतु कोई विशेष या प्रभावी तकनीकी, अगर आप जानते हैं तो उसे क्षेत्र के किसानों को अवश्य बताएं। यह हम सबकी सामाजिक जिम्मेदारी है। पर्यावरण सुरक्षा में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु यह एक बेहतर व प्रशंसनीय तरीका है।
भूमि एवं जल संरक्षण के लाभ
पीने एवं सिंचाई के लिये पानी की उपलब्धता
भूमि कटाव का नियंत्रण भू-जल स्तर में बढ़ोतरी
भूमि में पोषक तत्वों का संरक्षण फसल और पेड़-पौधों से अधिक पैदावार
किसान के लिये पर्याप्त खाद्यान्न और पशुओं के लिये समुचित चारा