जानिए दलहनी फसलों में लगने वाले हानिकारक कीटों की रोकथाम के उपाय

जानिए दलहनी फसलों में लगने वाले हानिकारक कीटों की रोकथाम के उपाय
News Banner Image

Kisaan Helpline

Agriculture Sep 16, 2023

प्राचीन काल से ही भारत में उगाई जाने वाली फसलों में दलहनी फसलों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। ये फसलें आमतौर पर प्रोटीन का मुख्य स्रोत मानी जाती हैं। दलहनी फसलों के अंतर्गत मुख्य रूप से अरहर, मूंग तथा उड़द की खेती खरीफ मौसम में तथा चना, मसूर, राजमा तथा मटर की खेती रबी मौसम में की जाती है। देश के कई स्थानों पर जायद में मूंग और उड़द आदि की खेती भी की जाती है।

दलहनी फसलों की खेती मुख्यतः असिंचित क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ नमी एवं पोषक तत्वों की कमी होती है। दलहनी फसलों की खेती के लिए उन्नत किस्मों और तकनीकों के बारे में किसानों में जानकारी का अभाव है, जैसे उचित समय पर कीटों, बीमारियों और खरपतवारों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में असमर्थता आदि। दलहनी फसलों में कम उपज का एक मुख्य कारण कीटों पर नियंत्रण न करना है और सही समय पर बीमारियाँ प्रस्तुत लेख में दलहनी फसलों के प्रमुख रोगों एवं कीटों से बचाव के उपाय बताये गये हैं।

दलहनी फसलों के कीटों की रोकथाम

अरहर की फलीबेधक मक्खी

उत्तरी भारत में यह कीट, अरहर की फसल को काफी हानि पहुंचाता है। इस कीट द्वारा 20-25 प्रतिशत तक अरहर की फसल को प्रतिवर्ष नुकसान होता है। इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस (0.04 प्रतिशत घोल) नामक दवा का छिड़काव करना चाहिए।

फली बग

इस कीट के प्रौढ़ एवं निम्फ पत्तियों, कलियों, फूलों तथा फलियों के रस को चूसते हैं। इससे फलियां सिकुड़ जाती हैं और सही तरीके से नहीं बन पाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस (0.04 प्रतिशत घोल) या डाइमिथोएट (0.03 प्रतिशत घोल) का छिड़काव करना चाहिए।

चना फलीभेदक

इसके नियंत्रण के लिये सबसे पहले फेरोमैन ट्रैप (यौन आकर्षण जाल) द्वारा नियमित निगरानी करते रहें जैसे ही 5-6 नर कीट/ट्रैप 24 घंटे के अन्दर मिलना शुरू हो जाएं. नियंत्रण तकनीक अपनायें। एन.पी.वी. 250 लार्वा तुल्य का छिड़काव करें एवं परभक्षियों के लिये खेत में टी आकार की लकड़ी लगा दें। उसके साथ ही नीम की निंबोली के सत् के 5 प्रतिशत घोल का छिड़काव लाभदायक सिद्ध होगा। रासायनिक नियंत्रण के लिए इंडोक्साकार्ब । मि.ली./लीटर या मोनोक्रोटोफॉस (0.04 प्रतिशत) प्रति लीटर पानी का प्रथम छिड़काव या मिथाइल डिमेटान 0.05 प्रतिशत का प्रयोग या क्यूनॉलफॉस (25 ई.सी.) की 1.25 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर एक हैक्टर में छिड़काव करें।

ब्लिस्टर बीटल

इसे फूलों का टिडा भी कहा जाता है। यह फूलों को खाता है और फलियों की मात्रा को कम करता है। वयस्क कीट काले रंग के होते हैं, जिनके अगले पंख पर लाल धारियां होती हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए डैल्टामैथरीन 2.8 ई.सी. 200 मि.ली. या इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ 100-125 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करें। छिड़काव शाम के समय करें और 10 दिनों के फासले पर करें।

पीला मोजैक

यह रोग मूंग की रोगग्राही प्रजातियों में अधिक व्यापक होता है। जिन पत्तियों में पीली कुर्बरता या पीली ऊतकक्षय कुर्बरता के मिले-जुले लक्षण दिखाई देते हैं, उनके आकार छोटे रह जाते हैं। ऐसे पौधों में बहुत कम व छोटी फलियां होती हैं। ऐसी फलियों का बीज सिकुड़ा हुआ और मोटा व छोटा होता है। यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। इसके नियंत्रण के लिए खेत में ज्यों ही रोगी पौधे दिखाई दें. डायमेथाक्साम या इमिडाक्लारोप्रिड 0.02 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स 0.1 प्रतिशत का छिड़काव कर दें। छिड़काव को 15-20 दिनों के अन्तराल पर दोहरायें और कुल 3-4 छिड़काव करें। प्रति हैक्टर 800 लीटर में बना घोल पर्याप्त होता है।

वर्षा ऋतु में जब पौधों की अधिकतर फलियां पककर काली हो जाती हैं, तो फसल काटी जा सकती है। जब 50 प्रतिशत फलियां पक जाएं, फलियों की पहली तुड़ाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद दूसरी बार फलियों के पकने पर कटाई की जा सकती है। फलियों को खेत में सूखी अवस्था में अधिक समय तक छोड़ने से ये चटक जाती हैं और दाने बिखर जाते हैं। इससे उपज की हानि होती है। फलियों से बीज को समय पर निकाल लें।

रस चूसने वाले कीट (सफेद मक्खी, चेपा, तेला)

इन कीटों द्वारा नुकसान दिखे, तो डाइमेथोएट 250 मि.ली. या ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 250 मि.ली. या मैलाथियॉन 375 मि.ली. या प्रति एकड़ छिड़काव करें।

Agriculture Magazines

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline