Green Manure: रासायनिक खाद के अधिक और असंतुलित प्रयोग के कारण हमारे खेतों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। और इसका सीधा असर पड़ता है फसल के उत्पादन में और मनुष्य के स्वास्थ्य पर। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार खेत की मिट्टी की उर्वरकता और सेहत को सुधारने के लिए सबसे अच्छा, सरल और सस्ता तरीका है हरी खाद का प्रयोग। हरी खाद खेत की मिट्टी के लिए एक वरदान है। हरी खाद मिट्टी की संरचना में सुधार करता है और मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करता है।
हरी खाद के लिए उपयुक्त फसलें
हरी खाद के लिए मुख्यत: लेग्युमिनेसी कुल की फसलों का उपयोग किया जाता है। मुख्य खेत में ही उगाकर हरी खाद बनाने के लिए मुख्य फसलें जैसे-ढैचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार, बरसीम आदि हैं। इनके अलावा कुछ वृक्षों, झाड़ियों एवं खरपतवारों को भी हरी खाद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वृक्षों एवं झाड़ियों में करंज, नीम. सुबबूल, तरवड़ आदि की टहनियों एवं पत्तियों को हरी खाद के लिए उपयोग किया जा सकता है। जलकुंभी, आक, टेफरोसिया आदि खरपतवारों को भी हरी खाद के लिए उपयोग किया जा सकता है। इन सभी में ढैचा सबसे उपयुक्त फसल है, जिसे सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से उगाकर हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
हरी खाद के रूप में ढैचा का प्रयोग
ढैचा की बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पौधों में गांठें बनने लगती हैं। नाइट्रोजन स्थिर होती है। 45 दिनों की फसल में जड़ गांठों की संख्या सबसे अधिक होती है। वह समय फसल को मिट्टी में मिलाने का सबसे अच्छा समय होता है।
बीज की मात्रा
12 किलो डेंचा बीज एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता है। उपयुक्त बीज दर से कम या अधिक बीज के प्रयोग से हरी खाद का पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाता है।
बुवाई का समय
रबी की फसल की कटाई और खरीफ की फसल की बुवाई के बीच का समय ढैचा के लिए सबसे अच्छा समय होता है। इस दौरान आमतौर पर खेत खाली रहते हैं।
हरी खाद पोषक तत्वों को बढ़ाती है
हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि कर उसमें जैविक पदार्थ की आपूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है। इसे जमीन में काटकर खाद के रूप में प्रयोग करें। इससे रासायनिक खाद के प्रयोग को कम किया जा सकता है। खेती की लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
हरी खाद के लाभ
हरी खाद से जैविक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि होती है। फसलों के उत्पादन में लाभ होता है। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ और उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि होती है। मिट्टी की जल धारण क्षमता में सुधार होता है। मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार करता है।