Organic Farming: जैविक खेती को लेकर नित नए अनुसंधान सामने आ रहे हैं उन्हीं नवाचरों में से एक कड़ी है, वर्मीवाश।
वर्मीवाशः ताजा वर्मीकम्पोस्ट व केंचुए के शरीर को धोकर जो पदार्थ तैयार होता है उसे वर्मीवाश कहते हैं। वर्मीवाश में घुलनशील नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश मुख्य पोषक तत्व होते हैं। इसके अलावा इसमें हार्मोन, अमीनो एसिड, विटामिन, एंजाइम, और कई उपयोगी सूक्ष्म जीव भी पाये जाते हैं। इसके प्रयोग से पच्चीस प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ जाता है।

बनाने की प्रक्रिया: वर्मीवाश तैयार करने के लिये उचित छायादार स्थान का चुनाव किया जाता है। प्लास्टिक, लोहे या सीमेन्ट के बैरल प्रयोग किये जा सकते हैं जिसका एक सिरा बन्द हो और एक सिरा खुला हो। सीमेंट का बड़ा पाईप भी प्रयोग किया जा सकता है। इस पाईप को एक ऊँचे आधार पर खड़ा रखकर नीचे की तरफ से बंद करें। नीचे की तरफ आधार के पास साईड में छेद (1 इंच चौड़ा) करें इस छेद में पाईप डालकर वाशर की मदद से सील करें। अंदर की ओर आधा इंच पाईप रखें तथा बाहर इतना कि नीचे बर्तन आसानी से रखा जा सके। बाहर पाईप के छेद में नल फिट करें तथा दूसरे छेद में नट लगायें जोकि पाईप की समय-समय पर सफाई के काम आएगा। यह नल सुविधानुसार बैरल की पेंदी में भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा इकरीसेट, हैदराबाद के वैज्ञानिक में डॉ. ओ.पी. रूपेला द्वारा विकसित की गई। वर्मीवाश विधि उपरोक्त विधि का ही एक प्रारूप है। इसमें फिल्टर के रूप में एक बदलाव किया गया है। एक गोलाकार चौडा सीमेंट का पाईप एक प्लेटफार्म पर रखकर सीमेंट से जोड़ें। इसके ऊपर एक और सीमेंट का पाईप रखें। दोनों के बीच एक मोटी लोहे की जाली रखें तथा सीमेंट से जोड़ें। नीचे वाले पाईप के साईड में नीचे एक नल लगायें। लोहे की जाली के ऊपर प्लास्टिक की जाली रूपी फिल्टर बिछायें जिसके किनारे बैरल से बाहर निकले हों। फिल्टर के ऊपर गोबर डालें व केचुएं (ईसीनिया फीटिडा) डाल दें। इसके ऊपर फसल अवशेष पत्तियों आदि की 3-4 इंच मोटी परत बिछायें। प्रति सप्ताह इसी प्रकार अवशेष की परत बिछाते रहें। समय-समय पर पानी छिड़कते रहें। उचित तापमान बनाकर रखें। ऊपर से पाईप को एक पोटली, जिसमें पत्ते एवं पराली वगैरह भरे हों, से ढ़क देना चाहिए ताकि नमी बरकरार रहे तथा अंधेरा भी रहे। लगभग 1 माह बाद जब अच्छी वर्मीकम्पोस्ट बनने लग जाए तो वर्मीवाश लेना शुरू कर सकते हैं। ऊपर फव्वारे के रूप में धीरे-धीरे पानी डालें जोकि इकाई से गुजरता हुआ नीचे निकलेगा। चूंकि इकाई का निचला आधा हिस्सा खाली है अतः फिल्टर के माध्यम से पानी नीचे चला जाएगा। दिन में लगभग 10 लीटर पानी यूनिट से बाहर निकालें। इस वर्मीवाश की सांद्रता बढ़ाने के लिए इसे दोबारा से इकाई के माध्यम से गुजारें। इस प्रकार 4-5 चक्रों मे यह तैयार हो जाता है। अब एकत्रित वर्मीवाश का उचित संग्रहण किया जाता है एवं उपयोग के पहले द्रवित किया जाता है।

वर्मीवाश का उपयोग कहा करे
फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये धान्य फसलों चावल एवं मक्का आदि में वर्मीवाश का छिड़काव किया जा सकता है। वर्मीवाश का प्रयोग सब्जियों जैसे मुख्य रूप से भिण्डी, पालक, बैंगन, प्याज एवं आलू में इनकी गुणवत्ता एवं स्वाद बढ़ाने के लिये हो रहा है। वर्मीवाश के द्वारा इन फसलों में पौधों की म्बाई, पत्तियों का आकार एवं फलों का आकार बढ़ता है एवं यह एक अच्छा रोगरोधी एवं कीटनाशक की भाँति कार्य करता है।
वर्मीवाश का प्रयोग कैसे करें:
- एक लीटर वर्मीवाश को 7-10 लीटर पानी में मिलाकर पत्तियों पर छिड़काव करे।
- एक लीटर वर्मीवाश को एक लीटर गोमूत्र में मिलाकर उसमें 10 लीटर पानी मिलाया जाता है फिर इसे रातभर के लिये रखकर ऐसे 50–60 लीटर वर्मीवाश का छिड़काव एक हेक्टर क्षेत्र में फसलों में बीमारियों के रोकथाम हेतु करते हैं।
- ग्रीष्मकालीन सब्जियों में शीघ्र पुष्पन एवं फलन के लिये पर्णीय छिड़काव किया जाता है जिससे उनके उत्पादन में वृद्धि होती है।
- तैयार करने हेतु कभी भी ताजा गोबर का उपयोग नहीं करना चाहिए, इससे केंचुए मर जाते हैं। स्वच्छ पानी का प्रयोग 20 दिनों तक नमी बनाए रखने हेतु करना चाहिए। वर्मीवाश इकाई को उचित स्टैण्ड पर रखना चाहिए जिससे वर्गीवाश एकत्र करने में आसानी हो ।