1. धनिया, गेंदा, सरसों, गाजर, अजवायन जैसे नेक्टर उत्पन्न करने वाले पौधे लगाने चाहिए।
2. खेत में पड़े अवशेषों को जलाना नहीं चाहिए।
3. जैव कीटनाशी का प्रयोग करना चाहिए।
4. परभक्षी कीटों को प्रातः या शाम के समय खेत में छोड़ना चाहिए।
5. विपरीत मौसम जैसे - वर्षा , आंधी - तूफान के समय लाभकारी कीटों को खेत में नहीं छोड़ना चाहिए।
6. एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए आइस बॉक्स का प्रयोग करना चाहिए।
7. फसल विशेष के अनुसार पैरासिटायड उपयोग करना चाहिए।
8. परभक्षी कीटों को खेत में छोड़ने से पहले पूर्ण भोजन देना चाहिए , अन्यथा वे आपस में शत्रु होकर एक दूसरे को खाने लगते हैं।
9. पेड़ पर परभक्षी कीटों को छोड़ने के बाद जमीन पर गोलाई में पीड़कनाशी डालना चाहिए , जिससे चींटियां ऊपर तक न जा सकें।
10. कीट प्रबंधन के लिए ई . टी . एल . का इंतजार नहीं करना चाहिये अन्यथा रासायनिक नियंत्रण अनिवार्य हो जायेगा।
11. परभक्षी , परजीवी की अपने पोषक कीट को ढूंढने की उच्च क्षमता होनी चाहिए।
12. खेत के आसपास जल स्रोत बनाना चाहिए . जिससे ड्रैगन फ्लाई जैसे कीट को अपरिपक्व अवस्था पूर्ण हो सको।
13. जैवनाशी के लिए छिड़काव यंत्र अलग से रखना चाहिए।
14. उड़द , मूंग , सोयाबीन के साथ मक्का , अरहर , बाजरा की अन्तर्वर्ती फसल उगानी चाहिए।
15. खेत की जुताई दिन में करनी चाहिए , जिससे पक्षी, विविध कीटों का भक्षण कर सके।
16. सिंचाई की सुविधा दिन में होने से खेत में पानी भरने पर कीट बाहर आने पर पक्षी उसे अपना भोजन बना सकते हैं।
17. समय - समय पर अपेक्षाकृत सुरक्षित पीड़कनाशी का छिड़काव कर कीट एवं रोग को दूर भगाना चाहिए।
18. परभक्षी एवं परजीवी कीट तथा उनके अंडे , लार्वा , प्यूपा इत्यादि को नगे हाथ से नहीं छूना चाहिए।