कीटनाशी रसायनों के लगातार किए गए प्रयोग से हानिकारक कीटों में इनके लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जा रही है और वे मरते नहीं हैं। इसके विपरीत प्रकृति में पाये जाने वाले लाभकारी परभक्षी कीटों पर भी प्रतिकूल असर हो रहा है। अतः वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस बात को आवश्यकता है कि शुद्ध फलों और सब्जियों का उत्पादन लेने के लिए कोट नियंत्रण की प्रभावी व कम खर्चीली विधिया अपनायी जाये। इनमें प्रमुख एवं प्रभावी विधि है नीम के पत्तों व निम्बोली से तैयार पोल' से कीट नियंत्रण यह एक आसान व कम खर्चीली विधि है। इसका सिर्फ समय पर छिड़काव करना पड़ता है।
नीम एक गुणकारी, लाभकारी एवं बहुउपयोगी पेड़ है। यह पर्यावरण मित्र भी है। नीम के प्रत्येक भाग में कीटनाशक गुण विद्यमान हैं। बीज अतिगुणकारी होने की वजह से किसान नीम के पेड़ को अपने घरों व खेतों के आसपास लगाते थे। वर्तमान में किसान फल तथा सब्जियों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। इनकी खरीद पर किसानों को काफी धन खर्च करना पड़ता है। कीटनाशी रसायनों के प्रयोग से कई प्रकार की जैविक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं तथा वातावरण को प्रदूषित करने में इन रसायनों का सबसे बड़ा योगदान है। जब इन रसायनों के प्रयोग किए गए फल, फूल, पत्तियों, सब्जियों तथा अनाजों को मानव आहार में उपयोग किया जाता है तो इन कीटनाशी रसायनों के अवशेष भोजन प्रणाली में प्रवेश कर जाते हैं। ये मानव शरीर में हानिकारक दुष्प्रभाव छोड़ते हैं एवं शरीर की रोग-प्रतिरोधी क्षमता को कम करते हैं। कुछ रसायन मानव त्वचा एवं फेफड़ों को सीधे सम्पर्क से भारी हानि पहुंचाते हैं एवं निश्चित अंगों में एकत्रित हो जाते हैं। ये कई प्रकार के हानिकारक रोगों जैसे-दाद, खाज खुजली, दमा, एलर्जी, बाल झड़ना तथा गुर्दे के रोग इत्यादि को जन्म देते हैं।
पत्तियों या निम्बोली का घोल तैयार करने की विधि
घोल तैयार करने के लिए 1 कि.ग्रा. पत्तियां या निम्बोली की गुठली को चटनीनुमा बारीक पीस लें। इसके बाद इसे कपड़े की पोटली में बांधकर पानी में डुबोकर रातभर रखें व दूसरे दिन सुबह रस निचोड़ने के बाद गूदे को फेंक दें या खाद बनाने के लिए प्रयोग में लें। इस रस को 10 लीटर पानी में मिला दें, इस प्रकार 10 प्रतिशत का घोल तैयार हो जायेगा। इस घोल का आवश्यकतानुसार फसल पर समय-समय पर छिड़काव करके कीटों से बचायें। फलीछेदक कीट के नियंत्रण के लिए फूल आने से पहले छिड़काव शुरू करें। यह छिड़काव 10-15 दिनों के अंतराल पर फसल पर करते रहें। जब तक फल आ रहे हों, मिट्टी में पाये जाने वाले हानिकारक कीटों जैसे-दीमक, सफेद लट् एवं सूत्रकृमि जैसे सूक्ष्मजीवों के नियंत्रण में नीम खली का प्रयोग किया जाता है।
नीम की पत्ती या नीम खली के पानी के घोल में छिड़काव से पहले टमाटर के पौधों की जड़ों को कुछ देर तक डुबोने से सूत्रकृमियों की संख्या एवं इनसे बनाई गई गांठों की संख्या में काफी कमी आती है। टमाटर, बैंगन तथा मिर्च के खेत में नीम खली (1000-1200 कि.ग्रा./हैक्टर) भूमि उपचार के रूप में प्रयोग करने से सूत्रकृमि का प्रभावी नियंत्रण होता है। इस प्रकार अगर किसान नीम पत्तियों व निम्बोली का प्रयोग कीट नियंत्रण में करेंगे तो फसल पर कीटों का प्रकोप होने से रोक सकते हैं। इसके छिड़काव से किसी भी प्रकार का खतरा नहीं हैं।
फायदे का सौदा
- सस्ता और बनाने में आसान
- वातावरण को प्रदूषित नहीं करता सभी हानिकारक कीटों के प्रति प्रभावी
- विषरहित व सुरक्षित
- चने की फसल में फली छेदक के नियंत्रण के लिए निम्बोली के घोल के तीन छिड़काव जरूरी तथा पहला फसल उगने के 20 दिनों बाद दूसरा 40 दिनों बाद तथा तीसरा छिड़काव फूल आने पर
- सरसों में एफिड (माहूं) के नियंत्रण के लिए नीम की पत्तियों का । कि.ग्रा. अर्क 100 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से खेत में छिड़काव
- भंडारण में कीटों का नियंत्रण नीम के बीज, पत्तियों, खली एवं तेल से किया संभव और 1-2 कि.ग्रा. निम्बोली पाउडर के छिड़काव से प्रति क्विंटल गेहूं, ज्वार और मक्का का 4 से 12 महीनों तक ट्रोगोनेमा कीट से बचाव
- 1 कि.ग्रा. निम्बोली पाउडर प्रति क्विंटल चना, मटर एवं अन्य दालों में मिलाकर रखने पर 6 महीने से 12 महीने तक सभी संग्रहित अनाज के कीटों से सुरक्षा
- नीम तेल (500 मि.ली./क्विंटल) को चने में मिलाकर रखने पर 6 महीने तक पल्स बीटल से सुरक्षा
- नीम की 2, 4, 8 और 10 प्रतिशत सूखी पत्तियों को गेहूं, ज्वार (अनाजों) में मिलाने पर सभी प्रकार के संग्रहित अनाज के कीटों से 135 दिनों तक अनाज की सुरक्षा