जीरो बजट प्राकृतिक खेती की जाय तो निश्चित ही किसानों की उत्पादन लागतकम होगी और कम लागत में अधिक पैदावार मिलेगी साथ ही उपज की अच्छी गुणवत्ता होने के कारण उसके दाम भी बाजार में अच्छे मिलेंगे।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती की आवश्यकता क्यों ?
खेती की अत्याधुनिक पद्धतियों से किसान अपने खेत में अंधाधुन्ध रसायनों तथा संश्लेशित उर्वरकों का प्रयोग कर रहा है। जिससे किसान की उपज में वृद्धि हो रही है लेकिन उत्पादन लागतमें भी वृद्धि हो रही है और किसान को उनके उपज का उचित मूल्य न मिलने के कारण खेती एक घाटे का सौदा बनती जा रही है। इसके साथ ही किसानों के खेत की उर्वरता की भी कमी हो रही है और मिट्टी में क्षार के जमा हो जाने के कारण मिट्टी की जल अवशोषण क्षमता में कमी तथा मिट्टी सीमेन्ट की तरह सख्त होती जा रही है। जिससे मिट्टी का खिंचाव बढ़ जाता है और खेत की जुताई में परेशानी होती है। साथ ही जुताई करने पर बड़े-बड़े ढेले बन जाते हैं तथा ज्यादा शक्ति के टैक्टर का इस्तेमाल करना पड़ता है। साथ ही मिट्टी के सख्त होने के कारण हवा का प्रवाह जमीन में अवरुद्ध हो जाता है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के बारे में
जीरो बजट प्राकृतिक खेती एक खेती करने की तरीकों का एक समूह है जिसमें बिना किसी लागत के खेती के प्राकृतिक तरीकों को अपनाने की बात कही जाती है। इसे जीरो बजट प्राकृतिक खेती (Zero budget natural farming) Zero budget organic farming कहते हैं। जीरो बजट प्राकृतिक खेती बाहर से किसी भी उत्पाद का कृषि में निवेश का खंडन करता है। इसलिए जीरो बजट प्राकृतिक खेती में देशी गाय के गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग करते हैं। इस विधि से 30 एकड़ जमीन पर खेती के लिए मात्र 1 देशी गाय के गोबर और गोमूत्र की आवश्यकता होती है। देशी प्रजाति के गौवंश के गोबर तथा गोमूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत, जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक 'गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का उपयोग सिंचाई के साथ या एक से दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती में संकर बीज, सिंथेटिक बीज अधिक पैदावार देने वाली प्रजाति का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके स्थान पर पारस्परिक देशी उन्नतशील प्रजातियों का प्रयोग किया जाता है। इस विधि से खेती करने से किसान को बाजार से खाद एवं उर्वरक, कीटनाशक तथा बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। जिससे उत्पादन की लागत शून्य रहती है। जीरो बजट में एकल कृषि पद्धति को छोड़कर बहुफसली की खेती करते हैं। यानि एक बार में एक फसल न उगाकर उसके साथ कई फसल उगाते हैं। जीरो बजट प्राकृतिक खेती को करने के लिये 4 तकनीकों का प्रयोग खेती करने के दौरान किया जाता है-
जीवामृतः जीवामृत की मदद से जमीन को पोषक तत्व मिलते हैं और ये एक उत्प्रेरक एजेंट के रूप में कार्य करता है। जिसकी वजह से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की गतिविधि बढ़ जाती है। इसके अलावा जीवामृत की मदद से पेड़ों और पौधों को कवक और जीवाणु से उत्पन्न रोग होने से भी बचाया जा सकता हैं।
जीवामृत बनाने की विधि
एक ड्रम में 200 ली. पानी डालें और उसमें 10 किग्रा. ताजा गाय का गोबर, 10 ली. गाय का मूत्र, 1 किग्रा. बेसन (किसी भी दाल का आटा), 1 किग्रा, पुराना गुड़ और 1 किग्रा. मिट्टी को मिला लें। यह सब चीजें मिलाने के बाद इस मिश्रण को 48 घण्टों के लिये छाया में रख दें। 2 से 4 दिन बाद यह मिश्रण इस्तेमाल के लिये तैयार हो जायेगा।
उपयोग की विधि
एक एकड़ जमीन के लिये 200 ली0. जीवामृत मिश्रण की जरूरत पड़ती है। किसान को अपनी फसलों में महीने में 2 बार छिड़काव करना होगा। इसे सिंचाई के पानी में मिला कर भी उपयोग किया जा सकता है।
घन जीवामृत
घन जीवामृत सूखी खाद होती है। इसे बनाने के लिये 100 किग्रा. देसी गाय के गोबर को, 2 किग्रा. गुण, 2 किग्रा. दाल का आटा और 1 किग्रा. सजीव मिट्टी (पेड़ के नीचे की मिट्टी या जहां रासायनिक खाद न डाली गयी हो) डाल कर अच्छी तरह मिश्रण बना लें। इस मिश्रण में थोड़ा थोड़ा गोमूत्र डालकर अच्छी तरह गूंथ लें ताकि घन जीवामृत बन जाए। अब इस घन जीवामृत को छांव में अच्छी तरह फैला कर सुखा लें। सूखने के बाद इसको लकड़ी से ठोक कर बारीक कर लें। इसे बुवाई के समय या पानी देने के 2 से 3 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। इस सूखे घन जीवामृत को 6 महीने तक भण्डारित किया जा सकता है।
बीजामृत
