केंचुए, जिन्हें आमतौर पर किसानों के मित्र के रूप में जाना जाता है, भूमि और फसल दोनों के लिए फायदेमंद जीव हैं। केंचुए आमतौर पर मिट्टी में पाए जाते हैं। रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी में इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। सघन खेती में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी में पोषक तत्वों के असंतुलन और कई आवश्यक पोषक तत्वों की कमी की समस्या पैदा हो गई है। इस पर काबू पाने के लिए जैविक खाद का प्रयोग ही एकमात्र विकल्प है। इससे पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहते हैं और उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
जैविक खाद में वर्मीकम्पोस्ट का महत्वपूर्ण स्थान है। थोड़ी सी मेहनत से किसान अपने खेतों में केंचुओं के माध्यम से बेकार वनस्पति पदार्थ को 50 से 60 दिनों की अल्प अवधि में मूल्यवान वर्मीकम्पोस्ट में बदल सकते हैं। इनका भूमि में उपयोग कर किसान मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं।
केंचुआ प्रजातियां
- इंडोगीज - गहरी सुरंग बनाने वाले लंबे केंचुए इंडोगीज कहलाते हैं। ये 8 से 10 इंच तक लंबे होते हैं एवं इनका औसत वजन 4 से 5 ग्राम होता है। इंडोगीज, मृदा में नमी की तुलना में 8 से 10 इंच की गहराई तक चले जाते हैं। ये मृदा को 90 प्रतिशत एवं कार्बनिक पदार्थों को कम मात्रा में (10 प्रतिशत) खाते हैं तथा मुख्यतः वर्षा ऋतु में दिखाई देते हैं।
- एपीगीज - ये केंचुए छोटे आकार के एवं भूमि की ऊपरी सतह पर रहते हैं। इनकी क्रियाशीलता एवं जीवन अवधि कम लेकिन प्रजनन दर अधिक होती है। एपीगीज कार्बनिक पदार्थ अधिक 90 प्रतिशत एवं मृदा कम मात्रा में 10 प्रतिशत खाते हैं। इनका औसत वजन आधे से एक ग्राम होता है एवं ये वर्मीकम्पोस्ट बनाने में अधिक प्रभावी एवं उपयोगी होते हैं। एपीगीज वानस्पतिक पदार्थों को अधिक तेजी से अपघटित करते हैं एवं वर्मीकम्पोस्ट अधिक बनाते हैं।
वर्मीकम्पोस्ट बनाने की विधि
- वर्मीकम्पोस्ट इकाई बनाने के लिए सबसे पहले 6-8 फीट की ऊंचाई का एक छप्पर तैयार करें, ताकि उपयुक्त तापमान एवं छाया रखी जा सके। वर्मीकम्पोस्ट बनाने की क्यारी की लंबाई सुविधानुसार, चौड़ाई 3 फीट एवं ऊंचाई डेढ़ से ढाई फीट रखी जानी चाहिए। किसान क्यारी बनाने के लिए कच्ची एवं पक्की ईंटों का उपयोग कर सकते हैं।
- वर्मीकम्पोस्ट के लिए क्यारी में सरसों, मक्का, ज्वार, बाजरा, गन्ना, नीम की पत्तियों आदि के अवशेषों की 3 इंच की तह बिछायें। इस तह पर अब 3 इंच की मोटाई तक अधसड़ी गोबर की खाद बिछाकर पानी डालकर गीला किया जाता है। इस गीली तह पर 1 इंच मोटी वर्मीकम्पोस्ट की परत, जिसमें पर्याप्त केंचुए मिले होते हैं, डाली जाती है। 10 × 3 × 1 फीट की क्यारी के लिए 2 कि.ग्रा. केंचुए पर्याप्त रहते हैं। मुख्य रूप से यूड्रीलस यूजिनी एवं आइसीनिया फटिडा प्रजाति के केंचुए उपयोग में लिए जाते हैं।
- अंत में इस तीसरी परत पर 3-4 दिनों पुरानी गोबर की खाद या गोबर के साथ घास-फूस, पत्तियां मिले हुए टुकड़ों का कचरा 5 से 10 इंच की मोटाई में इस तरह बिछा दिया जाता कि सबसे निचली स्तर से ऊपर की सतह तक ऊंचाई लगभग डेढ़ से ढाई फीट हो जाए। नमी बनाये रखने के लिए हर परत पर पानी छिड़का जाता है। अब इनको बोरी के टाट से अच्छी तरह से ढककर 30 प्रतिशत तक नमी एवं 20-30 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बनाये रखें।
- 45-60 दिनों के अंदर ही गोबर एवं गोबर मिश्रित घास-फूस, पत्तियां एवं कचरा वर्मीकम्पोस्ट में बदल जाते हैं।
- ढेर का रंग काला होना और केंचुओं का ऊपरी सतह पर आना वर्मीकम्पोस्ट तैयार होने का सूचक है।
- वर्मीकम्पोस्ट से केंचुए अलग करने के लिए 3-4 फीट ऊंचा वर्मीकम्पोस्ट का ढेर बनाएं तथा पानी छिड़कना बन्द कर दें। जैसे-जैसे ढेर सूखता जायेगा केंचुए नमी की तरफ नीचे चले जायेंगे। कुछ समय बाद अधिकांश केंचुए नीचे चले जायेंगे और ऊपर से वर्मीकम्पोस्ट इकट्ठा कर लें।
- वर्मीकम्पोस्ट से केंचुए अलग करते समय ढेर से नीचे के 1/10वें भाग को बचाकर केंचुए सहित वर्मीकम्पोस्ट बनाये जाने वाले जीवांश पदार्थ पर डालें। इस ढेर में कोकून रहते हैं।
इस तरह केंचुओं से तैयार वर्मीकम्पोस्ट का अन्य जैविक खादों से तुलनात्मक अध्ययन करने पर पाते हैं कि गोबर की खाद, नाडेप कम्पोस्ट एवं शहरी कम्पोस्ट से वर्मीकम्पोस्ट में 2 से 3 गुना अधिक मुख्य पोषक तत्वों की मात्रा पायी जाती है।
उपयोग मात्रा
अनाज वाली फसलों में 5 टन प्रति हैक्टर, सब्जी फसलों में 7 टन प्रति हैक्टर और फलदार वृक्षों में 8 से 10 कि.ग्रा. प्रति वृक्ष आयु के अनुसार।