किसानों के लिए कीट और रोग हमेशा से एक बड़ी चुनौती रहे हैं। लेकिन प्राकृतिक खेती में इन समस्याओं का समाधान जैविक तरीकों से संभव है। जैविक खेती में विभिन्न प्रकार के जैविक नुस्खों का उपयोग किया जाता है, जो फसलों को हानि पहुंचाने वाले कीटों और रोगाणुओं से बचाते हैं। अगर जैविक नुस्खे काम नहीं आते हैं, तो गोबर, गोमूत्र और स्थानीय पौधों से बने काढ़ों का उपयोग किया जा सकता है। इस लेख में, हम कीट और रोग प्रबंधन के लिए कुछ महत्वपूर्ण काढ़े बनाने की विधियाँ बता रहे हैं।
हरित क्रांति और जैविक खेती का पुनरुत्थान
हरित क्रांति के दौरान रासायनिक खेती को खूब बढ़ावा मिला, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आए। श्री सुभाष पालेकर जी ने इस समस्या को पहचाना और प्राकृतिक खेती को पुनर्जीवित करने का कार्य शुरू किया। उनके कई वर्षों के प्रयोगों के बाद, उन्होंने 'शून्य बजट प्राकृतिक खेती' की एक सरल और वैज्ञानिक विधि विकसित की। भारत सरकार ने उनकी इस विधि को सम्मानित करते हुए 2016 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा। 'सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती' का आधार जैविक नियंत्रण और बाहरी संसाधनों की आवश्यकता को कम करने पर है। इसके चार मुख्य स्तंभ हैं - जीवामृत, बीजामृत, वफ़सा और अच्छादान। यह विधि स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों जैसे गाय के गोबर, गोमूत्र और पौधों पर आधारित है। इसमें इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्री खेत पर ही तैयार की जा सकती है, जिससे किसानों को महंगे कीटनाशकों और खादों की आवश्यकता नहीं पड़ती।
जीवामृत: मिट्टी का पोषण
जीवामृत का उपयोग मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह बैक्टीरिया और केंचुओं की गतिविधियों को भी बढ़ावा देता है।
विधि:
- देसी गाय का गोबर - 10 किलो
- देसी गाय का मूत्र - 10 लीटर
- गुड़ - 1 किलो
- दाल का आटा - 1 किलो
- रसायन रहित जंगल की मिट्टी - 50 ग्राम
इन सामग्रियों को 200 लीटर पानी में मिलाकर 2-3 मिनट तक हिलाएँ और 72 घंटे के लिए छाया में छोड़ दें। इसे 1:10 (जीवामृत: पानी) के अनुपात में मिलाकर स्प्रे करें।
फफूंदनाशक खट्टी लस्सी: रोग प्रबंधन के लिए
पत्तियों या पौधों पर किसी भी तरह के रोग संक्रमण के उपचार के लिए खट्टी लस्सी का छिड़काव किया जाता है। यह वायरस रोग की रोकथाम में भी सहायक है।
विधि:
- पानी - 200 लीटर
- खट्टी लस्सी (4-5 दिन पुरानी) - 5 लीटर
- इस घोल को बनाकर सीधे पौधे पर स्प्रे करें।
प्राकृतिक कीटनाशक: जंगली पौधों का उपयोग
जंगली पौधों में कई ऐसे घटक होते हैं जो कीटों के लिए हानिकारक होते हैं। नीम, धतूरा, तम्बाकू, मिर्च, लहसुन और अदरक के अर्क में ऐसे घटक पाए जाते हैं जो कीटों को पौधों से दूर रखते हैं।
अग्नि अस्त्र: प्राकृतिक कीटनाशक
सामग्री:
- नीम के पत्ते - 2 किलो
- तम्बाकू के पत्ते - 500 ग्राम
- गाय का मूत्र - 20 लीटर
- हरी मिर्च - 500 ग्राम
- लहसुन - 250 ग्राम
इन सामग्रियों को ओखली या पत्थर पर पीसकर (मिक्सर का उपयोग न करें) गाय के मूत्र के बर्तन में डालें और धीमी आंच पर गर्म करें। पहला उबाल आने के बाद मिश्रण को हल्का गुनगुना होने तक ठंडा करें और कपड़े से छान लें। इस मिश्रण को 48 घंटे तक रखें और हर सुबह-शाम 2-3 मिनट तक हिलाएं। 6-8 लीटर मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इस मिश्रण का 3 महीने के भीतर उपयोग करें।
ब्रह्मास्त्र: सुडियों/इल्लियों का नियंत्रण
विधि:
गाय का मूत्र - 20 लीटर
नीम, अरंडी, अमरूद, अजवा, आम के पत्ते - 5 किलो
पत्तों को पीसकर गाय के मूत्र में धीमी आंच पर पहला उबाल आने तक पकाएं। इसे 48 घंटे तक छाया में छोड़ दें और हर सुबह-शाम 2-3 मिनट तक हिलाएं। कपड़े से छानकर 3 लीटर घोल को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 6 महीने के भीतर इस घोल का उपयोग करें।
बीजामृत: बीज उपचार
बीजामृत का उपयोग बीजों में फफूंद या अन्य मिट्टी जनित रोगों के संक्रमण को रोकने के लिए किया जाता है।
विधि:
बड़े दाने वाले बीज (जैसे मक्का, गेहूं):
- देसी गाय का गोबर - 100 ग्राम
- देसी गाय का मूत्र - 100 मिली
- चूना - 20 ग्राम
- रसायन रहित वन मिट्टी - 20 ग्राम
इन सभी पदार्थों को 400 मिली पानी में मिलाकर लकड़ी से 2-3 मिनट तक घड़ी की दिशा में घुमाएँ। इसे 12 घंटे तक छाया में रखें। यह घोल 2 किलो बीज उपचारित करने के लिए पर्याप्त है।
बहुत छोटे बीज (जैसे बैंगन, मिर्च):
- देसी गाय का गोबर - 5 ग्राम
- देसी गाय का मूत्र - 5 मिली
- चूना - 1 ग्राम
- रसायन रहित वन मिट्टी - एक चुटकी
उपरोक्त विधि को दोहराएँ। यह घोल 10 ग्राम बीज के लिए पर्याप्त है।
किसान इस प्रकार प्राकृतिक खेती में कीट और रोगों का जैविक नियंत्रण न केवल फसलों को सुरक्षित रखता है, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर भी बनाता है।