बीजामृत का इस्तेमाल नये पौधों की बीज रोपण के दौरान किया जाता है। बीजामृत की मदद से नये पौधों की जड़ों को कवक, मिट्ट से पैदा होने वाली बीमारी और बीजों को बीमारियों से बचाया जा सकता है। बीजामृत बनाने के लिये गाय का गोबर, एक शक्तिशाली प्राकृतिक कवक नाशक, गाय मूत्र एण्टी बैक्टीरियल तरल, नींबू और मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है।
उपयोग की विधि
किसी भी फसल के बीजों को बोने से पहले उन बीजों में आप बीजामृत अच्छे से लगा दें और लगाने के बाद उन बीजों को कुछ देर सूखने के लिये छोड़ दें। बीजों पर लगे बीजामृत सूखने के बाद आप बीजों को जमीन में बो सकते हैं।
आच्छादन/मल्चिंग
मिट्टी की नमी का संरक्षण करने के लिये और उसकी जैव विविधता को बनाये रखने के लिये जाता मृदा अच्छादन/मल्चिंग का प्रयोग किया । मृदा अच्छादन में मिट्टी की सतह को ढकने के लिये कई तरह की सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है ताकि खेती के दौरान मिट्टी में उपस्थित नमी और उसकी जैव विविधता को नुकसान न पहुँचे।
मृदा अच्छादन तीन प्रकार से की जाती है:-
- मिट्टी आच्छादन
- पुआल / भूसा आच्छादन
- सजीव / लाइव आच्छादन
मिट्टी आच्छादन
खेती के दौरान मिट्टी की ऊपरी सतह को भुरभु कर दिया जाता है। जिसमें मिट्टी की वाष्पोत्सर्जन दर कम हो जाती है तथा मिट्टी की जल प्रतिधारण क्षमता में भी वृद्धि होती है।
पुआल/भूसा आच्छादन
इस प्रकार के मृदा आच्छादन का प्रयोग सब्जी के पौधों की खेती में अधिक किया जात है। कोई भी किसान धान के पुआल और गेहूँ के भूसे का उपयोग सब्जी की खेती के दौरान कर सकता है। यह मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाता हैं।
सजीव/ लाइव आच्छादन
सजीव आच्छादन में खेत के अंदर एक साथ कई तरह के पौधे लगाए जाते हैं। यह सभी पौधे एक-दूसरे की बढ़ने में मदद करते हैं। सजीव मल्चिंग प्रक्रिया के अन्दर ऐसे 2 पौधों को एक साथ लगा दिया जाता है जिसमें एक को सम्पूर्ण प्रकाश तथा एक को बढ़ने के लिये कम प्रकाश की आवश्यक्ता होती है। ज्यादा प्रकाश चाहने वाले पौधे, कम प्रकाश चाहने वाले पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं।
जीरो बजट खेती का विस्तार
भारत का आन्ध्रप्रदेश ऐसा पहला राज्य है जिसने जीरो बजट प्राकृतिक खेती को पूरी तरह से अपना लिया है। साल 2024 तक आंध्र प्रदेश सरकार ने जीरो बजट प्राकृतिक खेती को हर गाँव तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। आन्ध्र प्रदेश सरकार ने 2015 में जीरो बजट प्राकृतिक खेती को पायलट प्रोजक्ट के तौर पर कुछ गाँव में प्रयोग किया था। इस समय आंध्र प्रदेश के लगभग 5 लाख किसान जीरो बजट प्राकृतिक खेती करना शुरु कर दिया है। हाल ही में हिमांचल प्रदेश सरकार ने जीरो बजट प्राकृतिक खेती को अपने राज्य में बढ़ावा देने के लिए एक परियोजना शुरु की है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के फायदे
कम लागतः जीरो बजट प्राकृतिक खेती तकनीकी के इस्तेमाल कर जो किसान खेती करते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार के केमिकल और कीटनाशक तथा बीजों को खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस प्रकार की खेती में किसान रासायनिक खादों और कीटनाशकों के स्थान पर अपने हाथ द्वारा बनाई गई चीजों को उपयोग करत हैं। इससे खेती करने के दौरान लागत कम आती है।
मिट्टी के लिए फायदेमंद: जब किसानों द्वारा रासायन और कीटनाशकों का छिड़काव फसलों पर किया जाता है। तो इससे जमीन में उपस्थित सूक्ष्म जीव जनतु मर जाते हैं। तथा मिट्टी के उपजाऊपन को नुकसान पहुँचता है। और कुछ समय बाद जमीन की पैदावार कम हो जाती है। मगर जिस जीरो बजट प्राकृतिक खेती से मिट्टी में उपस्थित जैव विविधता का विकास होता है और मिट्टी की उर्वरता शक्ति का ह्रास नहीं होता तथा फसलों की पैदावार अच्छी होती है।
अधिक मुनाफा: जीरो बजट प्राकृतिक खेती में किसान अपने आप से बनाई गयी खाद तथा बीज का उपयोग करता है। जिससे खेती पर होने वाली लागत कम हो जाती है। कम लागत के कारण उस फसल पर किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
अच्छी पैदावारः जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तहत जो फसल उगाई जाती है उसकी पैदावार अच्छी होती है।
जीरो बजट खेती के पिता
सुभाष पालेकर के अनुसार जीरो बजट खेती प्रचलित जैविक खेती से बिल्कुल अलग है। इतना ही नहीं यह हजारों सालों से प्रचलित गोबर की खाद खेती से भी अलग है क्योंकि इसमें गाय से प्राप्त गोबर और गोमूत्र से निर्मित घोल (जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत) का खेत में इस्तेमाल खाद के रूप में किया जाता है । जिससे भूमि की उर्वरो का हास नहीं होता है तथा उत्पादन लागत लगभग शून्य रहती है। और गुणवत्तापूर्ण उपज प्राप्त होती है।