किसानों द्वारा गेहूं के अवशेष जलाने से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। थोड़ी सी लापरवाही धरती की कोख को सूना कर रही है। किसान फसल के अवशेष को आग के हवाले कर रहे हैं। जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति क्षीण होती जा रही है। कृषि योग्य भूमि बंजर होने के कगार पर पहुंच रही है। वहीं पशु चारे की कमी बढ़ने के साथ-साथ फसल के अवशेष आग के हवाले किए जाने से पर्यावरण भी दूषित हो रहा है। इन दिनों कंबाईन मशीनों से गेहूं की कटाई व कढ़ाई के बाद बाकि बचे अवशेषों को किसान आग के हवाले कर देते हैं। काफी समय पहले तक किसान रात के समय फसलों के अवशेषों को आग के हवाले करते दिखाई देते थे, लेकिन अब तो दिन के समय ही गेहूं के अवशेषों का तूड़ा बनाने की बजाए उसे आग के हवाले किया जा रहा है।
फसल अवशेष जलाने पर क्या प्रभाव पड़ता हैं?
- अवशेष जलाने से 100 प्रतिशत नाइट्रोजन, 25 प्रतिशत, 20 प्रतिशत पोटाश एवं करीब 60 प्रतिशत सल्फर का नुकसान होता है।
- भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है। इससे मिट्टी में होने वाली रसायनिक क्रियाएं भी प्रभावित होती हैं, जैसे कार्बन- नाईट्रोजन एवं कार्बन फास्फोरस का अनुपात बिगड़ जाता है, जिससे पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में कठनाई होती है।
- किसान रासायनिक खाद पर निर्भर हो रहा हैं, जिससे खेती की लागत बढ़ रही है।
- भूमि की संरचना में क्षति होने से पोषक तत्वों की समुचित मात्रा में पौधों को उपलब्ध नहीं होने से जल निकासी संभव नहीं हो पाती है।
- जमीन में मौजूद कार्बनिक प्रदार्थों का नुकसान होता है। जमीन की ऊपरी सतह में रहने वाले मित्र कीट केंचुआ भी नष्ट हो जाते हैं।
- फसल अवशेषों से मिलने वाले पोषक तत्वों से भी जमीन वंचित रह जाती है।
- लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चर्म रोग एवं कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रसित होने वाले रोगियों में बढ़ोतरी हुई है।
- फसल अवशेषों की आग फैलने से जन-धन की हानि होती है एवं पेड़ पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं।
- मिट्टी की ऊपरी सतह कड़ी होने के कारण जलधारण क्षमता में कमी।
क्या करें फसल अवशेष का
- फसल अवशेषों को पशु चारा अथवा औद्योगिक प्रबंधन के लिए एकत्रित किया जा सकता है।
- फसल अवशेषों को मशरूम की खेती में सार्थक प्रयोग किया जाना संभव है।
- ईंधन के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।
- जैविक खाद बना सकते हैं।
फसल अवशेष को जैविक खाद में बदलने का उपाय
फसल अवशेषों को कृषि यंत्रों की सहायता से मिट्टी में मिलाने के बाद पूसा डिकम्पोजर का प्रयोग करना चाहिए। पूसा डिकम्पोजर घोल की 500 लीटर मात्रा एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए पर्याप्त रहती है। जो फसल अवशेष को 30 से 40 दिनों में जैविक खाद में तब्दील कर देता है।
कैसे करें प्रयोग
पांच लीटर पानी में 150 ग्राम गुड डालकर अच्छी तरह उबालें और उसे ठंडा करके उसमें 50 ग्राम चने का आटा मिला लें। इसमें पूसा डिकम्पोजर के चार कैप्सूल तोड़कर डाल दें और उसे कपडे़ से ढककर रख दें। करीब दस दिनों में पूसा डिकम्पोजर का कल्चर तैयार हो जाएगा। इस घोल में सफेद और हरी फफूंद पैदा हो जाती है। इसके बाद इसका प्रयोग करें।