खेती में बढ़ती लागत किसानों के लिए चिंता का विषय

खेती में बढ़ती लागत किसानों के लिए चिंता का विषय
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Kisaan Helpline

Agriculture Jun 02, 2021

वर्तमान समय में खेती परंपरागत तरीकों की जगह भले ही आधुनिक हो गई, मगर किसानों के लिए लाभकारी नहीं हो पाई। हालांकि सरकार किसानों को कुछ यूनिट बिजली निःशुल्क देने के अलावा बीज और खाद पर सब्सिडी देकर राहत देती है। इसके बावजूद डीजल की बढ़ती कीमत, ट्रैक्टर से जोताई व थ्रेसर से मिसाई की बढ़ी लागत और श्रमिकों का बढ़ता मेहनताना फसल की लागत मूल्य को बढ़ा दे रहा है।

खेती में बढ़ती लागत के बिच फसलों का उचित दाम नहीं मिल रहा है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार नहीं हो पा रहा है। परिणाम स्वरूप आज भी अधिकतर किसान कर्ज में जन्म लेता है और कर्ज में ही मर जाता है। दूसरी ओर लागत बढ़ने की बात कहकर इसका लाभ आढ़ती और बिचौलिए उठा रहे हैं और लोगों को महंगा अनाज मिल रहा है।

आज के समय में आधुनिक तकनीकों के कारण परंपरागत खेती लगभग खत्म हो गई है। पहले हल के जरिए खेतों की जोताई की जाती थी। वहीं धान की मिसाई के लिए बेलन का उपयोग किया जाता था। समय के साथ कृषि कार्य के तरीकों में भी बड़ा बदलाव आ गया है। परंपरागत खेती के बजाय आधुनिक खेती की ओर किसानों का रुझान तेजी से बढ़ा है। यही कारण है कि उन्नतशील कृषकाें के तर्ज पर लघु और मध्यम किसान भी कृषि यंत्रों के जरिए खेती करने लगे हैं।

आधुनिक यंत्रों पर इनकी निर्भरता भी तेजी के साथ बढ़ी है। डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण आधुनिक कृषि यंत्रों के जरिए खेती करना किसानों को अब महंगा पड़ने लगा है। देश में पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती कीमतों के कारण किसानों की परेशानी बढ़ गई है। रबी मौसम में उत्पादित फसलों की कटाई में इस महंगाई का सामना करना पड़ रहा है।

खेती में बढ़ती लागत का कारण किसानों ने पिछले साल खरीफ फसल के दौरान 1,800 रुपये प्रति एकड़ की दर से कटाई और मिसाई केलिए हार्वेस्टर संचालक दिए थे। अब वे प्रति एकड़ 2,000 रुपये ले रहे हैं। ट्रैक्टर से जोताई की लागत भी 650 रुपये प्रति घंटा से बढ़कर 825 रुपये हो गई है। थ्रेसर से मिसाई 800 रुपये प्रति घंटा से बढ़कर 1,000 रुपये हो गई है। साथ ही पुरुष श्रमिकों का मेहनताना प्रतिदिन 250 रुपये से बढ़कर 300 रुपये हो गया है।

इसके अलावा अन्य मजदूरी की बात करे तो जैसे निराई-गुड़ाई या कृषि संबंधित कार्य हेतु महिला श्रमिकों की मजदूरी 150 रुपये से 200 रुपये हो गई है। जाहिर है कि वर्ष 2020 के मुकाबले इस वर्ष खेती प्रति एकड़ 675 रुपये महंगी हो गई है। खेती की बढ़ती लागत चिंता की बात है।

खेती में फसलों के उत्पादन की लागत बढ़ने से किसानों का लाभ कम हो जाएगा, क्योंकि इसके मुकाबले समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी नहीं होगी। कर्ज माफी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि उत्पादन लागत कम और समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करनी होगी।

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