जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए देशी तकनीक, जानिए कैसे बनाएं बीजामृत और जीवामृत

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए देशी तकनीक, जानिए कैसे बनाएं बीजामृत और जीवामृत
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Kisaan Helpline

Agriculture Dec 28, 2022

Organic Farming: प्राकृतिक खेती का महत्व और उपयोगिता यह पद्धति प्राकृतिक विज्ञान, अध्यात्म और अहिंसा पर आधारित एक सनातन कृषि पद्धति है। इस पद्धति में रासायनिक उर्वरक, जैविक और जहरीले कीटनाशक, कवकनाशी और शाकनाशियों का उपयोग नहीं किया जाता है। देशी गाय की मदद से ही आप प्राकृतिक खेती कर सकते हैं। इस विधि से फसल उत्पादन विषमुक्त, उच्च गुणवत्तायुक्त, पौष्टिक एवं स्वादिष्ट होगा। इन गुणों और विशेषताओं के कारण उपभोक्ताओं द्वारा इनकी मांग अधिक है। आपको अच्छी कीमत भी मिलेगी। इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए हर किसान को कम लागत वाली प्राकृतिक खेती अपनाने पर ध्यान देने की जरूरत है। प्राकृतिक खेती के मुख्य घटक बीजामृत, जीवामृत, घन जीवामृत और वापसा तथा वृक्षीय प्रबंधन को अपनाने की आवश्यकता है।

बीजामृत (Bijamrita)
बीजामृत का घोल बनाकर बीज को उपचारित (संशोधित) करना अति आवश्यक है। बीजामृत से शुद्ध किए गए बीज जल्दी और अच्छी मात्रा में अंकुरित होते हैं और जड़ें तेजी से बढ़ती हैं साथ ही बीज और मिट्टी द्वारा फैलने वाली बीमारियां रूकती हैं और जीवामृत से पौधे की वृद्धि अच्छी होती है। घन जीवामृत के 100 किग्रा देशी गाय का गोबर, 1 किग्रा. गुड़, 2 किग्रा. दाल का आटा (चना, उड़द, मूंग, अरहर), पीपल/बरगद के नीचे की एक मुट्ठी मिट्टी और थोड़ा सा गोमूत्र आदि को अच्छी तरह मिलाकर गूंध लें ताकि इसका हलवा, लड्डू जैसा गाढ़ा हो जाए। इसे 2 दिन के लिए रख दें बोरे से ढककर और थोड़ा पानी छिड़कें। इस भीगे हुए जीवामृत को छाया या हल्की धूप में अच्छी तरह फैलाकर सुखा लें। सूखने के बाद इसे लकड़ी के डंडे से महीन पीस लें और बोरों में भरकर छाया में रख दें। आप घन जीवामृत को सुखाकर 6 महीने तक रख सकते हैं। फसल की बुवाई के समय 100 किग्रा प्रति एकड़ छने हुए बीज के साथ मिलाकर बोयें।

उपयोग - बोआई से 24 घंटे पहले बीज शोधन करना चाहिए। बीजामृत के उपयोग के बाद बीज को छाया में सुखाएं। तत्पश्चात अगली सुबह बोआई करें यह उपचार बीज जनित रोगों की रोकथाम में उपयोगी सिद्ध होता है।



जीवामृत (Jeevamrit)
जीवामृत एक एकड़ जमीन के लिए 10 किलो देशी गाय का गोबर, 8-10 लीटर देशी गाय का गोमूत्र, 1-2 किलो गुड़, 1-2 किलो बेसन, पानी 180 ली. और पेड़ के नीचे 1 किलो मिट्टी आदि एक प्लास्टिक के ड्रम में डालकर लकड़ी के डंडे से मिला दें। इस घोल को 2-3 दिन छाया में सड़ने के लिए रख दें। दिन में दो बार लकड़ी की छड़ी से घोल को घड़ी की दिशा में 2 मिनट तक घुमाएं। जीवामृत के घोल को बोरी से ढक दें। जीवामृत का घोल गर्मी में 7 दिन और सर्दी में 10-15 दिन तक प्रयोग किया जा सकता है। जीवामृत के घोल को फसल में सिंचाई के साथ दें।

उपयोग - प्रति एकड़ 200 लीटर जीवामृत को पानी की सिंचाई के साथ या स्प्रे मशीन से 15-20 दिनों के अंतराल पर खड़ी फसल में खेत में उपयोग करें। 5-6 स्प्रे करना फसलों के उत्पादन के लिए अपेक्षित है। जीवामृत का उपयोग केवल 7 दिन तक किया जा सकता है। जीवामृत का प्रयोग करने से फसलों को उचित पोषण मिलता है और दाने एवं फल स्वस्थ होते हैं।

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