खेती में फफूंद जनित रोगों से बचाव के आसान उपाय, ट्राइकोडर्मा का प्रयोग कर फसल की पैदावार बढ़ाएँ

खेती में फफूंद जनित रोगों से बचाव के आसान उपाय, ट्राइकोडर्मा का प्रयोग कर फसल की पैदावार बढ़ाएँ
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Kisaan Helpline

Agriculture Nov 07, 2024

किसान लगातार फसलों में रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता और फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। ऐसे में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया है, जो फसल को फफूंद जनित रोगों से बचाने के साथ ही जैविक तरीके से उत्पादन बढ़ाने में मदद करता है। सरकार भी इसके प्रयोग को प्रोत्साहित कर रही है और 75 प्रतिशत तक सब्सिडी देती है, ताकि किसानों को अतिरिक्त मदद मिल सके।


ट्राइकोडर्मा से जैविक खाद

ट्राइकोडर्मा का प्रयोग जैविक खाद तैयार करने में किया जा सकता है। इसमें एक किलो ट्राइकोडर्मा को 45-50 किलो गोबर की खाद में मिलाकर 10-15 दिन तक छाया में रखा जाता है, और फिर शाम को नमी वाली अवस्था में खेत में मिला दिया जाता है। इसका प्रयोग आलू, गेहूं और दलहन जैसी फसलों में किया जा सकता है, जिससे फसलों की उत्पादकता में सुधार होता है।


ट्राइकोडर्मा का प्रयोग कैसे करें?

ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल फसलों में कई तरह से किया जा सकता है:

  • बीज उपचार: बुवाई से पहले ट्राइकोडर्मा के घोल में बीज भिगोने से फफूंद जनित रोगों से बचाव होता है।
  • जड़ उपचार: पौधों की जड़ों को ट्राइकोडर्मा के घोल में डुबोकर लगाने से जड़ें मजबूत होती हैं और मिट्टी फफूंद जनित रोगों से सुरक्षित रहती है।
  • भूमि उपचार: ट्राइकोडर्मा को जैविक खाद में मिलाकर खेत में डालने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
  • पर्णीय छिड़काव: पत्तियों पर ट्राइकोडर्मा के घोल का छिड़काव करने से फफूंद जनित रोगों का खतरा कम होता है।


ट्राइकोडर्मा के मुख्य लाभ
  • ट्राइकोडर्मा रासायनिक कीटनाशकों का एक बेहतरीन जैविक विकल्प है।
  • पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना फसल को फफूंद जनित रोगों से बचाता है।
  • पौधों की वृद्धि में मदद करता है, जड़ों और तनों को मजबूत बनाता है।
  • मिट्टी में सक्रिय रहकर फसलों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है।


उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के अनुसार, ट्राइकोडर्मा के नियमित इस्तेमाल से फसल की गुणवत्ता और पैदावार में वृद्धि होती है। हालांकि पहले साल पैदावार में कुछ कमी आ सकती है, लेकिन बाद में इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई देते हैं। आज के समय में कई किसान ट्राइकोडर्मा का उपयोग कर रासायनिक कीटनाशकों से दूर हो रहे हैं, जिससे खेती का पारिस्थितिक संतुलन भी बना रहता है और लागत भी कम आती है।

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