धनिया, गेंदा, सरसों, गाजर, अजवायन जैसे नेक्टर उत्पन्न करने वाले पौधे लगाने चाहिए। खेत में पड़े अवशेषों को जलाना नहीं चाहिए।
जैव कीटनाशी का प्रयोग करना चाहिए।
परभक्षी कीटों को प्रातः या शाम के समय खेत में छोड़ना चाहिए।
विपरीत मौसम जैसे वर्षा, आंधी-तूफान के समय लाभकारी कीटों को खेत में नहीं छोड़ना चाहिए।
एक जगह से दूसरी जगह से जाने के लिए आइस बॉक्स का प्रयोग करना चाहिए। फसल विशेष के अनुसार पैरासिटायड उपयोग करना चाहिए।
परभक्षी कीटों को खेत में छोड़ने से पहले पूर्ण भोजन देना चाहिए, अन्यथा वे आपस में शत्रु होकर एक दूसरे को खाने लगते हैं। पेड़ पर परभक्षी कीट छोड़ने के बाद जमीन पर गोलाई में पीड़कनाशी डालना चाहिए, जिससे चोटिया ऊपर तक न जा सकेँ।
कीट प्रबंधन के लिए ई.टी.एल. का इंतजार नहीं करना चाहिये अन्यथा रासायनिक नियंत्रण अनिवार्य हो जायेगा। परभक्षी, परजीवी को अपने पोषक कीट को ढूंढने की उच्च क्षमता होनी चाहिए। जेवनाशी के लिए छिड़काव यंत्र अलग से रखना चाहिए।
खेत के आसपास जल स्रोत बनाना चाहिए, जिससे ड्रैगन फ्लाई जैसे कोट की अपरिपक्व अवस्था पूर्ण हो सके। कोई भी जेवनाशी समाप्ति तिथि के उपरान्त उपयोग नहीं करना चाहिए।
उड़द, मूंग, सोयाबीन के साथ मक्का, अरहर, बाजरा की अन्तर्वतों फसल उगानी चाहिए।
खेत की जुताई दिन में करनी चाहिए, जिससे पक्षी, विविध कीटों का भक्षण कर सकें।
सिंचाई की सुविधा दिन में होने से खेत में पानी भरने पर कीट बाहर आने पर पक्षी उसे अपना भोजन बना सकते हैं।
परभक्षी कोट का प्रयोगशाला में चींटी छिपकली इत्यादि से बचाव सुनिश्चित करना चाहिए। समय-समय पर अपेक्षाकृत सुरक्षित पीड़कनाशी का छिड़काव कर कीट एवं रोग को दूर भगाना चाहिए।
परभक्षी एवं परजीवी कीट तथा उनके अंडे, लाव, प्यूपा इत्यादि को नंगे हाथ से नहीं छूना चाहिए। इसके साथ हो मुंह पर मास्क लगाकर प्रयोगशाला में रहना चाहिए।
प्रयोगशाला में नमी एवं तापमान आवश्यकतानुसार होना चाहिए तथा परभक्षी फोटों के भोजन रखने से पूर्व पोषक कोट के अंडों को ब्रश से साफ करना चाहिए। इस दौरान कमरे का एक्जॉस्ट चालू रखना चाहिए, जिससे उसके खोल से उत्पन्न कण वातावरण में ज्यादा देर तक न रहें।
खेतों में डालने के बाद पूरे वर्ष उसमें फसलें लेनी चाहिए। यदि संभव न हो तो कुछ हिस्से में गर्मी के समय में नमी तथा फसलें रहनी चाहिए। इससे कोट का जीवनचक्र पूरा हो और उसकी संख्या बनी रहे।
जैविक कीटनाशी के साथ-साथ जैविक खादों का प्रयोग करने से इनकी दक्षता बढ़ जाती है।
सिंचाई के लिए उपयोग में लाये जाने वाले जल की गुणवत्ता की समय-समय पर जांच करनी चाहिए, ताकि उचित पी एच एवं अन्य आवश्यक रासायनिक गुण वाले जल से जेवनाशी को क्षमता पर विपरीत असर न पड़े।
प्रयोगशाला में ये परभक्षी कोट आसानी से उत्पन्न हो सके। जैविक परभक्षी बहुत तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने वाला हो।
जीवनचक्र छोटा हो, जिससे पीड़क से पहले उसकी संतति उत्पन्न हो सके।
जैविक पीड़कनाशी पर कोट एवं रोग को जांच करते रहना चाहिए, जिससे उनको संक्रमण से बचाया जा सके।