नए बाग लगाने का मतलब है 15-25 साल के भविष्य की योजना बनाना। इसलिए नया बगीचा लगाने से पहले निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
- स्थान की मिट्टी - जलवायु एवं जल की उपलब्धता
- उपयुक्त स्थान का चयन एवं खेत की तैयारी
- उपयुक्त फलदार वृक्षों और किस्मों का चयन
- गड्ढों को खोदना एवं भरना, मिट्टी की नमी, संरक्षण के उपाय
- फलदार वृक्षों की उपलब्धता
- फलों के पेड़ लगाना
- इंटरक्रॉप्स का चयन और उत्पादन
- रोपण के बाद पेड़ों की देखभाल
मिट्टी एवं जलवायु
बाग लगाने से पहले मिट्टी पर विशेष ध्यान दें कि मिट्टी की गहराई कम से कम 1-1.5 मीटर होनी चाहिए और मिट्टी की संरचना उचित होनी चाहिए। मिट्टी का पी-एच मान 6.5-7.5 तथा मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा 0.4 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए। हमेशा ऐसी किस्मों का चयन करें जो उपरोक्त तापमान को सहन कर सकें।
उपयुक्त स्थान का चयन एवं खेत की तैयारी
यदि बगीचा लगाने का स्थान नया है या उस पर जंगल-झाड़ी लगी है तो उसे काटकर साफ कर लें और मिट्टी पलटने वाले हल, हैरो/कल्टीवेटर से गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा करके खेत को समतल कर लें। साथ ही सिंचाई की व्यवस्था करनी होगी। फलदार वृक्षों को प्रारम्भिक दो वर्षों में उचित जल देना आवश्यक है, विशेषकर गर्मी के मौसम में। जंगली जानवरों और इंसानों से बचाव के लिए सुरक्षा के तौर पर बाड़ या कंटीले तार से घेरना जरूरी है। गर्मियों में हीट स्ट्रोक और सर्दियों में पाले से बचने के लिए वायुरोधक पौधे दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगाएं।
गड्ढे खोदना - भरना और मिट्टी की नमी का संरक्षण
करौंदा और आम की आम्रपाली किस्म को 2x2.5 मीटर तथा अनार, किन्नो, कागजी नीबू, अमरूद, बेल, संतरे को 6x6 मीटर तथा आंवला, आम, लसोड़ा, जामुन को 8x8 मीटर की दूरी पर लगाते हैं।
फलों की प्रजाति के चयन के बाद उचित दूरी पर निशान बना लेना चाहिए। छोटे फल वृक्षों जैसे करौंदे के लिए 60x60x60 सेमी. (लंबा, चौड़ा और गहरा) तथा अन्य फलदार वृक्षों के लिए 1 x 1 x 1 मीटर (लंबा, चौड़ा और गहरा) का गड्ढा खोदें। ऊपर की आधी मिट्टी को एक तरफ और बची हुई आधी मिट्टी को दूसरी तरफ रख दें। इन गड्ढों को खोदने का उपयुक्त समय मई-जून है। तेज धूप से मिट्टी का सौरीकरण (शुद्धिकरण) करना चाहिए। जून में वर्षा आने के पूर्व इन गड्ढों को 30-50 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद तथा 30-50 मि.ली. क्लोरोपाइरीफॉस का घोल 10 लीटर पानी में मिलाकर प्रति गड्ढे में डालें। इससे दीमक के प्रकोप से पौधों को सुरक्षित रखा जा सकता है। गड्ढे भरते समय ऊपर की आधी मिट्टी पहले डालें तथा शेष नीचे की आधी मिट्टी बाद में डालें। अर्थात् नीचे की मिट्टी ऊपर तथा ऊपर की मिट्टी नीचे हो जाए। इस प्रकार भरे हुए गड्ढे की मिट्टी भुरभुरी होने के कारण रोपित फल वृक्षों की जड़ों का बढ़ाव बहुत तेजी से होगा और फल वृक्ष शत-प्रतिशत स्थापित होंगे। मृदा एवं नमी के संरक्षण के लिए बंधीकरण, पौधों के बीच-बीच में छोटे गड्ढे या मल्चिंग का प्रयोग करें। इससे वर्षा का पानी ज्यादा दिनों तक खेत में नमी बनाए रखता है।
फलदार वृक्षों की उपलब्धता
वर्षा ऋतु में उद्यान लगाने से पूर्व चयनित प्रजातियों एवं किस्मों की उपलब्धता सुनिश्चित कर लें। आंशिक/पूर्व भुगतान कर पौधों को सुरक्षित किया जाए तो बेहतर होगा। सरकारी, पंजीकृत या विश्वसनीय नर्सरियों, राज्य बागवानी विभाग, कृषि विश्वविद्यालय या भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों की नर्सरी से पौधे खरीदने की सलाह दी जाती है। पौधे की खरीद का बिल जरूर लें और संभालकर रखें।
स्थानांतरण के समय विशेष सावधानी बरतें
- पिंडी को लंबी घास, मूंज या बांस में लपेट कर रखें।
- इसे दूर ले जाने के लिए पिंडी को किसी टोकरी या कार्टून में ठीक से बांध दें ताकि पौधे को हिलाने पर पिंडी टूट न जाए।
- यदि पौधों में बहुत अधिक पत्तियाँ हैं, तो कुछ कम कर दें।
- पौधों पर पानी का छिड़काव करें और पौधों को छाया में रखें।
- यदि पौधों को अधिक दिनों तक रखना हो तो पौधों को पिंडी सहित 30 सेंटीमीटर की दूरी पर रखना चाहिए। इसे किसी गहरे गड्ढे में गाड़ दें और पानी का छिड़काव करते रहें।
अंतर फसल चयन
फलों के पेड़ लगाने के 3-4 साल बाद फल देने लगते हैं। यदि बीच में सिंचाई का कोई साधन हो तो सब्जियों की खेती की जा सकती है, अन्यथा सामान्य तौर पर जो फसल आप चाहते हैं उसकी खेती की जा सकती है। यदि सिंचाई के साधन उपलब्ध न हों तो हरा चारा प्राप्त करने के लिए घास एवं दलहन चारा फसलों की भी खेती की जा सकती है।
इस प्रकार उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए आप एक बगीचा लगाएंगे, तो निश्चित ही आपकी दीर्घकालीन (15-25 वर्ष) की योजना सफल होगी। आपका बगीचा स्थापित होगा और आपको अच्छी उपज, अच्छी आय प्राप्त होगी।