जानिए मृदा और बीज से उत्पन्न होने वाले रोगजनकों के कारण और उनके नियंत्रण के उपाय

जानिए मृदा और बीज से उत्पन्न होने वाले रोगजनकों के कारण और उनके नियंत्रण के उपाय
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Kisaan Helpline

Agriculture May 03, 2024

मिट्टी और बीज-जनित रोगज़नक़ कभी-कभी पौधों की बीमारियों का पूर्वानुमान और उनका इलाज करना मुश्किल बना देते हैं। ऐसे में किसान बुआई से पहले मिट्टी, बीज जनित रोगों और भूमिगत कीड़ों के प्रबंधन पर ध्यान देकर अपनी फसलों को मिट्टी, बीज और भूमिगत कीड़ों से होने वाली बीमारियों से बचा सकते हैं।

मृदा व बीजजनित रोग कॉलर रॉट/जड़ गलन/तना गलन 
यह रोग मुख्यतः मूंगफली, तिल और टमाटर इत्यादि में होता है। रोग उत्पन्न करने वाले कारक मृदा में रहते हैं। यह रोग बीज व अंकुरित पौधों को ग्रसित कर नुकसान पहुंचाता है, जिससे कि खेत में पौधों की संख्या में काफी कमी हो जाती है। ग्रसित बीज को मृदा से निकालकर देखने पर बीज पर काले कवक दिखाई देते हैं। नम मृदा में यह रोग अधिक होता है। इसमें जड़ों तथा भूमि के पास वाले तने के भाग पर आक्रमण होता है और अधिक संक्रमण होने पर पौधे अंत में सूख जाते हैं।

रोग कॉलर रॉट/जड़ गलन/तना गलन रोग के नियंत्रण के उपाय 
  • कॉलर रॉट से बचाव के लिए बीज को अधिक गहराई में न बोयें। गहरे बोये बीजों पर संक्रमण शीघ्र व अधिक होता है।
  • बचाव के लिए उचित फसल चक्र अपनाएं।
  • मूंगफली बीज को ट्राइकोडर्मा विरडी 10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित करें।
  • 10 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा विरडी को 250 कि.ग्रा. पुरानी गोबर खाद में मिलाकर बुआई से 15 दिनों पूर्व खेत में मिलायें।
  • डायफेनाकोनेजॉल 25 प्रतिशत ई.सी. 1 मि.ली. प्रति लीटर या प्रोपिकोनेजॉल 25 प्रतिशत ई.सी. 6-7 मि.ली. प्रति 10 लीटर या हेक्साकोनेजॉल 5 प्रतिशत ई.सी 3 मि.ली. प्रति लीटर की दर से छिड़कें।
उकठा रोग
यह फफूंद मृदाजनित रोग है। यह रोग कपास, मिर्च व बैंगन की फसल को किसी भी अवस्था में ग्रसित कर सकता है। रोगकारक फफूंद सर्वप्रथम पौधों की जड़ों में संक्रमण करता है व वाहक ऊतकों में घुस जाता है। पौधे की निचली पत्तियों के किनारे पीले पड़ जाते हैं। बाद में सभी पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं व अंत में पौधा मर जाता है।

उकठा रोग के नियंत्रण के उपाय 
  • इसके नियंत्रण के लिए बीज को कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुआई करें।
  • गर्मी में खेतों की गहरी जुताई करें।
  • अमोनियम नाइट्रेट की जगह पर पोटेशियम खाद का प्रयोग करें।
अरगट रोग
यह रोग मुख्यतः बाजरा व राई की फसल को ग्रसित करता है। इस रोग से ग्रसित बाजरे के सिट्टे (पुष्प गुच्छ) पर संक्रमित पुष्पक (फ्लोरेट्स) से हनीड्यू (शहद जैसा) क्रीमी-गुलाबी रंग का लसदार (म्युसीलेजिनियस) पदार्थ बाहर निकलता है। 10 से 15 दिनों के अंदर इसे लसदार पदार्थ की बूंदे सूखकर कठोर व काले रंग के स्केलेरोसिया के रूप में बीज की जगह पर बन जाती हैं। ये स्केलेरोसिया, बाजरे के दाने से बड़े व अनियमित आकार के होते हैं। बाजरे के सिठे से दाने निकलते समय यह स्केलेरोसिया बीज में मिल जाता है। इसके रोगकारक (इनोकुलम) स्केलेरोसिया मृदा में या पौधे के अवशेषों में रहते हैं। एवं फसल के दूसरे मौसम में अंकुरित होकर एस्कस बनाते हैं। ये एस्कस बाजरे के सिट्टे को ग्रसित कर नुकसान पहुंचाते हैं।

