सूरजमुखी में आवश्यक सस्य क्रियाएं :- सूरजमुखी से अधिक उपज लेने के लिए मधुमक्खी के बक्सों को खेत के किनारे रखें।
मधुमक्खी पालन न करने की स्थिति में सूरजमुखी में अच्छी तरह फूल आ जाने पर हाथ में दस्ताने पहनकर या किसी मुलायम रोयेंदार कपड़े को लेकर फूल के मुंडक पर चारों ओर धीरे से घुमा दें। यह क्रिया प्रात:काल 7.30 बजे तक करें।
सूरजमुखी में हैडरॉट, जिसमें पहले तने व फिर मुंडकों पर काले धब्बे बनते हैं, की रोकथाम हेतु मैंकोजेब 0.3 प्रतिशत का मुंडक बनते समय छिड़काव करें।
सोयाबीन व सूरजमुखी की फसल में वर्षा न होने की स्थिति में फूल व फली बनते समय आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करें।
सोयाबीन में आवश्यक सस्य क्रियाएं :- सोयाबीन में पीले मोजेक रोग की रोकथाम के लिए प्रभावित पौधों को निकालकर डाईमेथोएट 30 ई.सी. एक लीटर या मिथाइल-ओ-डिमेटान (25 ई.सी.) की एक लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार 10-15 दिनों के अंतराल पर 1-2 छिड़काव करें।
मूंगफली में आवश्यक सस्य क्रियाएं:- मूंगफली में खूंटियां (पैगिंग) तथा फलियां बनते समय खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखें। अधिक वर्षा होने की स्थिति में खेत में जल निकास की व्यवस्था करें।
अरहर, मूंग और उड़द में आवश्यक सस्य क्रियाएं
- कलियां बनते समय वर्षा न होने की स्थिति में खेत में पर्याप्त नमी रखने के लिए सिंचाई करें।
- अरहर की फलीबेधक मक्खी: उत्तरी भारत में यह कीट अरहर की फसल को काफी हानि पहुंचाता है। इस कीट के द्वारा 20-25 प्रतिशत तक अरहर की फसल को प्रति वर्ष नुकसान होता है। इसका नियंत्रण मोनोक्रोटोफॉस (0.04 प्रतिशत घोल) छिड़कने से किया जा सकता है।
- फली बग: इस कीट के वयस्क एवं शिशु पत्तियों, कलियों, फूलों तथा फलियों के रस को चूसते हैं, जिससे फलियां सिकुड़ जाती हैं और सही तरीके से नहीं बन पाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस (0.04 प्रतिशत घोल) या डाइमिथोएट (0.03 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए।
- फलीछेदक कीट की रोकथाम हेतु सबसे पहले यौन आकर्षण जाल (फेरोमेन ट्रैप) के द्वारा नियमित निगरानी करते रहें। जैसे ही 5-6 नर कीड़े/ट्रैप 24 घंटे के अंदर मिलना शुरू हो जाएं, नियंत्रण तकनीक अपनाएं। न्यूक्लियर पॉलीहेड्रोसिस विषाणु (एन.पी.वी.) का 250 लार्वा समतुल्य प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें एवं परभक्षियों के लिए खेत में टी आकार की लकड़ी लगा दें।
- पीला मोजेकः यह रोग मूंग की रोग ग्राही प्रजातियों में अधिक व्यापक होता है। पौधों के आकार छोटे रह जाते हैं। ऐसे पौधों में बहुत कम व छोटी फलियां होती हैं। ऐसी फलियों का बीज सिकुड़ा हुआ और छोटा होता है। यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। इसके नियंत्रण के लिए खेत में ज्यों ही रोगी पौधे दिखाई दें, डायमेथाक्सामयाइमिडाक्लारोप्रिड 0.02 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स 0.1 प्रतिशत का छिड़काव कर दें। छिड़काव को 15-20 दिनों के अंतराल पर दोहराएं और कुल 3-4 छिड़काव करें। प्रति हैक्टर 800 लीटर पानी में बना घोल पर्याप्त होता है।