Farmer News: एक बार फिर बारिश का दौर थम गया है और मौसम गर्म होने लगा है। मौसम में बार-बार हो रहे बदलाव के कारण चार साल बाद सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के प्रकोप का खतरा बढ़ गया है। और इधर, मौसम विभाग करीब दस दिनों तक अच्छी बारिश की संभावना नहीं जता रहा है, जिससे किसानों की चिंता बढ़ने लगी है।
इस बार खरीफ सीजन में मौसम किसानों का साथ नहीं दे रहा है। मानसून के देरी से आने से खेतों में बुआई में पहले ही देरी हो चुकी है। इसके बाद कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि के कारण फसलों को नुकसान हुआ। अनियमित बारिश के कारण किसानों को सैकड़ों बीघे जमीन खाली छोड़नी पड़ी। समय पर बुआई करने वाले किसान अब फसल बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि इस साल अच्छी फसल होना मुश्किल है। कभी तेज बारिश तो कभी तेज धूप के कारण फसलें अच्छी नहीं हो पा रही हैं। खरपतवार से लेकर कीट के प्रकोप का खतरा बढ़ गया है।
तना मक्खी के प्रकोप का खतरा बढ़ गया
मिडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के तकनीकी प्रबंधक नरेंद्र रघुवंशी के अनुसार बारिश रुकने और तेज धूप के कारण सोयाबीन की फसल में तना मक्खी फैलने का खतरा बढ़ गया है। सोयाबीन के पौधों में अभी फलियां बनना शुरू हुई हैं। कुछ खेतों में फलियों में बीज बनना भी शुरू हो गया है। ऐसे में तना मक्खी के हमले का खतरा अधिक रहता है, जिसमें सोयाबीन के तने पर मक्खी का हमला होता है और फिर पौधा सूखने लगता है। कुछ क्षेत्रों में किसानों के खेतों में तना मक्खी का प्रकोप देखा गया है। उन्होंने कहा कि अगले 15 दिनों तक सोयाबीन के पौधों को इस प्रकोप से बचाना बहुत जरूरी है। इससे बचाव के लिए किसानों को कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए।
इस तरह करें किसान कीट की पहचान
कीट का कीड़ा (मैगट) सफेद रंग के तने के अंदर रहता है। वयस्क कीट का आकार लगभग 2 मिमी और चमकदार काला रंग होता है। जब प्रभावित पौधे के तने को काटा जाता है तो एक बहुत छोटी इल्ली दिखाई देती है। यह कीट फसल अवस्था में अपना जीवन चक्र दो से तीन बार पूरा करता है और सोयाबीन को भारी नुकसान पहुंचाता है। कीट की मादा पत्तियों पर पीले रंग के अंडे देती है। इनके कीट पत्तियों की शिराओं में छेद करके तने में प्रवेश कर सुरंग बनाते हैं और तने को खोखला कर देते हैं।
सोयाबीन में फफूंदजनित रोग और फलियाँ झड़ने की समस्या
किसानों का कहना है कि मौसम में उमस बढ़ने से सोयाबीन में फफूंदजनित रोग भी बढ़ने लगा है। इस रोग में सोयाबीन का पौधा पीला पड़ने लगता है और फलियाँ झड़ने लगती हैं। आत्मा के तकनीकी प्रबंधक रघुवंशी के अनुसार किसानों को फंगस से बचाव के लिए कीटनाशक के साथ-साथ फफूंदनाशक का भी छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने कहा कि 99 फीसदी फसल पर फफूंदजनित रोगों का खतरा बना रहता है। किसान सतर्कता बरतते हुए फसल की सुरक्षा करें। उनके मुताबिक अगर अच्छी बारिश हुई तो इस बीमारी से फसल प्रभावित होने का खतरा नहीं रहेगा।