अरगट रोग के नियंत्रण के उपाय 
  • बीज को बुआई से पूर्व नमक के 20 प्रतिशत घोल (यानी कि 200 ग्राम नमक और 1 लीटर पानी) में लगभग 5 मिनट तक डुबोकर रखें। पानी में तैरते हुए हल्के बीज व कचरे को निकालकर जला दें। शेष बचे हुए बीज को साफ पानी में धोकर छाया में सुखा लें। उसके बाद बुआई के काम में लें।
आर्द्रगलन
यह रोग मुख्यतः पौधे की छोटी अवस्था में होता है, जो कि लगभग सभी सब्जियों, मूंगफली, टमाटर, मिर्च और गोभी इत्यादि को ग्रसित करता है। खासकर नर्सरी में उगने वाले पौधों में ग्रसित पौधे की जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़कर कमजोर हो जाते हैं तथा नन्हें पौधे गिरकर मर जाते हैं।

आर्द्रगलन के नियंत्रण के उपाय 
  • नर्सरी को आसपास की भूमि से 4-6 इंच ऊंचा रखें।
  • बीज को बुआई पूर्व थाइरम या कैप्टॉन 3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बोयें।
  • नर्सरी में बुआई पूर्व थाइरम या कैप्टॉन 3-4 ग्राम/वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिलायें।
  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम/लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें। जरुरत पड़ने पर दोबारा करें।
जड़ गलन
यह रोग मुख्यरूप से ग्वार में लगता है। रोग के लक्षण दिखाई देने पर निम्न उपचार करें।

जड़ गलन के नियंत्रण के उपाय 
  • 10 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा विरडी को 250 कि.ग्रा. पुरानी गोबर खाद में मिलाकर बुआई से 15 दिनों पूर्व खेत में मिलायें।
  • ट्राइकोडर्मा विरडी 4-5 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित कर बुआई करें।
  • खड़ी फसलों में रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल बनाकर छिड़कें। आवश्यकता अनुसार 10-15 दिनों के अंतराल पर दोहरायें।

डाउनी मिल्ड्यू
संक्रमण के परिणामस्वरूप लक्षण अक्सर भिन्न होते हैं। पत्तियों पर क्लोरिसिस के लक्षण नीचे से शुरू होते हैं और धीरे-धीरे ऊपर की पत्तियों पर क्लोरिसिस अधिक दिखाई देते हैं। संक्रमित क्लोरोटिक पत्ते वाले क्षेत्रों पर नीचे की सतह पर अलैंगिक स्पोर बनने में अधिक मदद करता है। आमतौर पर गंभीर रूप से संक्रमित पौधे पर विकास अवरूद्ध हो जाता है और पुष्प गुच्छ नहीं बनते हैं। बाजरे में ग्रीन ईयर के लक्षण फूलों का पत्तेदार संरचनाओं में परिवर्तन होने से होते हैं। इसके उस्पोर मृदा में 5 साल या इससे ज्यादा दिनों तक जीवित रहते हैं, जिससे कि फसल में प्रथम संक्रमण होता है। द्वितीय संक्रमण बरसात के दिनों में बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है।

डाउनी मिल्ड्यू के नियंत्रण के उपाय 
  • इस रोग से बचाव के लिए बीज को मैटालेक्जिल 35 प्रतिशत डब्ल्यू.एस. 6 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज या थाइरम 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुआई करें।

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