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अलीगढ़। तालों और अपने प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के साथ अलीगढ़ इन दिनों किसानों के बीच भी चर्चा में आ रहा है। जिले का एक किसान तमाम किसानों को केचुए से कमाई के तरीके बता रहा है, जिसे सीखने के लिए कई जिलों के लोग आते हैं।
अलीगढ़ जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर अतरौली तहसील ब्लाक अतरोली के गांव बैमवीरपुर में रिटायर्ड शिक्षक अपने जैसे तमाम किसानों को जैविक खाद के उत्पादन और बेहतर पैदावार की राह दिखा रहे हैं। 100 से भी अधिक किसान उनके साथ जुड चुके हैं और केंचुआ खाद का प्रयोग कर फसल में अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। उनकी जैविक खाद की सप्लाई तमाम जिलों में हो रही है।
जिला अलीगढ़ के तहसील अतरौली के गांव बैमवीरपुर के रहने वाले शंभूदयाल शर्मा वर्ष 2006 में प्राथमिक स्कूल के हेडमास्टर के पद से रिटायर्ड हुए थे। साल 2009 में अतरौली ब्लाक मुख्यालय से उन्हें केंचुआ खाद के उत्पादन और उसके प्रयोग से होने वाले लाभ की जानकारी मिली। उन्होंने प्रयोग के तौर पर केंचुआ खाद का उत्पादन शुरू किया।
उन्होंने खुद की ही फसल में इसका प्रयोग किया। कम लागत में मुनाफा देख उन्होंने इसका विस्तार किया। एक साल में ही दर्जनों गाँवों के कई किसान उनसे जुड़ गए। उनकी लगन और उत्पादन के तरीके को देखकर ब्लाक से उन्हें जिला मुख्यालय पर भेजा गया। सरकार से भी वह प्रोत्साहित हुए तो उन्होंने केंचुआ खाद को बिजनेस के रूप में अपना लिया।
शंभूदयाल शर्मा कहते हैं, ”अब इस खाद की सप्लाई हाथरस, कासगंज, औरेया, पीलीभीत, बरेली, मुरादाबाद, झांसी आदि जिलों में है। खाद के निकलने वाले सरकारी टेंडरों के माध्यम से उनकी सप्लाई इतनी अधिक है कि कभी कभी तो वह पूर्ति भी नहीं कर पाते। स्थानीय किसान भी जैविक खाद खरीद ले जाते हैं।”
पिपरमिंट और मक्का की फसल
जैविक खाद के उत्पादन से इस वक्त किसानों की मक्का और पिपरमिंट की फसल लहलहा रही है। मक्का और पिपरमिंट में किसानों को अच्छा मुनाफा मिलने की उम्मीद है। किसान जैविक खाद के प्रयोग से गेहूं और आलू की भी अच्छी पैदावार ले चुके हैं।
किसान जगवीर सिंह (50वर्ष) का कहना है, ”रसायन खाद से पैदा होने वाली फसल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं है। जैविक खाद से पैदा होने वाली स्वास्थ्य के लिए नुकसान दायक नहीं है। साथ ही कम लागत से अच्छी पैदावार मिलती है। मक्का और पिपरमिंट की फसल अच्छी हो रही हैं। हाल ही में गेहूं ने अच्छा मुनाफा दिया।”
केंचुआ की खेती से हो रहे फायदे को देखकर आसपास के किसान भी प्रेरणा ले रहे हैं। जागरुक किसान अब रसायन खाद का प्रयोग छोड़कर केंचुआ की खाद से फसल पैदा कर रहे हैं।
सबसे पहले गोबर एकत्रित किया जाता है। गोबर को हिस्सों में बांटकर उसके बेड बनाए जाते हैं। जिन पर जिला मुख्यालय से मिलने वाला विशेष किस्म के केंचुआ छोड़ दिए जाते हैं। ऊपर से टाट का बोरा-पत्ता आदि डाल दिए जाते हैं।
दो महीने तक बस रोज सुबह शाम पानी का छिड़काव करते रहें। धीरे धीरे खाद उतारते जाएं। इस खाद में ही केंचुआ नर और मादा भी होते हैं, जिनसे केंचुओं की संख्या भी बढ़ती जाती है और खाद का उत्पादन भी। केंचुआ जितने बढ़ जाएं उसी हिसाब से गोबर के बेड बढ़ा लेने चाहिए।
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