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शाही अनाज यानी
राजगिरा देशभर में रामदाना अथवा व्रत में प्रमुख रूप से उपयोग होने वाली फसल के
रूप में भी इसकी पहचान है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने इसकी उन्न्त
वैरायटी तैयार कर पहली बार मैदानी इलाके में इसकी फसल ली है। प्रयोग सफल रहा है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने इसके बीज को प्रमाणन के लिए केंद्रीय बीज
उपसमिति को भेजा है। वहां से हरी झंडी मिलते ही छत्तीसगढ़ के किसान धान की फसल कटने
के बाद व बारिश के पूर्व इसकी फसल लेकर अच्छी खासी आमदनी कर सकेंगे।
राजगिरा में
गेहूं, चावल व अन्य अनाज की
अपेक्षा प्रोटीन, कैल्शियम,
वसा व आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण बाजार
में इसकी कीमत भी काफी है। राजगिरा की फसल वर्तमान में छत्तीसगढ़ के पहाड़ी व ठंडे
क्षेत्र अंबिकापुर व सरगुजा में ही लगाई
जाती है। यह इस क्षेत्र की परंपरागत खेती है, जो की यहाँ काफी लम्बे समय से लोग करते आ रहे है।
विश्वविद्यालय के
अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभागाध्यक्ष डॉ. एके सरावगी ने बताया कि इसे 'छत्तीसगढ़ राजगिरा वन" नाम दिया गया है।
सफल परीक्षण और उन्नत खेती के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों
ने इसकी उन्न्त वैरायटी तैयार कर विश्वविद्यालय परिसर में करीब आधे एकड़ में बतौर
प्रयोग फसल तैयार की है, यह परिक्षण सफल
रहा।
राज्य बीज
उपसमिति से अनुमति लेने के बाद इस फसल को तैयार किया गया है। केंद्रीय बीज उपसमिति
को विश्वविद्यालय ने अनुमति के लिए भेजा गया है। वहां से हरी झंडी मिलते ही
छत्तीसगढ़ के वो किसान जो एक ही फसल के लिए कृषि करते है उनके लिए यह किसी सौगात से
कम नहीं होगी।
पोषक तत्वों से
भरपूर
विश्वविद्यालय के
अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. आरके यादव ने बताया कि
राजगिरा में दूध के मुकाबले दोगुना कैल्शियम होता है। यही वजह है कि सदियों से
इसका उपयोग उपवास में होता रहा है।
धान के बाद ले
सकते हैं फसल
धान की कटाई के
बाद किसान फसल ले सकते हैं। यह 110
से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। पकने पर फसल पीली पड़ जाती है। डॉ. सरावगी के
अनुसार इसकी उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
तक होगी।
सावधानियाँ -
1. फसल को सुखाते समय ध्यान रखना होता है कि दानों
के साथ मिट्टी न मिले।
2. समय पर कटाई नहीं करने पर दानों के झड़ने का
खतरा रहता है।
किसानों की आय
में होगी बढ़ोतरी
ऐसे किसान जो
केवल धान की फसल लेते हैं, उनके लिए यह किसी सौगात से कम नहीं होगी।
राजगिरा का आटा 50 रुपये प्रतिकिलो तक बिकता है। लड्डू दो सौ से
लेकर ढाई सौ रुपये किलो तक बिकता है। यानी इसकी फसल लेने से किसानों की आमदनी बढ़
जाएगी।
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