Agriculture Advisory : किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि कपास, मिर्च, सोयाबीन, तुवर व मक्का के खेतो में अधिक पानी लगने की अवस्था में खेत के किनारे नाली बनाकर जल निकास की व्यवस्था करें। अन्यथा पौध सूखने एवं जड़ सड़न की समस्या आ सकती है। जहाँ पर फसल 15-20 दिन की हो गई हो वहाँ पत्ती खाने वाले कीटों से सुरक्षा हेतु फूल आने से पहले ही सोयाबीन फसल में क्लोरइंट्रानिलिप्रोल 18.5 एस. सी. (150 मिली है.) का छिड़काव करें इससे अगले 30 दिनों तक पर्णभक्षी कीटों से सुरक्षा मिलेगी। इस समय तना मक्खी का प्रकोप प्रारंभ होने की सम्भावना होती है अतः इसके नियंत्रण हेतु सलाह है कि पूर्व मिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्साम 12.60% + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 09.50% ZC (125 मिली/हे.) का छिड़काव करें।
सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Soybean)
सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 20 से 25 दिन में क्विज़ालोफॉप-एथिल (Quezalofop-ethyl) या फेनोक्साप्रोप-एथिल (Fenoxaprop-ethyl) मात्रा 1 लीटर प्रति हेक्टेयर या इमाजेथापायर मात्रा 750 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से फ्लैट नोजल से छिड़काव करें।
सफेद मक्खी का प्रकोप होने की आशंका
बारिश के बाद धूप और फिर बादल छाए रहने से फसलों पर सफेद मक्खी का प्रकोप होने की आशंका है। इसका प्रकोप सोयाबीन, मूंग, अरहर, तिल, उड़द तथा सब्जियों (भिंडी, लौकी, तुरई आदि) में होता है। सफेद मक्खी फसल पर वायरल पीला मोज़ेक रोग फैलाती है। रोग के लक्षण पौधे की नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं और पत्तियों पर बेतरतीब ढंग से फैलकर बड़े चमकीले नीले-पीले धब्बे बनाते हैं। पत्ती के मुख्य डंठल पर एक पीली पट्टी बन जाती है और बाद में पूरी पत्ती पीली हो जाती है।
नियंत्रण के लिए मौसम साफ होते ही थायोमिथोक्सम 25 डब्लू. जी. 100 ग्राम, हेक्टर या इथोफेनप्राक्स 10 ई.सी. 1.25 लीटर / हेक्टर या एसिटामाप्रीड 20 एस.पी. 200-250 ग्राम / हेक्टर की दर से या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 100 मि.ली. / हेक्टर की दर से छिडकाव करें। कीटनाशक दवा के साथ धानुविट या सेन्डोविट चिपकने वाले पदार्थ 1 मि.ली. / लीटर पानी की दर से मिलाकर छिड़काव करें जिससे कीटनाशक पत्तियों से चिपककर अधिक समय तक प्रभावी या असरदार बना रहे। ध्यान रखें कि दवा का छिड़काव करने के 4-5 घंटे तक बारिश नहीं होनी चाहिए, यदि ऐसा हो तो दवा का दोबारा छिड़काव करना जरूरी हो जाता है।
अर्धकुण्डलक इल्लियों का प्रकोप
वर्तमान में खरीफ फसलों में कहीं-कहीं पर हरी एवं भूरी अर्धकुण्डलक इल्लियों का प्रकोप मिल रहा है। भूरी इल्ली का सिर पतला एवं पिछला हिस्सा चौड़ा होता है एवं पीलापन लिए हुए हरे रंग का होता है इसके दोनों और धारी होती हैं, से इल्ली छोटी अवस्था में पत्तियों को खुरचकर खाती है तथा बाद में कलियों फूलों एवं नई फलियों को खाकर नुकसान करती हैं।
फसल पर चक्रभृंग कीट (गर्डल बीटल) का प्रकोप
फसल पर चक्रभृंग कीट (गर्डल बीटल) का प्रकोप भी दिखाई दे रहा है इस कीट की मादा अपने मुखांगों से तने के ऊपरी भाग पत्तियों के पर्णवृत्त या कोमल डण्ठलों पर दो चक बनाती है तथा निचले चक्र के पास तीन छेद बनाकर बीच वाले छेद में अण्डा देती है चक्र बनने से ऊपर का भाग सूख जाता है। इस तरह सूखे पौधे आसानी से पहचाने। जा सकते हैं। किसानों को सलाह दी जाती है कि खेतों का लगातार निरीक्षण करते रहें। नियंत्रण हेतु मौसम के खुलते ही क्विनालफॉस 25 ई.सी. या क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. या प्रोफेनोफॉस 40 ई.सी. का 15 लीटर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें।
मौसम साफ होते ही करें ये काम
सभी खरीफ फसलों में मौसम साफ होते ही आन्तरिक कर्षण करें। फसलों में कुल्पा या डोरा चलाएं तथा निंदाई-गुदाई करें।
जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाये रखें
सोयाबीन, सब्जियों एवं अन्य खरीफ फसलों में जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाये रखें।